
हिन्दी साहित्य के इतिहास के पिछले अंकों में हमने आदिकालीन इतिहास से लेकर ज्ञानमार्गी भक्ति धारा के कबीर और रविदास तक का अध्ययन किया। आज हम बात करते हैं इस शाखा के अन्य प्रतिनिधि कवियों की जिनमें प्रमुख हैं - गुरु नानक, दादू दयाल, सुंदर दास, मलूक दास आदि।
गुरु नानक: सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव ने पंजाब में निर्गुण ब्रह्म का गुणगान किया। यह वह दौर था जब सारे पंजाब में मुस्लिम धर्म का एकैश्वरवाद अपनी जड़ें जमा रहा था और कुछ लोग जहाँ जबरन मुस्लिम बनाये जा रहे थे वहीं कुछ अन्य स्वेच्छा से भी(यद्यपि इनकी संख्या बहुत नहीं थी) इसे अपना रहे थे। गुरु नानक देव के बारे में अधिक जानकारी साहित्य शिल्पी में प्रकाशित उनके जीवन-परिचय से प्राप्त की जा सकती है। नानक ने मुख्यत: कबीर और रविदास का ही अनुसरण किया और एक निर्गुण ब्रह्म, मानवमात्र की समानता आदि पर जोर देते रहे। कबीर के विपरीत इन्होंने अपनी बात बड़े सीधे-सादे ढंग से कही जो इनके चरित्र की विशेषता थी। इनकी काव्य-भाषा पंजाबी और ब्रजभाषा है। इनकी अधिकांश रचनाओं का संग्रह गुरु ग्रंथ साहिब में है।

दादू दयाल: दादू दयाल ने अपने मत का प्रचार मुख्यत: राजस्थान, गुजरात आदि में किया। यद्यपि इन्होंने भी दादू-पंथ नाम से अलग पंथ चलाया पर वैचारिक स्तर पर ये भी कबीर के अनुयायी प्रतीत होते हैं। कबीर ही कि तरह इनके जन्म के संबंध में भी लोक-प्रचलित है कि ये संवत १६०१ में लादीराम नामक नागर ब्राह्मण को साबरमती नदी में बहते मिले थे। इनका अधिकांश समय आमेर, मारवाड़, बीकानेर आदि में बीता परंतु अंतिम समय में ये जयपुर के निकट नराना नामक स्थान पर निवास करने लगे और यहीं नज़दीक ही स्थित भराने की पहाड़ियों में संवत १६६० में इनका शरीरांत हुआ जो वर्तमान में दादू-पंथियों का प्रमुख स्थान है।
दादू ने अपने उपदेश कबीर ही की तरह प्राय: दोहों में दिये परंतु इनके कुछ गीति-पद भी मिलते हैं। इनकी भाषा राजस्थानी मिश्रित पश्चिमी हिन्दी है और शैली कबीर की अपेक्षा कम चमत्कारपूर्ण, गम्भीर और भावप्रवण है। इनकी रचनाओं के कुछ अंश नीचे उद्धृत हैं:
यह मसीत यह देहरा, सतगुरु दिया दिखाइ।भीतर सेवा बंदगी, बाहिर काहे जाइ॥केते पारखि पचि मुए, कीमति कही न जाइ।दादू सब हैरान हैं, गूँगे का गुड़ खाइ॥दादू देख दयाल को, सकल रहा भरपूर।रोम-रोम में रमि रह्या, तू जनि जानै दूर॥

लेखक परिचय:-
अजय यादव अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा आपकी रचनायें कई प्रमुख अंतर्जाल पत्रिकाओं पर प्रकाशित हैं।
आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
सुंदर दास: इनका जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के द्यौसा नामक स्थान पर संवत १६५३ में हुआ। बचपन में ही ये दादू दयाल के शिष्य हो गये और उनकी मृत्यु तक उनके साथ नराना में रहे। बाद में काशी जाकर उन्होंने संस्कृत, व्याकरण, वेदान्त आदि का अध्ययन किया। सभी निर्गुण भक्त कवियों में संभवत: एकमात्र यही पढ़े-लिखे थे और शायद इसीलिये इनकी रचनायें छंदशास्त्र के अधिक अनुकूल हैं। इन्होंने गाने के पद और दोहों के अतिरिक्त अनेक कवित्त, सवैये आदि भी लिखे। सुन्दरविलाप इनका सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ है। इनका निधन संवत १७४६ को साँगानेर में हुआ।
