
अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
सुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।
ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
चटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।
चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।
मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
ज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।
पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।
डॉ॰ कुँअर बेचैन का जन्म ग्राम उमरी, जिला मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में 01 जुलाई 1942 को हुआ। आपका मूल नाम कुँअर बहादुर सक्सेना है। आप के प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं - गीत-संग्रह: पिन बहुत सारे (1972), भीतर साँकलः बाहर साँकल (1978), उर्वशी हो तुम, (1987), झुलसो मत मोरपंख (1990), एक दीप चौमुखी (1997), नदी पसीने की (2005), दिन दिवंगत हुए (2005), ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के (1983), महावर इंतज़ारों का (1983), रस्सियाँ पानी की (1987), पत्थर की बाँसुरी (1990), दीवारों पर दस्तक (1991), नाव बनता हुआ काग़ज़ (1991), आग पर कंदील (1993), आँधियों में पेड़ (1997), आठ सुरों की बाँसुरी (1997), आँगन की अलगनी (1997), तो सुबह हो (2000), कोई आवाज़ देता है (2005);कविता-संग्रह: नदी तुम रुक क्यों गई (1997), शब्दः एक लालटेन (1997); पाँचाली (महाकाव्य)
19 टिप्पणियाँ
जलती हुई जो आग है, समेट लीजिए,
जवाब देंहटाएंजाड़ों में इससे तापिये, मन को न दाबिए।
तन की न अग्नि मन्द हो,यह ध्यान में रहे-
इस आग के अम्बार को, सीने में दाबिए।।
अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
जवाब देंहटाएंसुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।
वाह वाह। बहुत खूब।
मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
जवाब देंहटाएंज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।
पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।
हर शेर प्रभावी है।
मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
जवाब देंहटाएंज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।
पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।
रचना के तेवर प्रभावी हैं। बहुत अच्छी ग़ज़ल है। डॉ. बेचैन को हार्दिक बधाई।
अब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
जवाब देंहटाएंसुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।
पाठक मतले से हीं गज़ल से बँध जाता है। हर एक शेर एक से बढकर एक है और हो भी क्यूँ ना कुँअर जी की गज़ल है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
आदरणीय कुँअर बेचैन साहब की इस ग़ज़ल के हर एक शेर में गहरायी है, गंभीरता है और आग है। साहित्य शिल्पी पर इस ग़ज़ल के प्रस्तुतिकरण का आभार।
जवाब देंहटाएंजीवित उपमान हैं। आपकी ग़ज़लों की बात ही जुदा है।
जवाब देंहटाएंऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
चटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।
पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।
Wwwwwwwaaaaahhhhh !
जवाब देंहटाएंThanks sir.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
kunvar bechain ji ki tareef kaise kari jaye aur kaise na kari jaye dono hi asmanjas hai
जवाब देंहटाएंहाल में साहित्य शिल्पी पर छंद विरोधी बातें कही गयी थीं। जिन संदर्भों के लिये यह कहा गया था आपगी गज़ल माकूल जवाब है।
जवाब देंहटाएंअब आग के लिबास को ज्यादा न दाबिए।
सुलगी हुई कपास को ज्यादा न दाबिए।
अनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
मुमकिन है खून आपके दामन पे जा लगे
जवाब देंहटाएंज़ख़्मों के आस पास यों ज्यादा न दाबिए।
bhaut achha sher
Dr kunwar bachin ji ko padhna bahut achha laga
Dr.Kunwar bechain jee kee gazal kaa
जवाब देंहटाएंhar sher behtreen hai.Bechain jee
un gazalkaron mein hai jinhone
gazal vidhaa ko chaar chaand lagaye
hain.
कुँअर बेचैन जी की हर रचना अपने आप में लाजवाब है
जवाब देंहटाएंadarniya bechian ji apki rachnaon ki tarif karen usme apna dard khojen samj ka pratibibm dekhen logon ko man sikta dekhne ya fir aaj ke samaj ka charitra?bas jaisa chhen waisa dekh len wakai aap dil ke dard ko uker dete hain!
जवाब देंहटाएंजी बहुत सुन्दर गजल है... सांईस के हिसाव से भी सटीक...एवरी एक्शन हेज इक्वल ऐंड अपोजिट रिएक्शन...
जवाब देंहटाएंचुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।
पीने लगे न खून भी आँसू के साथ-साथ
यों आदमी की प्यास को ज्यादा न दाबिए।
ऐसा न हो कि उँगलियाँ घायल पड़ी मिलें
जवाब देंहटाएंचटके हुए गिलास को ज्यादा न दाबिए।
चुभकर कहीं बना ही न दे घाव पाँव में
पैरों तले की घास को ज्यादा न दाबिए।
बहुत सुन्दर गजल....
कुँअर जी,
बधाई
bahut achi gazal..
जवाब देंहटाएंhar sher prabhavi..
sakhi
यह भी कहे
जवाब देंहटाएंथोडे से जीवन मे आस ज्यादा मत रखिये।
अदना सा हैं अस्तित्व खुदा से मत जोडिये।
राह घना अंधेरे खोने का डर कदम न रखिये।
सावधानी थोड़ा सबक ओरो का भी लीजिये।।
बहुत अच्छा कहा।धन्यवाद ।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.