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क्रांति की बातें मत करो..[कविता] - विश्वरंजन



साहित्य शिल्पीकवि परिचय:-


विश्वरंजन का जन्म 1 अप्रैल 1952 को गया बिहार में हुआ। आपने पटना विश्वविद्यालय से बी.ए ऑनर्स की डिग्री हासिल की जिसके पश्चात आपका चयन भारतीय पुलिस सेवा में हो गया। आप मशहूर शायर फ़िराक गोरखपुरी के नाती हैं। आप देश की लगभग सभी पत्र-पत्रिकाओं में समादृत हैं। आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं – स्वप्न का होना बेहद ज़रूरी है (काव्य संग्रह), एक नयी पूरी सुबह (एकाग्र)। आपने अनेक कविताओं का अंग्रेजी, बांग्ला व तेलुगु से अनुवाद भी किया है। वर्तमान में आप छतीसगढ के पुलिस महानिदेशक हैं।

गरम हवा लहरों के उपर
होठों पर है गरम सलाख
उखडती साँस
सूखती आँत
ज़मीन पर रेंगता खूनी पंजा!

सूखे पेड और
पेडों की बीच उडती चिनगारी
दर्द उफनता
धीरे धीरे
भडक उठती है सहसा आग
घावों पर नमक छिडकता पानी!

दो साँसों के बीच की दूरी
नाप रही है
आग चुपचाप
आँखों में लू का पानी!

एसे में जन्मे शब्दों के
उद्वेग छीनने वाले तुम
नहीं करो बदलाव की बातें
क्रांति की बातें मत करो..

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13 टिप्पणियाँ

  1. दो साँसों के बीच की दूरी
    नाप रही है
    आग चुपचाप
    आँखों में लू का पानी!

    एसे में जन्मे शब्दों के
    उद्वेग छीनने वाले तुम
    नहीं करो बदलाव की बातें
    क्रांति की बातें मत करो..

    बहुत अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  2. बिम्ब जटिल हैं लेकिन कविता प्रभावी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही अच्छी कविता.. बधाई स्वीकारें... छतीसगढ घूमते समय आपकी बाते मिलकुल सच साबित होती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. एसे में जन्मे शब्दों के
    उद्वेग छीनने वाले तुम
    नहीं करो बदलाव की बातें
    क्रांति की बातें मत करो..

    लेकिन सत्यता यही है कि एसे शब्दों के उद्वेग छीनने वाले ही ताल ठोंक कर बदलाव की बातें करते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  5. "घावों पर नमक छिडकता पानी!"
    परिवर्तन प्राकृतिक है और उसे कोई नही टाल सकता ..परिवर्तन जब आमूल चूल हो और वेग के साथ हो तो वह क्रांति हो जाता है . पर उस की आत्मा प्राकृतिक ही रहे तो बेहतर है . इस समय में हम क्रन्तिकारी आन्दोलन देख रहे हैं जो की प्राकृतिक नही हैं | उनका ध्येय और उनका भविष्य परिभाषित करना कठिन हो गया है कि वे किस के लिए हैं और किस के ख़िलाफ़.. ऐसे तमाम आंदोलनों पर प्रश्न और कटाक्ष करती हुई कविता .. खूबसूरत ..

    जवाब देंहटाएं
  6. कविता वह कह जाती है जिसे कहने की आज के समय में कोई हिम्मत ही नहीं कर रहा।

    जवाब देंहटाएं
  7. बदलाव की बातों के खोखलेपन को आपकी कविता नें उजागर कर दिया है।

    जवाब देंहटाएं
  8. एसे में जन्मे शब्दों के
    उद्वेग छीनने वाले तुम
    नहीं करो बदलाव की बातें
    क्रांति की बातें मत करो..

    Truth. Thanks.

    Alok Kataria

    जवाब देंहटाएं
  9. जटिल किंतु प्रभावशाली कविता ....

    जवाब देंहटाएं
  10. आदरनीय विश्वरंजन जी की यह रचना प्रतीत होता है परिस्थिति जन्य है। उत्क्ट्ष्ट बिम्ब रचना को उँचायी प्रदान कर रहे हैं और कटु सत्य से रचना विस्तार पाती है जहाँ आप लिखते हैं -

    एसे में जन्मे शब्दों के
    उद्वेग छीनने वाले तुम
    नहीं करो बदलाव की बातें
    क्रांति की बातें मत करो..

    ***राजीव रंजन प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
  11. यह रचना साहित्य शिल्पी पर छपी सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है .. विश्वरंजन जी को शिल्पी पर लाने का आभार
    http://alokshankar.tk
    http://shankaralok.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  12. एसे में जन्मे शब्दों के
    उद्वेग छीनने वाले तुम
    नहीं करो बदलाव की बातें
    क्रांति की बातें मत करो..



    कटु सत्य ....

    प्रभावी कविता |

    जवाब देंहटाएं

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