
वीरान हो आईं हैं
सर्दियों की इस रात में ।
जैसे सब का रुख
मुड़ गया हो सच की ओर ।
अपनी अपनी जगह
भीगती रोशनी में लिपटे
गुमसुम लैम्प-पोस्ट
सब कुछ शांत
सिवाय टपकती ओस के ।
सहसा दूर कहीं कोई आहट
ध्यान बरबस खिंचता है उस ओर
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
दिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
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25 टिप्पणियाँ
बढिया है...लिखते रहें...जमे रहें...साहित्य की सेवा करते रहें
जवाब देंहटाएंajay ji ,
जवाब देंहटाएंaap to ustaad nikhle bhai .. itni saarthak aur gahri kavita ..
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
ye pankhtiyan hame hamare dukho ko bhool kar ek nayi umeed ko jagane ko kahti hai ....
अपनी अपनी जगह
भीगती रोशनी में लिपटे
गुमसुम लैम्प-पोस्ट
सब कुछ शांत
सिवाय टपकती ओस के ।
behatreen prastuti hai in pankhtiyon me..
wah ji wah .. aapne to kamaal kar diya ..
bahut badhai...
बहुत सुन्दर लिखा है।बधाई।
जवाब देंहटाएंसड़कें
वीरान हो आईं हैं
सर्दियों की इस रात में ।
जैसे सब का रुख
मुड़ गया हो सच की ओर ।
बहुत अच्छी कविता है अजय जी। बधाई।
जवाब देंहटाएंदिन में छोटा सा लगता रास्ता
जवाब देंहटाएंबहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
कविता में आपके उपमानों के साथ चलता चला गया। वाह।
Nice poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बेहद चित्रात्मक ।
जवाब देंहटाएंगति तेज़ करने से पहले मैने ख़ुद को भी ठंडे ठंडे उसी लेंप-पोस्ट के नीचे खड़े पाया।
प्रवीण पंडित
जैसे सब का रुख
जवाब देंहटाएंमुड़ गया हो सच की ओर ।
सब कुछ शांत
सिवाय टपकती ओस के ।
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
ऑबजर्वेशन को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत कर रही है आपकी कविता। सच कहूँ तो प्रकृति या उससे जुडे विषयों/संदर्भों की कविता से जैसे बिदायी हो गयी है। आपकी कविता में डूबा जा सकता है, साथ ठिठुरा जा सकता है...
***राजीव रंजन प्रसाद
अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंaaj sahitya shilpi kaafi badla badla laga, header to pahle hi achcha tha, aur kavi paricyay, dene ka bhi vichar bahut achcha hai
जवाब देंहटाएंब्रह्मांड फैलता जा रहा है
जवाब देंहटाएंऔर कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
- ajay bhai aap hamesha achcha likhte hain
bahut sundar
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंदिन में छोटा सा लगता रास्ता
जवाब देंहटाएंबहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
....Bahut khubsurat bhavabhivyakti...keep it up Ajay Ji !!!
अपनी अपनी जगह
जवाब देंहटाएंभीगती रोशनी में लिपटे
गुमसुम लैम्प-पोस्ट
सब कुछ शांत
सिवाय टपकती ओस के.
Sundar bhav-Sundar Kavita.
बहुत अच्छी रचना के लिये बधाई...
जवाब देंहटाएंजैसे सब का रुख
जवाब देंहटाएंमुड़ गया हो सच की ओर ।
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
बहुत सुन्दर ...
अजय जी,
बधाई।
दिन में छोटा सा लगता रास्ता
जवाब देंहटाएंबहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
एक तसल्ली:
कोई तो है इसी राह पर ।
kitni gharayi se likhi hai ye kavita
har pankti ke bhaav bahut achhe lage
SAAF-SUTHREE KAVITA HAI.SAMAJHNE
जवाब देंहटाएंMEIN KAHIN KOEE DUROOHTAA NAHIN
HAI.ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AJAY
YAADAV JEE KO BADHAAEE.
sard raaten mukhrit ho gain.......
जवाब देंहटाएंbahut hi achha likha hai
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंदिन में छोटा सा लगता रास्ता
बहुत लम्बा हो चला है
-ब्रह्मांड फैलता जा रहा है
और कदम खुद-ब-खुद
तेज उठने लगते हैं ।
अजय जी,
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में गहन बात कह गये आप... बधाई
आपके नये तेवर पसन्द आये
बहुत अच्छी और सुलझी हुई रचना है अजय जी।
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
एक तसल्ली:
जवाब देंहटाएंकोई तो है इसी राह पर ।
sahitya ummide bandh sake aisi rachan lagi
nijii rup se bahut achhi lagi dhnyawad
एक तसल्ली:
जवाब देंहटाएंकोई तो है इसी राह पर ।
sahitya ummide bandh sake aisi rachan lagi
nijii rup se bahut achhi lagi dhnyawad
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