
धीरज आमेटा का तखल्लुस 'धीर' है। आप राजस्थान के उदयपुर शहर के रहने वाले हैं। वर्तमान में आप गुड़गाँव (हरियाणा) में एक हार्डवेयर कम्पनी में इन्जिनियर हैं। आप अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं।
एक सहरा को गुलिस्तान बना देते हैं लोग!
अपने दामन को भी ख़ुद आप जला देते हैं लोग,
जब भी तफ़रीक़ के शोलों को हवा देते हैं लोग!
दिल तो उनका है भरा खोट से लेकिन फिर भी,
"ये खुला ख़त है!" भला कैसे जता देते हैं लोग?
अहले दुनिया की ये अफ़साना-निगारी तौबा!
बात छोटी सी हो अफ़साना बना देते हैं लोग!
फिर से अपनों की शहादत पे उठायी है क़सम
क्या नयी बात है, क़समें तो भुला देते हैं लोग!
रात अश्कों से फ़साना ए मुहब्बत लिख कर,
शम्मा बुझते ही ये तहरीर मिटा देते हैं लोग!
सहल करते हैं वो अपने ही तमाशे की डगर
लब पे जब खामोशी की मुहर लगा देते हैं लोग!
"धीर" तुझ पर भी न सोहबत का असर हो आये,
सब पे अपना सा ही इक रंग चढ़ा देते हैं लोग!
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शब्दार्थ:-
सहरा - रेगिस्तान, तफ़रीक़ - फ़र्क़ डालना/ लोगों को बाँटना, अफ़साना-निगारी - अफ़साने बनाना, तहरीर - काविश, सोहबत - संगत
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21 टिप्पणियाँ
जब गुलाब इश्क़ का सीने में खिला देते हैं लोग
जवाब देंहटाएंएक सहरा को गुलिस्तान बना देते हैं लोग!
बहुत खूब।
बहुत अच्छी ग़ज़ल है धीरज भाई जमे रहिये।
जवाब देंहटाएंरात अश्कों से फ़साना ए मुहब्बत लिख कर,
जवाब देंहटाएंशम्मा बुझते ही ये तहरीर मिटा देते हैं लोग!
हर शेर दाद के लायक है।
bahut bahut khoobsurat..
जवाब देंहटाएंक्या बात है...जिंदाबाद...इस उम्र में ये तेवर...वाह...मुझे यकीन है आप बहुत आगे जायेंगे...जोरे कलम और जियादा...
जवाब देंहटाएंनीरज
नीरज गोस्वामी जी की बात से मैं सहमत हूँ। बहुत उम्दा ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंअपने दामन को भी ख़ुद आप जला देते हैं लोग,
जब भी तफ़रीक़ के शोलों को हवा देते हैं लोग!
अहले दुनिया की ये अफ़साना-निगारी तौबा!
बात छोटी सी हो अफ़साना बना देते हैं लोग!
लिखते रहें।
SUBHAN'ALLAH
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
रात अश्कों से फ़साना ए मुहब्बत लिख कर,
जवाब देंहटाएंशम्मा बुझते ही ये तहरीर मिटा देते हैं लोग!
आपकी भाषा कोमल और बेदाग है। पढ कर अच्छा लगा।
अब धीर जी के लेखनी के क्या कहने बहोत तेज ,मधुर और तीखी चलती है बहोत ही मनभावन ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंएक गीत याद आगया...लता मंगेशकर जी ने गाया है ...वही के एक चहरे पे की चहरे लगा लेते है लोग....
बधाई...
अर्श
bahut khoob kya likha hai sabhi sher lajavab hain
जवाब देंहटाएंrachana
सहल करते हैं वो अपने ही तमाशे की डगर
जवाब देंहटाएंलब पे जब खामोशी की मुहर लगा देते हैं लोग!
Matla to kamaal ka tha hi ye sher bhi bhaut achha laga
बहुत ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ का चुनाव और अंदाज़े-बयां भी ख़ूब है।
जवाब देंहटाएंरात अश्कों से फ़साना ए मुहब्बत लिख कर,
शम्मा बुझते ही ये तहरीर मिटा देते हैं लोग!
वाह!
महावीर शर्मा
bahut achcha likha hai aapne.
जवाब देंहटाएंधीर जी को पहली बार सतपाल जी के "आज की ग़ज़ल" पर पढ़ा था और तभी से उनके फैन हैं...
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल और ये दो शेर तो बस "दिल तो उनका है भरा खोट से लेकिन फिर भी/"ये खुला ख़त है!" भला कैसे जता देते हैं लोग?" और "सहल करते हैं वो अपने ही तमाशे की डगर/लब पे जब खामोशी की मुहर लगा देते हैं लोग" कहर ढ़ा रहे हैं
BAHUIT ACHHI RACHNA LAGI APKI SACH
जवाब देंहटाएंमित्रों और महानुभावों को मेरा नमस्ते!
जवाब देंहटाएंइस हिम्मत अफ़्ज़ायी के लिये हज़ारहा शुक्रिया! उम्मीद करता हुँ आपका साथ आगे भी मिलता रहेगा.
साहित्य-शिल्पी का आभार व्यक्त करता हुँ जिसने खाक़-नशीँ के कलाम को यहाँ दर्ज करके मुझे इज़्ज़त बक्शी!
धन्यवाद!
आपकी प्रतिभा आपकी उम्र से बडी है। हर शेर तराशा हुआ है और उसे पढने पर एसा ही अहसास होता है जैसे नर्म मखमली घांस पर कोई नंगे पैर चले।
जवाब देंहटाएंहम कायल हो गए धीरज जी के लेखन के
जवाब देंहटाएंधीरज जी आपने तो आलोचकों के लिए भी कोई स्थान नहीं छोडा,
जवाब देंहटाएंसचमुच एक दम सटीक लेखन है, और ग़ज़ल विधा की गहरी समझ भी
dheeraj ji
जवाब देंहटाएंbehatreen gazal aur kya khoob likha hai ji ...
रात अश्कों से फ़साना ए मुहब्बत लिख कर,
शम्मा बुझते ही ये तहरीर मिटा देते हैं लोग!
wah ji wah ..
dil se badhai .
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
Jab bhi chahe nayee duniya basa lete hain log,
जवाब देंहटाएंEk chehre pe kayee kayee chehre laga lete hain log. :-)
Bhai Dheer sahab, aapki ghazal ne jee main ek halchal see macha di hai...
Bahut achhe....
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.