
योगेश समदर्शी का जन्म १ जुलाई १९७४ को हुआ।
बारहवी कक्षा की पढाई के बाद आजादी बचाओ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण औपचारिक शिक्षा बींच में ही छोड दी. आपकी रचनायें अब तक कई समाचार पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
बारहवी कक्षा की पढाई के बाद आजादी बचाओ आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के कारण औपचारिक शिक्षा बींच में ही छोड दी. आपकी रचनायें अब तक कई समाचार पत्र और पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं।
आपकी पुस्तक “आई मुझको याद गाँव की” शीघ्र प्रकाशित होगी।
नाखुश इतने, नफरत कर कर.
रक्त पीपासा, उर में भर कर.
अपना नया ईश्वर रच कर,
जीना चाहते हैं वह मर कर.
हाथ नहीं हथियार हैं उनके,
मस्तक धड से अलग चले है.
ईच्छा और विवेक से अनबन,
आस्तीन में सांप पले हैं.
काम धर्म का मान लिया है.
जाने कौन किताब को पढ कर.
अपना नया, ईश्वर रच कर.
जीना चाहते, हैं वह मर कर.
खून और चीतकार का जिसने,
अर्थ बदल कर उन्हे बताया.
निर्दोशों को मौत का तौहफा,
दे कर जिसने रब रिझाया.
मां के खून को किया कलंकित,
झूंठे निज गौरव को गढ कर.
अपना नया ईश्वर रच कर.
जीना चाहते हैं वह मर कर.
बचपन की मुस्कान है जीवन,
कांश उन्हें भी कोई बताये.
रास रस उलास है जीवन,
कोई उनको यह समझाये.
क्यों खुद को आहूत कर रहे,
भ्रमित उस संसार में फंसकर.
अपना नया ईश्वर रच कर.
जीना चाहते हैं वह मर कर.
17 टिप्पणियाँ
रास रस उलास है जीवन,
जवाब देंहटाएंकोई उनको यह समझाये.
क्यों खुद को आहूत कर रहे,
भ्रमित उस संसार में फंसकर.
अपना नया ईश्वर रच कर.
जीना चाहते हैं वह मर कर.
आपके संकेत समझने की जरूरत है।
बहुत अच्छी कविता है योगेश जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंबचपन की मुस्कान है जीवन,
जवाब देंहटाएंकांश उन्हें भी कोई बताये.
रास रस उलास है जीवन,
कोई उनको यह समझाये.
क्यों खुद को आहूत कर रहे,
भ्रमित उस संसार में फंसकर.
कविता की ये लाइनें बहुत भायी मुझको।
योगेश जी बहुत ही सुन्दर कविता के लिए बधाई
अपना नया ईश्वर रच कर,
जवाब देंहटाएंजीना चाहते हैं वह मर कर.
बहुत सुन्दर।
बेहतरीन रचना!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थकता और प्रभावी ढंग से आपने वर्तमान की विडंबना को दर्शाया है....
जवाब देंहटाएंप्रभावोत्पादक अतिसुन्दर इस रचना हेतु साधुवाद.
काश कि इसे रक्तपिपासु धर्मांध लोग पढ़ समझ पाते......
कमाल की रचना...अद्भुत...
जवाब देंहटाएंनीरज
नाखुश इतने, नफरत कर कर.
जवाब देंहटाएंरक्त पीपासा, उर में भर कर.
अपना नया ईश्वर रच कर,
जीना चाहते हैं वह मर कर
भाषा शैली और कथन सब प्रभावशाली।
बहुत ही उम्दा कविता , एकदम सही कहा
जवाब देंहटाएंअपना नया ईश्वर रच कर.
जवाब देंहटाएंजीना चाहते हैं वह मर कर.
गहरी अभिव्यक्ति है।
बहुत बढ़िया। बहुत सही बात कह रहे हैं।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत सुंदर श्ब्दों में आपने
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कह दिया....
काश ! किसी के समझ आ जाये...
बहुत सुंदर रचना...
आपको बधाई...
बहुत सुन्दर रचना के लिये बधाई स्वीकारें। आपकी अन्य रचनाओं से इस कविता की शैली भिन्न है और प्रभावी है।
जवाब देंहटाएंआत्मघाती हमलावरों के बारे में आपकी कविता बहुत कुछ कह जाती है
जवाब देंहटाएंअपना नया, ईश्वर रच कर.
जवाब देंहटाएंजीना चाहते, हैं वह मर कर.
chhuti hain ye panktiya
मानवीय मुल्यों को नकारते मनुष्य के मुख से मुखौटा हटाती एक सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंyogesh ji , is baar to kuch naya hi likha hai .. do baar pad chuka hoon , tareef ke liye shabd nahi mil rahen hai .. phir bhi " jai ho " is poem ke liye ..meri taraf se..
जवाब देंहटाएंvijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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