
होली खेलें सिया की सखियाँ,
जनकपुर में छायो उल्लास....
रजत कलश में रंग घुले हैं, मलें अबीर सहास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...
रंगें चीर रघुनाथ लला का, करें हास-परिहास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...
एक कहे: 'पकडो, मुंह रंग दो, निकरे जी की हुलास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...
दूजी कहे: 'कोऊ रंग चढ़े ना, श्याम रंग है खास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...
सिया कहें: ' रंग अटल प्रीत का, कोऊ न अइयो पास.'
होली खेलें सिया की सखियाँ...
सियाजी, श्यामल हैं प्रभु, कमल-भ्रमर आभास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...
'शान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...
होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में...
अंगना में कई हौज बनवाये, भांति-भांति के रंग घुलाये.
पिचकारी भर धूम मचाएं, अवधपुरी के महलों में...
राम-लखन पिचकारी चलायें, भारत-शत्रुघ्न अबीर लगायें.
लखें दशरथ होएं निहाल, अवधपुरी के महलों में...
सिया-श्रुतकीर्ति रंग में नहाई, उर्मिला-मांडवी चीन्ही न जाई.
हुए लाल-गुलाबी बाल, अवधपुरी के महलों में...
कौशल्या कैकेई सुमित्रा, तीनों माता लेंय बलेंयाँ.
पुरजन गायें मंगल फाग, अवधपुरी के महलों में...
मंत्री सुमंत्र भेंटते होली, नृप दशरथ से करें ठिठोली.
बूढे भी लगते जवान, अवधपुरी के महलों में...
दास लाये गुझिया-ठंडाई, हिल-मिल सबने मौज मनाई.
ढोल बजे फागें भी गाईं,अवधपुरी के महलों में...
दस दिश में सुख-आनंद छाया, हर मन फागुन में बौराया.
'शान्ति' संग त्यौहार मनाया, अवधपुरी के महलों में...
काव्य की पिचकारी - आचार्य संजीव सलिल
रंगोत्सव पर काव्य की पिचकारी गह हाथ.
शब्द-रंग से कीजिये, तर अपना सिर-माथ
फागें, होरी गाइए, भावों से भरपूर.
रस की वर्षा में रहें, मौज-मजे में चूर.
भंग भवानी इष्ट हों, गुझिया को लें साथ
बांह-चाह में जो मिले उसे मानिए नाथ.
लक्षण जो-जैसे वही, कर देंगे कल्याण.
दूरी सभी मिटाइये, हों इक तन-मन-प्राण.
अबकी बार होली में - आचार्य संजीव सलिल
करो आतंकियों पर वार अबकी बार होली में.
न उनको मिल सके घर-द्वार अबकी बार होली में.
बना तोपोंकी पिचकारी चलाओ यार अब जी भर.
निशाना चूक न पाए, रहो गुलज़ार होली में.
बहुत की शांति की बातें, लगाओ अब उन्हें लातें.
न कर पायें घातें कोई अबकी बार होली में.
पिलाओ भांग उनको फिर नचाओ भांगडा जी भर.
कहो बम चला कर बम, दोस्त अबकी बार होली में.
छिपे जो पाक में नापाक हरकत कर रहे जी भर.
करो बस सूपड़ा ही साफ़ अब की बार होली में.
न मानें देव लातों के कभी बातों से सच मानो.
चलो नहले पे दहला यार अबकी बार होली में.
जहाँ भी छिपे हैं वे, जा वहीं पर खून की होली.
चलो खेलें 'सलिल' मिल साथ अबकी बार होली में.
इस होली पर कैसे, करलूं बातें साज की - योगेश समदर्शी
अभी हरे हैं घाव,
कहां से लाऊं चाव,
नहीं बुझी है राख,
अभी तक ताज की
खून, खून का रंग,
देख-देख मैं दंग,
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की
उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की
नाना नव रंगों को फिर ले आयी होली,
उन्मत्त उमंगों को फिर भर लायी होली !
आयी दिन में सोना बरसाती फिर होली,
छायी, निशि भर चाँदी सरसाती फिर होली !
रुनझुन-रुनझुन घुँघरू कब बाँध गयी होली,
अंगों में थिरकन भर, स्वर साध गयी होली !
उर मे बरबस आसव री ढाल गयी होली,
देखो, अब तो अपनी यह चाल नयी हो ली !
