जीवन को सारे प्रश्नों के हल देते तुम बाबूजी
सबके हिस्से शीतल छाया, अपने हिस्से धूप कड़ी
गर होते तो काहे ऐसे पल देते तुम बाबूजी
माँ तो जैसे – तैसे रुखे सूखे टूकड़े दे पायी
गर होते तो टाफ़ी, बिस्कुट, फल देते तुम बाबूजी
अपने बच्चों को अच्छा – सा वर्तमान तो देते ही
जीवन भर को एक सुरक्षित कल देते तुम बाबूजी
काश तरक्की देखी होती अपने नन्हें-मुन्नों की
फिर चाहे तो इस दुनिया से चल देते तुम बाबूजी
दिनेश रघुवंशी का जन्म 26 अगस्त 1964 में खैरपुर (बुलंदशहर) उ.प्र में हुआ। आपने मेरठ विश्वविद्यालय से एम. कॉम तक की शिक्षा प्राप्त की है।
आपकी प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ हैं - आसमान बाक़ी है (ग़ज़ल संग्रह) दो पल (ग़ज़ल संग्रह) अनकहा इससे अधिक है (गीत संग्रह)। आप अनेक साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित हैं तथा लगभग सभी प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित ही हैं। आपने आकाशवाणी, टाइम्स एफ॰ एम॰, दूरदर्शन, साधना, एन॰ डी॰ टी॰ वी॰, जी॰ टी॰ वी॰, जनमत व अन्य अनेक चैनल्स पर कवि-सम्मेलनों का मंच संचालन एवं काव्य-प्रस्तुति की है।
15 टिप्पणियाँ
माँ और पिता पर बहुत सी ग़ज़लें और कविताएं पढ़ने को मिलती रहती हैं। दिनेश जी की पिता पर यह ग़ज़ल भी मन को छूती है। अभी पीछे "वाटिका" पर आलोक श्रीवास्तव की दस ग़ज़लें प्रकाशित की थीं। उनमें भी माँ और पिता पर बहुत बेहतरीन ग़ज़लें शामिल हैं। पिता पर उनकी ग़ज़ल के चंद शे'र दे रहा हूँ, आप भी लुफ्त उठाएं :-
जवाब देंहटाएंघर की बुनियादें, दीवारें, बामो-दर थे बाबूजी
सबको बाँधे रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबूजी
तीन मुहल्लों में उन जैसी क़द-काठी का कोई न था
अच्छे-ख़ासे, ऊँचे-पूरे, क़द्दावर थे बाबूजी
अब तो उस सूने माथे पर कोरेपन की चादर है
अम्माजी की सारी सजधज, सब जेवर थे बाबूज़ी
पिता पर यह ग़ज़ल भी मन को छूती है,शुभकामना सहित,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है। बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंमाँ पर बहुत संवेदनशील रचनायें पढी हैं किंतु पिता पर इतना प्रभावी कम ही लेखन मिलता है। दिनेश जी आभार आपका।
जवाब देंहटाएंdinesh raghuvashi ji ko hardik badhai
जवाब देंहटाएंबाबूजी के प्रति अथाह प्रेम देखकर अच्छा लगा ...अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढिया गजल है।मन को छूती हुई।
जवाब देंहटाएंकाश तरक्की देखी होती अपने नन्हें-मुन्नों की
फिर चाहे तो इस दुनिया से चल देते तुम बाबूजी
सबके हिस्से शीतल छाया, अपने हिस्से धूप कड़ी
जवाब देंहटाएंगर होते तो काहे ऐसे पल देते तुम बाबूजी
अच्छी कविता बढिया गजल है.....
बच्चों के सर पर पिता का साया बहुत ज़रूरी है....
जवाब देंहटाएंबढिया गज़ल
बहुत खूब लिखा है ...
जवाब देंहटाएंगहरी प्यास को जैसे मीठा जल देते तुम बाबूजी
जीवन को सारे प्रश्नों के हल देते तुम बाबूजी
मन भावुक हो गया
अपने बच्चों को अच्छा – सा वर्तमान तो देते ही
जीवन भर को एक सुरक्षित कल देते तुम बाबूजी
अच्छी रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
bahut sunder hridaysparshi rachna ke liye badhaai sweekaren. swapn
जवाब देंहटाएंआँख भर आये एसी ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मन को भाती रचना..
जवाब देंहटाएंसबके हिस्से शीतल छाया, अपने हिस्से धूप कड़ी
गर होते तो काहे ऐसे पल देते तुम बाबूजी
mata pita ishvar ke agde aise do swarup ya kahe unka duar arup unke smaran or unki bate dil ko chhu jati hain
जवाब देंहटाएंbahut achhi rachna
ये बाबूजी शब्द आया नही कि आँखों में बरसातें शुरू हो जाती है
जवाब देंहटाएंकाश तरक्की देखी होती अपने नन्हें-मुन्नों की
फिर चाहे तो इस दुनिया से चल देते तुम बाबूजी
सच लगता है कि थोड़े दिन तो रहे होते मैं उनके सपनो के रेखाचित्र में रंग भरने के लिये तूलिका तो उठा ही चुकी थी, थोड़ा सा समय तो दिया होता..काश...
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