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मैं तुम्हारा मृदु चितेरा [कविता] - आलोक शंकर

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तूलिका ले हाथ में सखि,
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा।

रचनाकार परिचय:-


आलोक शंकर का जन्म रामपुरवा बिहार में २५ अक्तूबर १९८३ को हुआ। आपने विकास विद्यालय रांची में बारहवी तक पढाई करने के पश्चात कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से सूचना प्राद्यौगिकी में अभियांत्रिकी का अध्य्यन किया है| वर्त्तमान में आप बेंगलुरु में सिस्को सिस्टम्स में सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में कार्यरत हैं| आप विभिन्न कवि सम्मेलनों , मुशायरों में काव्य पाठ करने के अलावा रेडियो और विभिन्न वेब साईट पर कवितायें प्रसारित - प्रकाशित करते रहे हैं।

श्वेत पट, नवजात चंचल
जनक द्वय तव हर्ष विह्वल
प्रथम रेखा, पाद कोमल
बढ़ें थिर-थिर, धार उत्कल
मेघ गड़ गड़ , नीर छम-छम
किलकता यह सोम-संगम
चित्रपट पर बाल- छवि मम
बन बनाती नव सवेरा।
तूलिका ले हाथ में सखि,
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा।

सबल यौवन, वेग भीषण
भर अतुल संकल्प कण-कण
सरित उन्मद सिन्धुधारण
कर्म रत प्रिय श्रेष्ठ कारण
देख शोभित कुसुम सुरभित
भ्रमर नव प्रणयेच्छु पुलकित
नवोत्कृष्ट अश्रांत दर्शऩ,
खींच जाता चित्र मेरा
तूलिका ले हाथ में सखि,
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा।

वृद्ध वय, नर मूकदर्शक
चक्षु कातर , अचल भरसक
हों अजल ये नीर वर्षक
बोझ जीवन, वहन कब तक?
रंग धूमिल, मन अचंभित
मन मदान्ध अवाक कुंठित
किस सुरा से रहा वंचित
हाय मधु का पात्र मेरा
तूलिका ले हाथ में सखि,
मैं तुम्हारा मृदु चितेरा।

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11 टिप्पणियाँ

  1. श्वेत पट, नवजात चंचल
    जनक द्वय तव हर्ष विह्वल
    प्रथम रेखा, पाद कोमल
    बढ़ें थिर-थिर, धार उत्कल
    मेघ गड़ गड़ , नीर छम-छम
    किलकता यह सोम-संगम
    चित्रपट पर बाल- छवि मम
    बन बनाती नव सवेरा।
    तूलिका ले हाथ में सखि,
    मैं तुम्हारा मृदु चितेरा।................................................................

    bahut hi sundar kavita

    जवाब देंहटाएं
  2. महादेवी का प्रभाव पहली दो पंक्तियों में दिखता है। कविता बहुत अच्छी है।

    जवाब देंहटाएं
  3. आलोक शंकर जी आपकी भाषा बेमिसाल है। कविता समझने में बहुत श्रम करना पडा और अब भी यकीन नहीं है कि समझ सकी हूँ

    जवाब देंहटाएं
  4. सबल यौवन, वेग भीषण
    भर अतुल संकल्प कण-कण
    सरित उन्मद सिन्धुधारण
    कर्म रत प्रिय श्रेष्ठ कारण
    देख शोभित कुसुम सुरभित
    भ्रमर नव प्रणयेच्छु पुलकित
    नवोत्कृष्ट अश्रांत दर्शऩ,
    vaah bahut sundar bhav aur bhasha.

    जवाब देंहटाएं
  5. आलोक जी की भाषा अन्य वर्तमान कवियों से अलग है। अत: इसको पढ़ कर अच्छा तो लगता है परंतु कहीं ये भी विचार आता है कि क्या आलोक जी की इस भाषा को आज का एक सामान्य पाठक समझ सकता है?
    परंतु व्यक्तिगत रूप से मुझे तो यह कविता बहुत पसंद आई। भाषा और भाव दोनों की दृष्टि से।
    बधाई आलोक जी!

    जवाब देंहटाएं
  6. तीन-चार बार कविता को पढा...कुछ समझ पाया....कुछ नहीं
    आज के ज़माने के हिसाब से भाषा कुछ कठिन प्रतीत हुई....लेकिन जितना भी समझ आया...अच्छा लगा

    कविता यकीनन बढिया है

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत बढ़िया आपके चिठ्ठे की चर्चा समयचक्र में आज

    जवाब देंहटाएं
  8. रंग धूमिल, मन अचंभित
    मन मदान्ध अवाक कुंठित
    किस सुरा से रहा वंचित
    हाय मधु का पात्र मेरा


    अच्छी कविता के लिये ....
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  9. उष्ण तपती दोपहर को
    पलाशों में पुष्प खिलना
    टेसू के आलोक में
    हो शैव से शंकर का मिलना

    आभार आलोक जी

    जवाब देंहटाएं

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