स्वागत में ढम-ढम ढोल बजाते हैं होली,
होकर मदहोश गुलाल उड़ाते हैं होली !
रंग गुलाल लिये कर में निकली मतवाली टोली है - अजय यादव
रंग गुलाल लिये कर में निकली मतवाली टोली है
ढोल की थाप पे पाँव उठे औ गूँज उठी फिर ’होली है’
कहीं फाग की तानें छिड़ती हैं कहीं धूम मची है रसिया की
गोरी के मुख से गाली भी लगती आज मीठी बोली है
बादल भी लाल गुलाल हुआ उड़ते अबीर की छटा देख
धरती पे रंगों की नदियाँ अंबर में सजी रंगोली है
रंगों ने कलुष जरा धोया जो रोक रहा था प्रेम-मिलन
मन मिलकर एकाकार हुये, प्राणों में मिसरी घोली है
सबके चेहरे इकरूप हुये, ’अजय’ न भेद रहा कोई
यूँ सारे अंतर मिट जायें तो हर दिन यारो होली है
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
पीहर मा होती तो सखियों संग खेलती
झांकन ना दे बाहर अटारिया से
सासू का सख्त आदेस रे
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
लत्ता ना भावे मोको, गहना ना भावे
सीने में उठती है हूक रे
याद आवे पीहर की रंग से भीगी देहरिया
और गुलाल से रंगे मुख-केस रे
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
अंबुआ पे झुलना, सखियों की बतियां
नीर बहाऊं और सोचूं मैं दिन रतियां
पिया छोड के आजा ऐसी नौकरिया
जिसने है डाला सारा कलेस रे
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
टेढ़े-मेढ़े बैगन जी
होली पर ससुराल चले
बीच सड़क पर लुढ़क-लुढ़क
कैसी ढुलमुल चाल चले
पत्नी भिण्डी मैके में
बनी-ठनी तैयार मिलीं
हाथ पकड़ कर वह उनका
ड्राइंगरूम में साथ चलीं
मारे खुशी, ससुर कद्दू
देख बल्लियों उछल पड़े
लौकी सास रंग भीगी
बैगन जी भी फिसल पड़े
इतने में उनकी साली
मिर्ची जी भी टपक पड़ीं
रंग भरी पिचकारी ले
जीजाजी पर झपट पड़ीं
बैगन जी गीले-गीले
हुए बैगनी से पीले।
नन्ही गुड़िया माँ से बोली
माँ मुझको पिचकारी ले दो
इक छोटी सी लारी ले दो
रंग-बिरंगे रंग भी ले दो
उन रंगों में पानी भर दो
मैं भी सबको रग डालूँगी
रंगों के संग मज़े करूँगी
मैं तो लारी में बैठूँगी
अन्दर से गुलाल फेंकूँगी
माँ ने गुड़िया को समझाया
और प्यार से यह बतलाया
तुम दूसरो पे रंग फेंकोगी
और अपने ही लिए डरोगी
रँग नहीं मिलते है अच्छे
हुए बीमार जो इससे बच्चे
तो क्या तुमको अच्छा लगेगा
जो तुम सँग कोई न खेलेगा
जाओ तुम बगिया मे जाओ
रंग- बिरंगे फूल ले आओ
बनाएँगे हम फूलों के रन्ग
फिर खेलना तुम सबके संग
रंगों पे खरचोगी पैसे
जोड़े तुमने जैसे तैसे
उसका कोई उपयोग न होगा
उलटे यह नुकसान ही होगा
चलो अनाथालय में जाएँ
भूखे बच्चों को खिलाएँ
आओ उन संग खेले होली
वो भी तेरे है हमजोली
जो उन संग खुशियाँ बाँटोगी
कितना बड़ा उपकार करोगी
भूखा पेट भरोगी उनका
दुनिया में नहीं कोई जिनका
वो भी प्यारे-प्यारे बच्चे
नन्हे से है दिल के सच्चे
अब गुड़िया को समझ में आई
उसने भी तरकीब लगाई
बुलाएगी सारी सखी सहेली
नहीं जाएगी वो अकेली
उसने सब सखियों को बुलाया
और उन्हें भी यह समझाया
सबने मिलके रंग बनाया
बच्चों सँग त्योहार मनाया
भूखों को खाना भी खिलाया
उनका पैसा काम में आया
सबने मिलकर खेली होली
और सारे बन गए हमजोली
मन मे भर उल्लास,मुट्ठियां भर भर रंग लिये
सांझ से ही आ बैठी, होली मादक गंध लिये
