
अभिषेक तिवारी "कार्टूनिष्ट" ने चम्बल के एक स्वाभिमानी इलाके भिंड (मध्य प्रदेश्) में जन्म पाया। पिछले २३ सालों से कार्टूनिंग कर रहे हैं। ग्वालियर, इंदौर, लखनऊ के बाद पिछले एक दशक से जयपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ कर आम आदमी के दुःख-दर्द को समझने की और उस पीड़ा को कार्टूनों के माध्यम से साँझा करने की कोशिश जारी है.....
11 टिप्पणियाँ
हा हा हा....बहुत बढिया...मज़ेदार
जवाब देंहटाएंइस सेना को तोडे, है किसी जोडे में हिम्मत?
जवाब देंहटाएंहा हा बहुत अच्छा है...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है।
जवाब देंहटाएंएक आग का दरिया है :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है।
जवाब देंहटाएंयानी बेचारों का पिटना तय है केरेक्टर कोई भी हो।
जवाब देंहटाएंआपके कार्टून हमेशा ही अच्छे होते हैं।
जवाब देंहटाएं"बाप सेना" का कुछ नहीं हो सकता :)
जवाब देंहटाएंप्रेम पार्क कहां पर है :)
जवाब देंहटाएंप्रेम कहां पकड में आता है या मिटता है.. तख्तो ताज ठुकरा कर भी लोग इस राह पर चले हैं..
तीव्र कटाक्ष लिये बेहतरीन कार्टून
लट्ठ चलाने से नहीं, जल में पड़े दरार
जवाब देंहटाएंतुम बाहर टकरा रहे, अन्दर जारी प्यार.
अन्दर जारी प्यार, न रोके कभी रुकेगा.
नीची होगी मूँछ, खिला गुल नए चुकेगा.
कहे 'सलिल' कविराय, प्रेम के बनो न दुश्मन.
भंवरा-कली न हों तो, सूना लगे अंजुमन.
सटीक व्यंग चित्र हेतु बधाई.
-sanjivsalil.blogspot.com
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