
डॉ॰ कुमार विश्वास का नाम किसी भी हिन्दी काव्य-रसिक के लिये अपरिचित नहीं है। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में गिने जाने वाले डॉ॰ कुमार विश्वास के अब तक दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुये हैं जिन्हें पाठकों का अपार स्नेह मिला है। ये अपने काव्य-वाचन के अंदाज़ के लिये सभी के चहेते हैं।
बहुत टूटा बहुत बिखरा थपेडे सह नही पाया
हवाऒं के इशारों पर मगर मै बह नही पाया
रहा है अनसुना और अनकहा ही प्यार का किस्सा
कभी तुम सुन नही पायी कभी मै कह नही पाया
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बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन
इस धरती से उस अम्बर तक दो ही चीज़ गज़ब की है
एक तो तेरा भोलापन है एक मेरा दीवानापन
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तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
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तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ
तुम्हे मै भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
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पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
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समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता
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16 टिप्पणियाँ
"बस्ती बस्ती घोर उदासी पर्वत पर्वत खालीपन
जवाब देंहटाएंमन हीरा बेमोल बिक गया घिस घिस रीता तन चंदन"
डॉ. विश्वास को सुनना और पढ़ना हमेशा से ही सुखद रहा है ... हर मुक्तक को पढ़ते ही कालेज के समय के आप के कई मुशायरे याद आ जाते हैं | आप की शैली अनूठी है | जहां आप प्रेम विषय पर एक गहरी और भावपूर्ण सोच रखते हैं , वहीं बड़े ही सरल शब्दों में उसे मुक्तकों में पिरो भी देते हैं | यही सादगी आप को ख़ास तौर से युवा वर्ग में प्रिय बनाता है ...
शुक्रिया
मन को छू लेने वाले आशार... दिल से निकले दिल तक पंहुचे... आभार
जवाब देंहटाएंयह सब कई बार सुना है | ख़ुद उनके पाठन में ही सुना गया है |
जवाब देंहटाएंयदि कुछ नया मिले तो मज़ा आए ?
अवनीश तिवारी
k.vishvas apna bana hi lete hai...............
जवाब देंहटाएंaakhiri muktak bahot khub ... kafi baari suni hai unse maine... badhiya likha hai unhe dhero badhaaee..
जवाब देंहटाएंarsh
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नही सकता
जवाब देंहटाएंये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नही सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नही पाया वो तेरा हो नही सकता
हर मुक्तक खूब है।
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
जवाब देंहटाएंहो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
डॉ. विश्वास अवनीश तिवारी जी की शिकायत भी दूर कर दें।
सभी अच्छे मुक्तक हैं, बधाई।
जवाब देंहटाएंपनाहों में जो आया हो तो उस पर वार करना क्या
जवाब देंहटाएंजो दिल हारा हुआ हो उस पर फिर अधिकार करना क्या
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कश्मकश मे है
हो गर मालूम गहराई तो दरिया पार करना क्या
bahut khoobsurat
डॉ. विश्वास की सबसे बड़ी खासियत उनकी रचनाओं की सादगी है। आज ही साहित्य शिल्पी पर प्रकाशित बातचीत में विश्वरंजन जी के विचार कि इलीटिज्म से साहित्य की बहुत हानि हो रही है; को डॉ. विश्वास की लोकप्रियता पुष्ट करती है। आज के ये मुक्तक भी अपनी सादगी और प्रभावी भावपक्ष के चलते सीधे पाठकों के दिल में उतरने में सक्षम हैं।
जवाब देंहटाएंहाँ, अवनीश तिवारी जी की कुछ रचनाओं को ही बार-बार पढ़ पाने की शिकायत वाज़िब प्रतीत होती है।
bahut khopob likha hai sunder abhivyakti
जवाब देंहटाएंrachana
bahuta sundar....har muktak ne
जवाब देंहटाएंman chiaa.....aabhaar...
shubh-kaamnaen
डॉ विश्वास के मुक्तकों तक मै भूले भटके ही पहुँचा लेकिन जब सुना सीधा लगा कि बहुत ही अंतर्स्पर्श की क्षमता रखने वाले हैं...और उनकी प्रस्तुत करने की शैली उतनी ही रोचक है...बस इतनी ही कहूँगा
जवाब देंहटाएंकभी रूबरू हों दिल की यही फरमाइश है
देखते हैं क्या दिखाती है ज़िन्दगी सूरते आम में
क्या बुरा है जो थोड़ी भारी भरकम ख्वाइश है
हर रचना अपने आप में बहुत कुछ कहती है
जवाब देंहटाएंसुंदर मुक्तक हैं। बधाई डॉ॰ कुमार विश्वास को!
जवाब देंहटाएंजय सिया राम ,दोस्तों आज शुकरवार के दिन सभी मित्रो को गुरु सुकरदेव जी रक्षा करे आज़ का दिन सभी मित्रो का मंगल मये हो ? मेरी हार्दिक शुभ कामना कुमार जी हर गजल कविता कुछ अलग हट कर बेमिसाल अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.