एक हथेली मे चुटकी भर ठंडा सा अहसास
दूजे हाथ लिये किरची भर नरम धूप सौगात
उजियारे के रंग पूनमी मटियाली बू-बास
भीगे मौसम की अंगड़ाई लेकर आई पास
अल्हड़-पन का भाव सुकोमल पूरे अंग लिये
सांझ से ही आ बैठी होली मादक गंध लिये
लहरों से लेकर हिचकोले,पवन से अठखेली
चौखट-चौखट बजा मंजीरे, फिरती अलबेली
कहीं से लाई रंग केसरी, कहीं से कस्तूरी
लाजलजीली हुई कहीं पर खुल कर भी खेली
नयन भरे कजरौट अधर भर भर मकरंद लिये
सांझ से ही आ बैठी ,होली मादक गंध लिये
बरस गए हैं मेरी आँखों में
हज़ारों सपने
महकने लगे हैं टेसू
और मन
बावला हुआ जाता है
सपनों की कलियाँ
दिल की हर डाल पर
फूट रही है
और ये उपवन
नन्दन हुआ जाता है
समझ नहीं पा रही हूँ
ये तुम हो या मौसम
जो बरसा है
मुझपर
फागुन बनकर
जस्न जारी... - धीरेन्द्र सिंह "काफ़िर"
पतझड़ में पत्ते
साखें छोड़ देते हैं
सदाबहार
जब आता है
तो बहार
जवाँहोती है
हम भी कुछ
इसीतरह से
जश्न जारी
रखते हैं
मातम भी मनाते हैं
अपने-अपने
इन पेड़-पौधों जैसा नहीं
कुछ भी साथ-साथ नहीं
दिवाली में
पटाखे जलाए
उजाला मचाया
होली में रंग गए
रंग उडाये
मगर रूह में वही
पुराना अँधेरा
वही कालिख ........
होली की हार्दिक शुभकामनाएं! ज़मीं-आसमां हर जगह रंग उडाएं, गुलाल की होली खेलें, पानी बचाएँ एवं एक विनम्र निवेदन है कि नहाते समय अपने मन की कालिख जरूर धोएं, प्यार का प्रकाश एक दो घूँट जरूर पियें.............
24 टिप्पणियाँ
एक दो घूँट जरूर पियें
जवाब देंहटाएंरंगों के पर्व होली पर आपको ढेरो शुभकामनाए ...
इतने सारे गीत कविताएँ पढ़वाकर होली कवितामय कर दी।
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएँ !
घुघूती बासूती
होली की शुभकामनायें। कविताओं नें समाँ बाँध दिया। शांति जी के भजन अच्छे लगे।
जवाब देंहटाएंहोली एक
जवाब देंहटाएंकवि अनेक
पी रहे हैं सब
कविताओं के पैग
जिनमें नहीं भंग है
पर भावतरंग है
कवि सभी अनमोल
पर कविताओं का नहीं
रहा है कोई मोल।
मंच पर ही हैं
बिकती सब कविताएं
कविता भी वहीं
बिकते हैं बौराय
पीकर सुरा
सब कविता सुनायं
लिफाफा पकड़
हैं दौड़ जायं।
बात कही तुमने सच में प्रिय बात कही बहुत कही तुमने सच में प्रिय बात कही होली का ना रंगे पुराना होली का नायब रंग पुराना होली गाना नंगे पुराना होली में सब बेकार भई होली हे सच्चे प्यार की होली ना प्यार कहो ना प्यार कहो होली होली होली होली होली होली होली होली होली होली होली होली होली है
हटाएं
हटाएंनन्ही गुड़िया माँ से बोली
माँ मुझको पिचकारी ले दो
इक छोटी सी लारी ले दो
रंग-बिरंगे रंग भी ले दो
उन रंगों में पानी भर दो
मैं भी सबको रग डालूँगी
रंगों के संग मज़े करूँगी
मैं तो लारी में बैठूँगी
अन्दर से गुलाल फेंकूँगी
माँ ने गुड़िया को समझाया
और प्यार से यह बतलाया
तुम दूसरो पे रंग फेंकोगी
और अपने ही लिए डरोगी
रँग नहीं मिलते है अच्छे
हुए बीमार जो इससे बच्चे
तो क्या तुमको अच्छा लगेगा
जो तुम सँग कोई न खेलेगा
जाओ तुम बगिया मे जाओ
रंग- बिरंगे फूल ले आओ
बनाएँगे हम फूलों के रन्ग
फिर खेलना तुम सबके संग
रंगों पे खरचोगी पैसे
जोड़े तुमने जैसे तैसे
उसका कोई उपयोग न होगा
उलटे यह नुकसान ही होगा
