
देवेश वशिष्ठ उर्फ खबरी का जन्म आगरा में 6 अगस्त 1985 को हुआ। लम्बे समय से लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र से जुडे रहे हैं। आपने भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रिकारिता विश्वविद्यालय से मॉस कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन की और फिर देहरादून में स्वास्थ्य महानिदेशालय के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाने लगे। दिल्ली में कई प्रोडक्शन हाऊसों में कैमरामैन, वीडियो एडिटर और कंटेन्ट राइटर की नौकरी करते हुए आपने लाइव इंडिया चैनल में असिस्टेंट प्रड्यूसर के तौर पर काम किया। बाद में आप इंडिया न्यूज में प्रड्यूसर हो गय्रे। आपने तहलका की हिंदी मैगजीन में सीनियर कॉपी एडिटर का काम भी किया है। वर्तमान में आप पत्रकारिता व स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
एक सपना देखा अभी,
आधी रात को
और फिर नहीं लगी आंख...
अब धुंधला सा याद है बस
सीढ़ीदार खेत थे पहाड़ियों के...
और एक ढलान पर एक गांव
सीढ़ियों के रास्ते वाला गांव
टूटी सीढ़ियां... पहाड़ी लाल पत्थरों की
बीच में कुछ घर थे...
बुरांश के पेड़ों से ढंके...
एक हाथी था...
उस पर इंद्र...
उसकी शक्ल मिलती थी मुझसे बहुत कुछ
वो स्वर्ग था...
आज रात में फिर स्वर्गवासी हुआ...
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मुझे फेंक दिया किसी ने वहां से
शायद चुक गये थे मेरे पुण्य पिछले जन्मों के
या शायद मंहगा था वो स्वर्ग
मिट्टी के कुल्हड़ों वाला...
गर्म दूध वाला...
चढ़े और ढ़ले रास्तों वाला...
उस पहाड़ी का वो गीला मौसम
बहुत याद आता है...
और तुम भी,
गीली- गीली...
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तुम्हारी याद को लिख लेता हूं सबके लिये
ये सोचे बगैर कि सब सवाल करेंगे
और निरुत्तर हो जाऊंगा मैं...
तुम्हारी याद को रख लेता हूं बटुए की उस जेब में...
जहां रखा है शगुन का सिक्का,
कि पर्स खाली न रहे कभी...
तुम्हारी घाव को सी लिया है आज
फटे घाव के साथ...
कि तुम मिल जाओ मेरे खून में...
और अगले जन्म में...
बेटा बनूं तुम्हारा...
या
तुम बेटी मेरी।
ये वादा रहा...
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15 टिप्पणियाँ
गूढ दार्शनिकता लिये दिव्यास्वपन रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब खबरी भाई ।
जवाब देंहटाएंगहन भावों की बहुत ही सुन्दर मनोरम अभिव्यक्ति प्रशंशनीय है...WAAH !
जवाब देंहटाएंतुम्हारी घाव को सी लिया है आज
जवाब देंहटाएंफटे घाव के साथ...
कि तुम मिल जाओ मेरे खून में...
और अगले जन्म में...
बेटा बनूं तुम्हारा...
या
तुम बेटी मेरी।
ये वादा रहा..
बहुत सुन्दर देवेश जी।
नयी सी लगी कविता। बहुत अच्छे भाव हैं।
जवाब देंहटाएंऔर अगले जन्म में...
जवाब देंहटाएंबेटा बनूं तुम्हारा...
या
तुम बेटी मेरी।
ये वादा रहा...
सुन्दर।
सुन्दर कविता है, बहुत अच्छे भाव,प्रशंशनीय....
जवाब देंहटाएंकविता साहित्य शिल्पी पर उँचे मानक स्थापित करती है, बहुत बधाई देवेश जी।
जवाब देंहटाएंभावों की बहुत ही सुन्दर मनोरम अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंदेवेश की अन्य कविताओं की तुलना में इस कविता में कलात्मकता अधिक है। उपमाओं का उत्तम प्रयोग है और इस लिये कविता गहरे उतरती है|
जवाब देंहटाएंलगा जैसे मैँ खुद स्वप्नलोक में पहुँच गया हूँ....
जवाब देंहटाएंगूढता लिए सुन्दर कविता
तुम्हारी घाव को सी लिया है आज
जवाब देंहटाएंफटे घाव के साथ...
कि तुम मिल जाओ मेरे खून में...
और अगले जन्म में...
बेटा बनूं तुम्हारा...
या
तुम बेटी मेरी।
सुन्दर अभिव्यक्ति ....
अच्छी कविता है!
जवाब देंहटाएंएक प्रभावी रचना के लिये बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएं"तुम्हारी घाव को सी लिया है आज
जवाब देंहटाएंफटे घाव के साथ...
कि तुम मिल जाओ मेरे खून में..."
एक अनूठी रचना .. आप का अपना हस्ताक्षर है जो आप को लेखको की एक अलग श्रेणी में रखता है |
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.