
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
तारों के तार बुन रही पलकों के कोर पर,
उस चाँदनी का हुस्न, गिरकर निखर गया।
चिलमन से छन-छनकर,
मुझको निहारती,
तेरी इस रोशनी से मैं
जी-जीकर मर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
विश्वदीपक ’तन्हा’ का जन्म बिहार के सोनपुर में २२ फरवरी १९८६ को हुआ था। आप कक्षा आठवीं से कविता लिख रहे हैं।
बारहवीं के बाद आपका नामांकन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर के संगणक विज्ञान एवं अभियांत्रिकी विभाग में हो गया। अंतरजाल पर कुछ सुधि पाठकगण और कुछ प्रेरणास्रोत मित्रों को पाकर आपकी लेखनी क्रियाशील है।
तेरे करीब में,
वक्त की सड़क पर यूँ
जम कर बिखर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
अलकों में रातरानी,
भौंह पर यह रात फ़ानी,
गालों पर आसमानी
सिंदुर की कहानी।
दर्पण थमा-थमाकर,
मेरी निगाह को,
सीसे-सा तेरा नूर तो
कई रूप धर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
ओठों पर भर-भराकर,
तुम्हारे लोच से
क्षितिज से टूटकर वो
इन्द्रधनक उतर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
गरदन पर धूप मानी,
काँधों पर छाँव दानी,
कटि पे बे-म्यानी
तलवार की निशानी।
नख-शिख यूँ रूमानी तुझे देखकर शायद,
जहाँ का हरेक शय,तुझमें हीं जड़ गया,
तेरी आँखों में आसमाँ आकर यूँ भर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
18 टिप्पणियाँ
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति है........मन के भावों को कलम से उतारने की भरपूर कला
भारतीय कव्यपरंपरा में नख-शिख वर्णन के अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं यह कविता अपने उपमानों के कारण विशेष है।
जवाब देंहटाएंप्रकृति का बिम्ब और नायिका का रूप चित्रण, बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंतूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
जवाब देंहटाएंसूरज के संवर जाने की बात अनूठी है।
behad khubsurat
जवाब देंहटाएंkhas baat ye hai ki behad romantic hai , rythmic hai aur hamesha ki tarah umda hai ...
जवाब देंहटाएंkoi rafi avaz de de to zinda bani rahe hamsesha hamesha ke liye ..
:)
नख-शिख यूँ रूमानी तुझे देखकर शायद,
जवाब देंहटाएंजहाँ का हरेक शय,तुझमें हीं जड़ गया,
तेरी आँखों में आसमाँ आकर यूँ भर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
sundar.
Alok Kataria
बहुत अच्छी कविता है तनहा जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंचिलमन से छन-छनकर,
जवाब देंहटाएंमुझको निहारती,
तेरी इस रोशनी से मैं
जी-जीकर मर गया,
वाह! क्या बात है...
एसी उत्कृष्ट कोटि की प्रेम कवितायें कम पढने को मिलती हैं।
जवाब देंहटाएंतनहा जी की कवितायें अब संग्रह हो कर प्रकाशन चाहती हैं उन्हे बडे पाठक वर्ग तक पहुँचाना आवश्यक हो गया है। उनके भीतर का कवि न केवल परिपक्व है अपितु अपने अनूठे शब्द प्रयोग व भाव संसार के प्रस्तुतिकरण से काव्य जगत को ताजगी भी प्रदान कर रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंwah kitni sundar abhivayakti
जवाब देंहटाएंbhaut kaamaal likhte ho
shabad jaise moti ki tarah hote hain
:))
जवाब देंहटाएंसुन्दर उपमानों से सजी रचना.. बधाई
जवाब देंहटाएंगरदन पर धूप मानी,
जवाब देंहटाएंकाँधों पर छाँव दानी,
कटि पे बे-म्यानी
तलवार की निशानी।
bahut badiya
achhi lagi sir
चिलमन से छन-छनकर,
जवाब देंहटाएंमुझको निहारती,
तेरी इस रोशनी से मैं
जी-जीकर मर गया,
तूने उठाई पलकें जो, सूरज सँवर गया।
वाह....
तनहा जी,
बधाई।
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