
अभिषेक तिवारी "कार्टूनिष्ट" ने चम्बल के एक स्वाभिमानी इलाके भिंड (मध्य प्रदेश्) में जन्म पाया। पिछले २३ सालों से कार्टूनिंग कर रहे हैं। ग्वालियर, इंदौर, लखनऊ के बाद पिछले एक दशक से जयपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ कर आम आदमी के दुःख-दर्द को समझने की और उस पीड़ा को कार्टूनों के माध्यम से साँझा करने की कोशिश जारी है.....
12 टिप्पणियाँ
हा हा!! तो फिर सुनाऊँ किसको. :)
जवाब देंहटाएंअच्छा व्यंग है
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
ऐसा कैसे हो सकता है......
जवाब देंहटाएंये कवित्त नहीं रस की धारा,
जिसे बहाने आयी बाला,
सुनोगे नहीं तो कैसे जानोगे कि कैसी लिखता हूं।
जवाब देंहटाएंअच्छा कार्टून । बोलता हुआ।
सारे कवियों दर्द समा कर भी हँसाता हुआ...
जवाब देंहटाएंबधाई अभिषेक जी को
सुनाये बिना भी अवसाद नहीं जाता :)
जवाब देंहटाएंअच्छा कार्टून है। बधाई।
जवाब देंहटाएंबेचारा डॉक्टर।
जवाब देंहटाएंअवसाद बढ जायेगा कविता को श्रोता नहीं मिला तो।
जवाब देंहटाएंमुझे सुना दीजिये मगर एक सुननी भी पडेगी :)
जवाब देंहटाएंश्रोता बन जाऊंगा, शर्त यह है मगर
सुना कर अपना पल्ला न छुडा लीजिये
अभिषेक जी, आपका जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएंअभिषेक जी की प्रतिभा को प्रणाम!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.