लिखती हूँ रोज़
एक पाती नेह की
और तुम्हें बुलाती हूँ
पर तुम नहीं आते
शायद वो पाती
तुम तक जाती ही नहीं
दिल की पाती है ना-
शोभा महेन्द्रू का जन्म देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। लेखन में आपकी रुचि प्रारम्भ से ही रही है। कभी आक्रोश, कभी आह्लाद, कभी निराशा लेखन में अभिव्यक्त होती रही किन्तु जो भी लिखा स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में आपकी विशेष रुचि है। आपने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है। वर्तमान में फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं। अंतर्जाल पर आप सक्रिय हैं।
नाजाने कितनी बार
द्वार खटखटाती होगी
तुम्हें व्यस्त पाकर
बेचारी द्वार से ही
लौट आती होगी
तुम्हारी व्यस्तता
विमुखता लगती है
और झुँझलाहट
उस पर उतरती है
इसको चीरती हूँ
फाड़ती हूँ
टुकड़े-टुकड़े
कर डालती हूँ
मन की कातरता
सशक्त होती है
बेबस होकर
तड़फड़ाती है
और निरूपाय हो
कलम उठाती है
भावों में भरकर
पाती लिख जाती है
ओ निष्ठुर !
कोई पाती तो पढ़ो
मन की आँखों से
देखो----
तुम्हारे द्वार पर
एक ऊँचा पर्वत
उग आया है
मेरी पातियों का
ये पर्वत--
बढ़ता ही जाएगा
और किसी दिन
इसके सामने
तुम्हारा अहम्
बहुत छोटा हो जाएगा
*****
19 टिप्पणियाँ
बहुत उम्दा भाव!!!
जवाब देंहटाएंमेरी पातियों का
जवाब देंहटाएंये पर्वत--
बढ़ता ही जाएगा
और किसी दिन
इसके सामने
तुम्हारा अहम्
बहुत छोटा हो जाएगा
सुन्दर अति सुन्दर।
और किसी दिन
जवाब देंहटाएंइसके सामने
तुम्हारा अहम्
बहुत छोटा हो जाएगा
उम्मीद तो है कि एसा ही हो, प्राय: अहं के आगे भावना के पहाड छोटे ही पडते हैं। बहुत अच्छी कविता है।
बहुत उम्दा सुन्दर भाव...
जवाब देंहटाएंNice Poem. Deep Thoughts.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत ही सुन्दर भाव हैं!
जवाब देंहटाएंShobha jee ,
जवाब देंहटाएंkavyabhivyakti bahut sunder
hai.Aapkee kavita padh kar urdu
ke mashhoor ustaad shayar Pt.Mela
Ram wafaa ka sher yaad aa gayaa hai
lifaafe mein purje
mere khat ke hain
mere khat kaa aakhir
jawaab aa gayaa
सुंदर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंमेरी पातियों का
जवाब देंहटाएंये पर्वत--
बढ़ता ही जाएगा
और किसी दिन
इसके सामने
तुम्हारा अहम्
बहुत छोटा हो जाएगा
वाह शोभा जी, खूब कहा आपनें।
सुन्दर संवेदनायें।
जवाब देंहटाएंशोभा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता में बहुत से संदर्भ गुथे जान पडते हैं। शिष्ठ संदर्भों को कोमल शब्द दे कर आप पाठक के मनो मष्तिष्क पर प्रभावी चोट करने में सफल हैं।
***राजीव रंजन प्रसाद
bahut sundar kavita..
जवाब देंहटाएंओ निष्ठुर !
जवाब देंहटाएंकोई पाती तो पढ़ो
मन की आँखों से
देखो----
तुम्हारे द्वार पर
एक ऊँचा पर्वत
उग आया है
bhaut bahut achha bhaut bhavuk
बहुत सुन्दर भावभीनी रचना.
जवाब देंहटाएंपातियों के पर्वत से अहम की तुलना..सुन्दर लगी.
बहुत अच्छी कविता है शोभा जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंअहं के पर्वत भी मोम हो सकते हैं उन्हे पाती मत लिखिये, यह कविता सुनाईये।
जवाब देंहटाएंakhiri d line sach me bahut achi hain
जवाब देंहटाएंachhi lagi
dhayawad is yogdan ke liye
!
जवाब देंहटाएंकोई पाती तो पढ़ो
मन की आँखों से
देखो----
तुम्हारे द्वार पर
एक ऊँचा पर्वत
उग आया है
और किसी दिन
इसके सामने
तुम्हारा अहम्
बहुत छोटा हो जाएगा
सुन्दर अभिव्यक्ति...
भावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.