
अनिल पाराशर उर्फ़ मासूम शायर का जन्म 20 मई 1961 को भिलाई में हुआ। कला के प्रति इनका रुझान इनकी कविताओं में झलकता है। आजकल ये दिल्ली में बिड़ला ग्रूप में डेप्युटी मॅनेजर के पद पर कार्यरत है।
पिछ्ले तीस सालों से काव्य में रूचि रखते हैं और कई मंचों पर अपनी कविताएँ सुना चुके हैं। इनकी कविताएँ रेडिओ के विभिन्न कार्यक्रमों में आती रहती हैं।
ये कह कर मुझ को रुला दिया
कि तूने माज़ी भुला दिया
जो किया तूने बुरा किया
उस से बुरा कि बता दिया
तुझ को हमेशा प्यार था
मुझे कितना ये ऐतबार था
बुरा किया ये प्यार तोड़े के
उस से बुरा कि जता दिया
ख्वाबों को तेरी जो दीद थी
मेरी नींदों की वही तो ईद थी
बुरा किया ख्वाब छीन के
उस से बुरा कि सुला दिया
तेरी आँखों के ये जो चिराग़ थे
मेरी मंज़िलों के सुराग थे
बुरा किया निगाहें फेर लीं
उस से बुरा चाँद भी छिपा दिया
तूने कितने ही मुझ को ग़म दिए
मैने आँसू फिर भी कम लिए
बुरा किया कि दामन छुड़ा लिया
उस से बुरा कि मुस्कुरा दिया
कुछ मासूम थी कुछ ज़हीन थी
मेरी रूह की जो भी ज़मीन थी
बुरा किया यहाँ हल चला दिया
उस से बुरा दर्द भी उगा दिया
जो भी मेरा अब हाल है
तेरी मुहब्बतों का कमाल है
बुरा किया मुझ को सँवारा नहीं
उस से बुरा आईना दिखा दिया
मिट्टी का दिल का गाँव था
हर दीवार पर तेरा नाम था
बुरा किया तूने पढ़ा नहीं
उस से बुरा कि मिटा दिया
जिसका भी अब ये गुनाह था
वक़्त सुबूत लम्हा गवाह था
बुरा किया हर गवाह हटा दिया
उस से बुरा सुबूत मिटा दिया
अगॅर्चे अब रिश्ता नहीं
ये दर्द पर जाता नहीं
जो कुछ हुआ वो बुरा हुआ
उस से बुरा कि तूने किया
37 टिप्पणियाँ
Anil ji ko bahut padha hai unki kavitaye hamesha saral shabdon ghari baat kaha karti hai
जवाब देंहटाएंye panktiyan khas kar pasand aayi
कुछ मासूम थी कुछ ज़हीन थी
मेरी रूह की जो भी ज़मीन थी
बुरा किया यहाँ हल चला दिया
उस से बुरा दर्द भी उगा दिया
मासूम शायर्क़ का साहित्य शिल्पी पर स्वागत है। सचमुच मासूम शायरी है।
जवाब देंहटाएंGreat POETRY
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
ये कह कर मुझ को रुला दिया
जवाब देंहटाएंकि तूने माज़ी भुला दिया
जो किया तूने बुरा किया
उस से बुरा कि बता दिया
तूने कितने ही मुझ को ग़म दिए
मैने आँसू फिर भी कम लिए
बुरा किया कि दामन छुड़ा लिया
उस से बुरा कि मुस्कुरा दिया
बहुत खूब।
ख्वाबों को तेरी जो दीद थी
जवाब देंहटाएंमेरी नींदों की वही तो ईद थी
तेरी आँखों के ये जो चिराग़ थे
मेरी मंज़िलों के सुराग थे
बहुत सुंदर एहसास हैं ।
देवमणि पाण्डेय
Anil saHeb! hamaare liye naye naheeN hai. is manch par khushaamdeed!
जवाब देंहटाएंDheeraj Ameta "dheer"
"कुछ मासूम थी कुछ ज़हीन थी
जवाब देंहटाएंमेरी रूह की जो भी ज़मीन थी
बुरा किया यहाँ हल चला दिया
उस से बुरा दर्द भी उगा दिया"
मासूम और कोमल भावों से परिपूर्ण कविता |
ख्याल बहुत बेहतरीन ढंग से रखे गए हैं ....
