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आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं [ग़ज़ल] - सतपाल ख़याल



रचनाकार परिचय:-


सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग आज की गज़ल का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
बात छोटी सी है पर हम आज तक समझे नही
दिल के कहने पर कभी भी फ़ैसले करते नहीं

सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं

हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े मे थे वो
मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं

हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए
आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं

अब के है बारूद की बू चार -सू फैली हुई
खौफ़ फैला हर जगह आसार कुछ अच्छे नहीं.

उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल'
तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं

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16 टिप्पणियाँ

  1. हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए
    आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं

    होली की शुभकामना।

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  2. चन्दन की खुशबु
    रेशम का हार
    सावन की सुगंध
    बारिश की फुहार
    राधा की उम्मीद
    "कन्हैया' का प्यार
    मुबारक हो आपको
    होली का त्यौहार

    Regards

    जवाब देंहटाएं
  3. होली मुबारक
    उफ़ ! लड़कपन की वो रंगीनी न तुम पूछो `ख़याल'
    तितलियों के रंग अब तक हाथ से छूटे नहीं

    अच्छे शेर कहे हैं आपने होली पर।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी गज़ल है सतपाल जी, होली की शुभकामना।

    सभी शेर अच्छे हैं। रंग से सरोबार।

    हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े मे थे वो
    मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं

    अब के है बारूद की बू चार -सू फैली हुई
    खौफ़ फैला हर जगह आसार कुछ अच्छे नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  5. हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े मे थे वो
    मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं

    वाह ख़याल साहिब वाह क्या बात कही आपने... बहोत खूब... होली पे आपको तथा आपके पुरे परिवार को मेरे तरफ से ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...

    अर्श

    जवाब देंहटाएं
  6. ओहो...सतपाल जी क्या खूब है
    पहले तो इसे अनुभूति पर पढ़ कर झूम उठा था और अब यहाँ अपने उद्‍गार व्यक्त कर रहा हूँ।
    हम तो मर-मिटे सर इस गज़ल की खास नज़ाकत और अंदाज़े-बयां पर। एक=एक शेर हाय रे~~~~
    और ये दो तो खास कर " सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल/दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं" और फिर ये "हमने क्या-क्या ख़्वाब देखे थे इसी दिन के लिए/आज जब होली है तो वो घर से ही निकले नहीं"
    और मकते पे तो बस उफ़्फ़्फ़-उफ़्फ़्फ़ किये जा रहा हूँ...
    साहित्य-शिल्पी के इस खास पन्ने से आपने पूरे ब्लौग-जगत को होली के रंग में रंग डाला...

    आपको को,राजीव जी को और साहित्य-शिल्पी की पूरी टीम को होली की ढ़ेरों मुबारक बाद

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  7. बहुत अच्छी ग़ज़ल है सतपाल जी, बधाई। होली मुबारक।

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  8. सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
    दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं
    वाह सतपाल जी वाह..."वो तेरा कोठे पे नंगे पावन आना याद है...." ग़ज़ल याद आ गयी...सारे शेर खूबसूरत हैं बधाई..
    आपको होली की ढेरों रंग बिरंगी शुभ कामनाएं.
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  9. काफी सारे रंग लिए हुए है आप की ग़ज़ल , ख्याल साहब ... कहीं शरारत , कहीं शिकायत ,कहीं nostalgia ..... होली के मौके पर बिलकुल उपयुक्त :-) साथ ही होली वाला शेर अत्यंत प्रभावी लगा |

    सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
    दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं.. से हज़रात मोहानी की " चुपके चुपके रात दिन " की भी याद हो आयी .. सुन्दर अभिव्यक्ति ..

    जवाब देंहटाएं
  10. मैं कसम खा कर कहता हूँ कि जब मैंने टिप्पणी लिखना आरम्भ किया था तब नीरज जी कि टीप वहाँ नहीं थी.. :-)

    जवाब देंहटाएं
  11. रंगों के पर्व होली के अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं
  12. सतपाल जी, होली पर बहुत असरदार ग़ज़ल है:
    सुर्ख़ रुख़्सारों पे हमने जब लगाया था गुलाल
    दौड़कर छत्त पे चले जाना तेरा भूले नहीं

    हार कुंडल , लाल बिंदिया , लाल जोड़े मे थे वो
    मेरे चेहरे की सफ़ेदी वो मगर समझे नहीं
    वाह! क्या बात है।

    जवाब देंहटाएं
  13. होली का माहौल उस पर गजल.. मजा आ गया

    जवाब देंहटाएं

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