गेह तज्यो अरु नेह तज्यो पुनि खेह लगाइ के देह सँवारी।मेह सहे सिर, सीत सहे तन, धूप सही जो पंचागिनि बारी।भूख सही रहि रूख तरे, पर सुन्दरदास सबै दुख भारी।डासन छाँड़िकै कासन ऊपर आसन माऱ्यौ, पै आस न मारी॥
मलूक दास: कड़ा (जिला- इलाहाबाद) में संवत १६३१ में जन्मे मलूकदास भी एक नामी निर्गुण संत हैं जिनके अनेक चमत्कार प्रसिद्ध हैं। रत्नखान और ज्ञानबोध इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इनकी काव्य-भाषा भी अपेक्षाकृत सुव्यवस्थित और सुंदर है जिसमें कहीं-कहीं कवित्त आदि छंद भी पाये जाते हैं। इनकी मृत्यु संवत १७३९ में हुई। इनका एक पद देखें:
अब तो अजपा जपु मन मेरे।सुर नर असुर टहलुआ जाके, मुनि गंधर्व हैं जाके चेरे।दस औतारि देखि मत भूलौ, ऐसे रूप घनेरे॥अलख पुरुष के हाथ बिकाने, जब तै नैंननि हेरे।कह मलूक तू चेत अचेता, काल न आवै नेरे॥
और हाँ, आलसियों का यह प्रसिद्ध महामंत्र भी इन्हीं का है:
अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।दास मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
इन कुछ प्रसिद्ध संतों के अतिरिक्त ज्ञानमार्गी भक्ति शाखा में अक्षर अनन्य, जगजीवनदास, भीखा साहिब, पलटू साहिब आदि अनेक अन्य संत-कवि हुए पर अपनी साहित्यिक क्षमता और जन-सामान्य पर प्रभाव की दृष्टि से ये कुछ नाम ही इस काव्य-धारा के प्रतिनिधि माने जा सकते हैं।
हिन्दी साहित्य के इतिहास के अगले अंकों में हम भक्ति की सगुण धारा के संतों का साहित्यिक दृष्टि से विवेचन करने का प्रयास करेंगे।
हिन्दी साहित्य के इतिहास के अन्य अंक : १) साहित्य क्या है? २)हिन्दी साहित्य का आरंभ ३)आदिकालीन हिन्दी साहित्य ४)भक्ति-साहित्य का उदय ५)कबीर और उनका साहित्य ६)संतगुरु रविदास ८)प्रेममार्गी भक्तिधारा ९)जायसी और उनका "पद्मावत"
10 टिप्पणियाँ
यह स्तंभ नीयमित नहीं है इस बात की शिकायत के साथ कहूँगी कि अच्छी कडी है। इसे निर्धारित दिन दीजिये।
जवाब देंहटाएंअच्छा और संग्रहणीय आलेख है। बधाई।
जवाब देंहटाएंGood Article.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अजय जी तीन महत्वपूर्ण कवियों को प्रस्तुत किया आपने लेकिन बस एक एक पैरा में। थोडा विस्तार देते।
जवाब देंहटाएंज्ञान मार्गी भक्ति शाखा के कवियों पर प्रशंसायोग्य लेख है। उदाहरण भी अच्छे लिये गये हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अजय जी। पठनीय व प्रिंट कर सहेज रखने योग्य सामग्री प्रस्तुत की है आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंएसे महत्वपूर्ण लेखों से लोग तभी जुडेंगे जब इनका दिन व समय तय हो।
जवाब देंहटाएंअनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
अजय जी,
जवाब देंहटाएंआप इस स्तंभ के लिये बहुत मेहनत कर रहे हैं.. और यह एक संग्रहणीय सामाग्री है.. इसके लिये आभार
Is panth ke sakhi bhaw ke Santo ka bhi ullekh kriye
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.