"बुरा किया ख्वाब छीन के
उस से बुरा कि सुला दिया"
कटाक्ष और वेदना दोनों का पुट है ... इस तरह की टूटन मोमिन खां मोमिन की ग़ज़लों में अमूमन देखि गयी है.... और शायद इसी साम्य की वजह से आप की ये रचना कहीं कहीं पाठक को असमंजस में भी दाल देती है , कि ये दरअसल क्या है ... क्यूंकि इस की आत्मा एक ग़ज़ल की है और ये बेहर के बहुत करीब हो कर भी बे बेहर है .. इस पर और तर्क आमंत्रित हैं ...
बहार हाल एक भावुक और हृदयस्पर्शी रचना के लिए बधाई ...
मिट्टी का दिल का गाँव था
जवाब देंहटाएंहर दीवार पर तेरा नाम था
बुरा किया तूने पढ़ा नहीं
उस से बुरा कि मिटा दिया
विरह और प्रेमिका की पत्थरदिली को बखूबी बताया है आपने अपनी नज़्म में।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह, क्या बात है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है, बधाई। मासूम शायर का साहित्य शिल्पी में स्वागत।
जवाब देंहटाएंअनिल जी...आपकी हर रचना एक से बढकर एक होती है...
जवाब देंहटाएंपढने के साथ-साथ अगर आपकी आवाज़ भी सुनने को मिल जाती तो आनन्द कई गुणा बढ जाता
शर्द्धा तुम्हारा तो विशेष आभार तुम ने मेरे रूचि को सदा सहारा दिया है कविता कहने में भी और उस के लिए अच्छे घर तलाश करने में भी. यहाँ भी आया हूं तुम एक कारण हो
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअनन्या जी आलोक जी, निधि जी, देवमणि जी,पाइयर छोटे भाई धीर,हम नाम अनिल कुमार जी,पंकज जी,अभिषेक,राजीव जी मेरे साथी आप लोगों का बहुत बहुत धन्यवाद पहले ही दिन इतने प्यार से अपना पं देने के लिए रचना को
जवाब देंहटाएंदिव्यांशु जी बहुत महीनता से अपने पं से मेरी रचना को पढ़ने के लिए गहरे दिल से आभार है आप का आत्मा ग़ज़ल की है पर ग़ज़ल ना हो सकी इतना मैं जनता हूं आप लोगों का साथ सदा माँगी रहेगी मेरी रचना
मासूम जैसा शायर यूं शहर में नहीं है
अपनी ही धुन उस की बहर में नहीं है
आदरणीय अनिल पराशर जी,
जवाब देंहटाएंमेरा मानना है कि कविता अपने कहन से पहले जानी जाती है। आपकी यह रचना दिल को बहुत मासूमियत से छूती है। जहाँ "उससे बुरा" वाली बात आती है वहाँ कविता तो चमत्कृत करती ही है भाव और गहरे डुबा ले जाते हैं।
आपका साहित्य शिल्पी पर अभिनंदन।
वाह !!! क्या बात कही !!
जवाब देंहटाएंभावुक और सुंदर रचना !!
बधाई ...
अच्छी नज़्म है!
जवाब देंहटाएंमिट्टी का दिल का गाँव था
जवाब देंहटाएंहर दीवार पर तेरा नाम था
.....बहुत सुन्दर रचना .
साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत है। सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें!
जवाब देंहटाएंजिसका भी अब ये गुनाह था
जवाब देंहटाएंवक़्त सुबूत लम्हा गवाह था
बुरा किया हर गवाह हटा दिया
उस से बुरा सुबूत मिटा दिया
सचमुच मासूम
बहुत ख़ूब मज़ा आ गया बहुत ही बढ़िया कविता।
जवाब देंहटाएंअनिल जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नज्म..
आपसे एक बार मिल कर आपकी रचनाओं का भरपूर आनन्द ले चुका हूं..आपका साहित्य शिल्पी पर स्वागत है.. आशा है अब आप अक्सर इस मंच पर नजर आयेंगें... जल्दी मिलने की आशा के साथ..
