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स्टेच्यु [कविता] - उपासना अरोरा

मेरे ज़हन में कई पोशीदा से पल रहते हैं,
यहाँ न दिन होता है न रात.
वक्त अपनी नाव को खूंटे से
साहिल पे बाँध के भूल जाता है.
लहरें आती तो हैं लेकिन जाती नही.
बालू के बवंडर उठते रहते हैं,
और बुझते भी हैं.
मानो आग निरंतर जल बुझ रही हो.

रचनाकार परिचय:-


उपासना अरोड़ा का जन्म 24/6/1986 को नयी दिल्ली में हुआ। आपने एम. बी. ए तक की शिक्षा प्राप्त की है। आप 11 वर्ष की उम्र से ही कवितायें लिख रही हैं। आप वर्तमान में हेनले इंडस्ट्रीज नामक संस्था में कार्यरत हैं।

एक लम्हा है लेकिन;
एक मासूम अच्छे बच्चे जैसा,
दिन रात का फर्क मालूम है उससे.
सेहर चढ़े उठता है और,
दिन दिन जैसा रात रात जैसी गुजारता है.
तुम तो मुझे जैसे “स्टेच्यु” करके चले गए हो.
वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;
कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

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15 टिप्पणियाँ

  1. upasana ji

    kya likha hai ,waah waah ..
    तुम तो मुझे जैसे “स्टेच्यु” करके चले गए हो.
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;

    life has strange movements and this shows a forgotton movement , frozen in time..

    us lamhe ko yaad karte karte hi jeevan gujar jaata hai ..jis lamhe me prem hota hai..

    waah ji waah .. maine aaj hi aisi ek kavita post ki hai ..

    dil se badhai sweekar karen .

    जवाब देंहटाएं
  2. दिन दिन जैसा रात रात जैसी गुजारता है.
    तुम तो मुझे जैसे “स्टेच्यु” करके चले गए हो.
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;
    कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
    सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

    प्यार भरे अहसास और उतने ही सुन्दर आपके शब्द।

    जवाब देंहटाएं
  3. upasna ji ..
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;
    कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
    सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

    aapki poetry mujhe ungali paker ker bahut peeche le gai....
    akser ek chota sa lamha ...na jaane kitne saalo tak gujer ke bhi nahi gujerta......

    khoobsorat likha hai

    जवाब देंहटाएं
  4. upasna ji ..
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;
    कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
    सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

    aapki poetry mujhe ungali paker ker bahut peeche le gai....
    akser ek chota sa lamha ...na jaane kitne saalo tak gujer ke bhi nahi gujerta......

    khoobsorat likha hai

    जवाब देंहटाएं
  5. सुख और दुःख दोनों अजीब से चीज हैं, कहीं से भी उपज जाते हैं. और कहाँ से क्या उपजेगा, पहले से बताया नहीं जा सकता.

    जवाब देंहटाएं
  6. भावों से परिपूर्ण रचना के लिए उपासना जी को बहुत-बहुत बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. उपासना जी बिम्बों का बहुत सउंदर और संवेदनशील ता के साथ आपने उपयोग किया है. बहुत सुंदर शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  8. तुम तो मुझे जैसे “स्टेच्यु” करके चले गए हो.
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;

    दिल के जज्बातों को उतार कर शशक्त रचना है यह
    बहूत खूब

    जवाब देंहटाएं
  9. एक सुंदर, भावों से ओत-प्रोत प्रभावशाली रचना के लिए बधाई।
    बड़ी मार्मिक अभिव्यक्ति है:-
    वो लम्हा लेकिन मेरी पलकों तले अब तक पडा है;
    कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
    सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
    काश जिन्दगी के हसीन पलों को स्टेचू कर के उन्हें लम्बे अरसे तक महसूस किया जा सकता और वक्त के कांटे को रोका जा सकता...

    जवाब देंहटाएं
  11. कितना हसीन खेल है तुम्हारा;
    सिर्फ़ पलकें हिला सकते हैं....

    रचना छूती है अंदर तक।
    बधाई स्वीकारें।

    -विश्व दीपक

    जवाब देंहटाएं

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