मधु अरोड़ा का जन्म जनवरी, १९५८ को हुआ। आप वर्तमान में भारत सरकार के एक संस्थान में कार्यरत हैं आपने अनेक सामाजिक विषयों पर लेखन, भारतीय लेखकों के साक्षात्कार तथा स्वतंत्र लेखन किया है। आपकी आकाशवाणी से कई पुस्तक-समीक्षायें प्रसारित हुई हैं। आपका मंचन से भी जुड़ाव रहा है।
मैं नारी हूँ आज की
पुरूष के कंधे से कंधे
मिलाकर चल रही हूँ।
मैं सफल विज्ञापन की
आवश्यक शर्त हूँ।
मैं सफल विवाहिता की
पहचान हूँ।
मैं मुग़ालते में हूँ
कि मैं स्वतंत्र हूँ।
जब खुद को ढूँढती हूँ
तो पाती हूँ कि
मेरा अपना कुछ नहीं है।
बात बात पर 'मेरा तेरा'
"हम" का तो
अस्तित्व खो गया।
प्यार के आगे प्रश्नचिन्ह है
अब सवाल "अधिकार" का है।
प्यार है सिसक रहा
मैं नारी,
प्रेम की प्रतिमूर्ति
कोमलता का आगार।
पल प्रतिपल हो रही हूँ
खंडित--- -खंडित।
हाँ, मैं नारी हूँ
तिल तिल जलती
रिश्तों में बंटी हुई
ज़िन्दगी जीती हूँ।
मेरे एहसास सिर्फ मेरे हैं
ये खुद से खुद जूझ रहे हैं
नये अर्थ ढूँढ रहे हैं।
मैं नारी,
देश की,विदेश की
कोई फर्क़ नहीं है।
हम सह रही हैं
जी रही हैं!
ज़िन्दगी के पाठ
पढ़ रही हैं।
20 टिप्पणियाँ
रचना करती, पाठ-पढ़ाती,
जवाब देंहटाएंआदि-शक्ति ही नारी है।
फिर क्यों अबला बनी हुई हो,
क्यों ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत,
इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
खोये हुए निज अस्तित्वों को,
भूतल पर लाना होगा।।
स्त्री विमर्श पर श्रेसःठ रचना।
जवाब देंहटाएंमैं नारी,
जवाब देंहटाएंदेश की,विदेश की
कोई फर्क़ नहीं है।
हम सह रही हैं
जी रही हैं!
ज़िन्दगी के पाठ
पढ़ रही हैं।
सशक्त अभिव्यक्ति है।
मैं मुग़ालते में हूँ
जवाब देंहटाएंकि मैं स्वतंत्र हूँ।
सच को आपने अभिव्यक्ति दी है। बहुत अच्छी कविता है।
इस संदर्भ को बहुत सरल शब्दों में गंभीरता से कविता में प्रस्तुत किया गया है। कुछ बदला नहीं है और अगर कुछ बदलाव महसूस भी होता है तो वह सतही है।
जवाब देंहटाएंमैं नारी,
जवाब देंहटाएंदेश की,विदेश की
कोई फर्क़ नहीं है।
हम सह रही हैं
जी रही हैं!
ज़िन्दगी के पाठ
पढ़ रही हैं।
प्रभावी कविता है।
Good Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी कविता है मधु जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंस्त्री विषयक अच्छी कविता है और प्रखर विचार सामने आये हैं। हाँ इस परिस्थिति से निकलने या लडने अथवा समाधान की बात कवयित्री नहीं कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंमधु जी
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। और फिर कहती है कि प्रश्न-चिन्ह हैं बहुत, इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा। कवियत्री ने समस्याओं का अनावरण किया है। हल बताना या झण्डाबरदार बनना उसका काम नहीं है। कविता पूरी तरह से सफल है।
तेजेन्द्र शर्मा
कथा यू.के., लन्दन
सहज और सामन्य शब्दों में आपने एक दर्शन लिख दिया.
जवाब देंहटाएंnaari ki pariveshiye manodasha ka safal chitran....
जवाब देंहटाएंमैं नारी,
जवाब देंहटाएंदेश की,विदेश की
कोई फर्क़ नहीं है।
हम सह रही हैं
जी रही हैं!
ज़िन्दगी के पाठ
पढ़ रही हैं।
सत्य।
निस्संदेह अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंहाँ, मैं नारी हूँ
जवाब देंहटाएंतिल तिल जलती
रिश्तों में बंटी हुई
ज़िन्दगी जीती हूँ।
मेरे एहसास सिर्फ मेरे हैं
ये खुद से खुद जूझ रहे हैं
नये अर्थ ढूँढ रहे हैं।
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
यह सच है तुम नारी हो एक नहीं दो-दो मात्राएँ'
जवाब देंहटाएंनर के ऊपर भारी हो.
राम, उमा, शारदा तुम्हीं हो,
नर कर जोड़े रहा खडा.
तुम ही श्रीफल की मिठास हो,
नर केवल आवरण कडा.
धरा-प्रकृति तुम,
नील गगन नर,
जीवन गाडी के पहिये.
कम न अधिक,
दोनों ही सम हैं
गफलत में क्यों कर रहिये?
जो देता डाटा कहलाता,
जो पाता वह याचक है.
नारी की ममता-क्षमता का
नर बेचारा वाचक है.
लाया-सौंपा, रिक्त हो गया,
फिर भी नहीं शिकायत की.
खुद को दिया,खुदी को पाया,
जग की यही रवायत थी. बहा न सकता आँसू भी नर,
कहा न कुछ भी मौन रहा.
लेकिन इसका अर्थ न यह है-
उसने कुछ भी नहीं सहा.
माटी-पत्थर दोनों ही को
सुख-दुःख पड़ता सहना है.
धुप-छाँव को व्यर्थ न मानो
यह जीवन का गहना है.
sanjivsalil.blogspot.com
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मेरे सभी पाठकों को कविता पसन्द आई, आभार। साहित्यशिल्पी टीम को साधुवाद कि आपने इस कविता को प्रकाशित किया।
जवाब देंहटाएंMADHU JEE.
जवाब देंहटाएंAAP MEIN KAVYITRI KAA
ROOP DEKH KAR BAHUT HEE ACHCHHA
LAGAA HAI.STREE VIMARSH PAR UMDAA
KAVITA HAI.PURUSH KE KANDHE SE
KANDHA MILAAKAR TO CHALTEE HEE STREE, BAAT TAB BANE JAB VAH STREE
KE KANDHE SE BHEE KANDHAA MILA KAR
CHALE.ACHCHHEE KAVITA KE LIYE AAPKO
NAANAA BADHAAEEYAN.
अच्छी कविता है बेशक पुरूष होने के कारण मैं भी घेरे में हूं
जवाब देंहटाएंसूरज
अच्छे शब्द-संयोजन के संग अच्छी कविता....
जवाब देंहटाएंमुक्त-छंद की होने के बावज्जूद गज़ब की लय के साथ
बधाई मधु जी !!!!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.