Anil ji....Aap ki yeh nazm padhi hai pehle bhi aur har baar jo ehsaas jagaane ki kshamta hai ismein...usi se bhaav ki nazaakat aur gehraai pata chalti hai....
जवाब देंहटाएंaapke khayal aur bhaavo mein jo saumyata aur paripakvata aksar milti hai...uske liye aapko shubhkaamnayein....aapse parichay bhi hamare liye bahut khushi ka sabab hai....
बुरा किया ख्वाब छीन के
जवाब देंहटाएंउस से बुरा कि सुला दिया...
बुरा किया कि दामन छुड़ा लिया
उस से बुरा कि मुस्कुरा दिया...
nishabd kar diya hai aapne....
अगॅर्चे अब रिश्ता नहीं
जवाब देंहटाएंये दर्द पर जाता नहीं
जो कुछ हुआ वो बुरा हुआ
उस से बुरा कि तूने किया
yah bahut hi achchha likha hai wah
AAPKI RACHNAO KI MAI STHAYI PATHIKA HU. HAR PANKTI AAP DIL SE LIKHTE HAIN JIN KA SACH ME KOI SAANI NAHI HOTA. AISE HI HUME AAPKI RACHNAYE PADHNE KO MILTI RAHE YE HI AASHA HAI.
जवाब देंहटाएंराजीव रंजन जी बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंरंजना सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अतुल्य यहाँ आने का बहुत बहुत ध्न्यवाद
मा पलायनम जी बहुत बहुत धन्यवाद
अजय जी हौलसा बढ़ने का शुक्रिया
मानविंदर जी आप का दिल से आभारी हूं
प्रकाश जी ध्न्यवाद आप का
अनिल मासूमशायर
मोहिंदर कुमार जी आप का शुक्रिया आज उस दिन की याद ताज़ा हो गयी
जवाब देंहटाएंरागिनी बहुत बहुत शुक्रिया और मन ही गहराई से
धीरेन्द्र बहुत बहुत धन्यवाद
अपर्णा शुक्रिया
अनिल
मिट्टी का दिल का गाँव था
जवाब देंहटाएंहर दीवार पर तेरा नाम था
बुरा किया तूने पढ़ा नहीं
उस से बुरा कि मिटा दिया..
bahut hi achhi rachna
wah bahut khoob!
जवाब देंहटाएंकुछ मासूम थी कुछ ज़हीन थी
जवाब देंहटाएंमेरी रूह की जो भी ज़मीन थी
बुरा किया यहाँ हल चला दिया
उस से बुरा दर्द भी उगा दिया
बहुत खूब सर जी, आपको पड़ना सदैव अच्छा लगा है, इस रचना की हर पंक्ति और पंक्ति का एक-एक शब्द आपने चुन चुन कर लिखा है, मासूम सी एक रचना, दिल खुश कर गयी,
हर बार की तरह ये रचना भी ला-ज़वाब है.
हार्दिक-शुभकामनाएं
मिट्टी का दिल का गाँव था
जवाब देंहटाएंहर दीवार पर तेरा नाम था
बुरा किया तूने पढ़ा नहीं
उस से बुरा कि मिटा दिया
anil ji.....
aapko parna hamesha ek alag hi ahesaas deta .....khasiyat hai ye ki jitni saral hoti hai utni hi gaherai bhi....
divyanshu ji ka parne ka andaz bahut pasand aaya
Anil ji aap to jaante hi hain ki main aapki kitni badi fan hoon.aur aapki rachnaye padhne ke baad main bas ek shabd kah paati hoon ,Uffffffffffff..wakai aap kamaaal likhte hain .
जवाब देंहटाएं2 line meri taraf se...
ik to tu masoom hai, duje naam se main neelam,
iss sheeshe ke shahar main tera mera koi sarokaar nahi hai .
Nilima
bahut badhiya gazal hai iskee masoomiyat dil ko chhotee hai.
जवाब देंहटाएंthujse milker kabhi na bithdoo
जवाब देंहटाएंyeh dua apni jagah
tere mere beach ka fasla
apni jagah
ek baar phir aap sabhee logon ka man se abhar
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.