चलो अनाथालय में जाएँ
भूखे बच्चों को खिलाएँ
आओ उन संग खेले होली
वो भी तेरे है हमजोली
जो उन संग खुशियाँ बाँटोगी
कितना बड़ा उपकार करोगी
भूखा पेट भरोगी उनका
दुनिया में नहीं कोई जिनका
वो भी प्यारे-प्यारे बच्चे
नन्हे से है दिल के सच्चे
अब गुड़िया को समझ में आई
उसने भी तरकीब लगाई
बुलाएगी सारी सखी सहेली
नहीं जाएगी वो अकेली
उसने सब सखियों को बुलाया
और उन्हें भी यह समझाया
सबने मिलके रंग बनाया
बच्चों सँग त्योहार मनाया
भूखों को खाना भी खिलाया
उनका पैसा काम में आया
सबने मिलकर खेली होली
और सारे बन गए हमजोली
अति सुंदर
हटाएंबहुत खूब होली सजाई है आपने. कविताओं का हार सबके गले में डाला दिया. इतनी सुंदर प्रस्तुति के लिए आपका आभार. और सभी लेखकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंशांति जी के भजन से -
जवाब देंहटाएंशान्ति' निरख छवि, बलि-बलि जाए, अमिट दरस की प्यास.
होली खेलें सिया की सखियाँ...
होली खेलें चारों भाई, अवधपुरी के महलों में...
हमारी समृद्ध परंपरा का अहसास होता है।
***********
सलिल जी नें गहरे रंग प्रस्तुत किये हैं:-
करो आतंकियों पर वार अबकी बार होली में.
न उनको मिल सके घर-द्वार अबकी बार होली में.
************
योगेश जी अपने संदर्भ गंभीरता से रखते हैं -
उसके कैसे रंगू मैं गाल
जिसका सूखा नहीं रुमाल
उन भीगे होठों को कह दूं
मैं होली किस अंदाज की
इस होली पर कैसे,
करलूं बातें साज की
**************
महेन्द्र जी नें तो होली के चित्र खींच दिये हैं-
नाना नव रंगों को फिर ले आयी होली,
उन्मत्त उमंगों को फिर भर लायी होली !
***************
अजय जी रंगों से कलुष धोने निकल पडे हैं -
रंगों ने कलुष जरा धोया जो रोक रहा था प्रेम-मिलन
मन मिलकर एकाकार हुये, प्राणों में मिसरी घोली है
***************
मोहिन्दर जी विरह का रंग ले आये हैं -
का संग खेलूं मैं होरी.. पिया गयल हैं विदेस रे
अंबुआ पे झुलना, सखियों की बतियां
नीर बहाऊं और सोचूं मैं दिन रतियां
पिया छोड के आजा ऐसी नौकरिया
जिसने है डाला सारा कलेस रे
***************
कृष्ण कुमार जी तो बच्चों पर रंग डाल रहे हैं -
रंग भरी पिचकारी ले
जीजाजी पर झपट पड़ीं
बैगन जी गीले-गीले
हुए बैगनी से पीले।
***************
सीमा सचदेव जी सच्ची बाल-साहित्यकार हैं। कविता में संदेश न हो एसा कैसे हो सकता है -
सबने मिलके रंग बनाया
बच्चों सँग त्योहार मनाया
भूखों को खाना भी खिलाया
उनका पैसा काम में आया
सबने मिलकर खेली होली
और सारे बन गए हमजोली
**************
प्रवीण पंडित जी नें भी मन को छूने वाले गीत से फाग खेला है -
लहरों से लेकर हिचकोले,पवन से अठखेली
चौखट-चौखट बजा मंजीरे, फिरती अलबेली
कहीं से लाई रंग केसरी, कहीं से कस्तूरी
लाजलजीली हुई कहीं पर खुल कर भी खेली
नयन भरे कजरौट अधर भर भर मकरंद लिये
सांझ से ही आ बैठी ,होली मादक गंध लिये
***************
शोभा महेन्द्रू जी का चिर परिचित अंदाज बेहद आकर्षक रंग बिखेर रहा है -
समझ नहीं पा रही हूँ
ये तुम हो या मौसम
जो बरसा है
मुझपर
फागुन बनकर
*************
धीरेंद्र सिंह जी की बात भी ध्यान देने योग्य है -
होली में रंग गए
रंग उडाये
मगर रूह में वही
पुराना अँधेरा
वही कालिख ........
**************
होली की शुभकामनायें।
कविताओं का बहुत अच्छा संग्रह है। होली की शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसभी गीत और कवितायें अच्छी हैं। होली का आपनें माहौल बना दिया बधाई पर्व की।
जवाब देंहटाएंहोली के पर्व पर रंगारंग प्रस्तुति के लिये
जवाब देंहटाएंआपको
तथा एक-से-एक बढ़
एक रचना देने वाले कवियों को होली की बहुत-बहुत बधाई.
होली पर लिखी सभी कविताएँ बहुत सुन्दर लगीं। होली की सभी को शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंहोली की शुभकामनाएँ सभी कविताएँ बहुत सुन्दर लगीं।
जवाब देंहटाएंये लो हम हुरियारे भी आ गए होली की शुभकामनायें लेकर....कबीरा...स..र..र..र...
जवाब देंहटाएंबढ़िया होली संकलन!!
जवाब देंहटाएंआपको होली की मुबारकबाद एवं बहुत शुभकामनाऐं.
सादर
समीर लाल
के.के. भाई को होली पर चढ़ गई खूब भांग !
जवाब देंहटाएंबैठे लिखने तो लिख बैठे होली का इतिहास !!
साहित्यशिल्पी वाले के.के.जी को छापें बारम्बार !
होली पर सब फगुआ गायें, करें खूब धमाल !!
.......कबीरा...स..र..र..र......
साहित्यकारों की भावनाओं के रंगों से रंगी होली देखकर बहुत अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंसबको होली की शुभ-कामनाएं
GOPAL DAS NEERAJ,SHANTI DEVI VERMA,
जवाब देंहटाएंSANJEEV SALIL,MOHINDAR BHATNAGAR,
YOGESH SAMDARSHEE,SEEMA SACHDEV,
PRAVEEN PANDIT,KRISHNA KUMAR YAADAV,AJAY YAADAV,SHOBHA MAHENDRU
AUR DHIRENDRA SINGH KEE HOLI PAR
RANG-BIRANGEE KAVITAYEN PADH KAR
AANAND AA GAYAA HAI.SABKO SHUBH
KAMNAYEN.
wah ye hui na holi ke rang main puri tarah rang gaye hain sab
जवाब देंहटाएंsabko bahut bahut subhkamanye holi ki
Ye holi sabke dilon mein pyaar ke rang bhar de yahi prathna rahegi
sabhee ko shubh-lamnaen,,,
जवाब देंहटाएंaap sabhi ko holi ki bahut sari subhakamnay. HAPPY HOLLY
जवाब देंहटाएं.[PRADEEP KUMAR YADAV
holi per sarab nahi peyai
जवाब देंहटाएं"होली आई बोल !"
जवाब देंहटाएं--------------------
मौसम ने अंगड़ाई ली
मन में मादकता छाई री
बहक रहा यौवन जी जी
बोलो होली आई है |
कलियों ने घूँघट खोले
भेद-भाव ताखे रख बोले
जाम मुहब्बत छलक आई
बोलो होली आई है |
पिता -पुत्र संग खेलत होली
भाभी गोझिया बनाई है
साली जेवना परोसने आई
बोलो होली आई है |
घूमत चारो तरफ पर्चा
रंग डलवावे के हौ न्योता
सरहज आके बोलाई
बोलो होली आई है | |
गूगल अनुबाद -
"Holy Mother Bol!"
The weather took place
Drunkenness in mind
Jaovan ji ji
Speak Holi.
Buds opened the veil
Keep silence
Jam mohabbat chil came
Speak Holi.
Holi playing with father-son
Sister in law has made
Year-old dinner served
Speak Holi.
Surround Surround Form
Color invitation
Sarjaj ake baulai
Speak Holi. |
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.