
मेरी यादों की धरती पर
अपना घर बना रखा है
घर कि
जिसके द्वार
खुले रहते हैं सदैव।
जब जी चाहता है
तुम आ जाते हो इस घर में
जब जी चाहता है
चले जाते हो इससे बाहर।
तुम्हारे आने का
न कोई समय तय है
न जाने का।
तुम्हारे आते ही
जीवंत हो उठता है यह घर
तुम्हारे चले जाने से
पसर जाता है इसमें
मरघटों-सा सन्नाटा।
तुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
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28 टिप्पणियाँ
सुभाष नीरव एक अच्छे कथाकार के साथ एक अच्छे कवि और गजलकार हैं. उनकी प्रस्तुत कविता मन में उथल-पुथल मचा देती है.
जवाब देंहटाएंचन्देल
सुभाष नीरव एक अच्छे कथाकार के साथ एक अच्छे कवि और गजलकार हैं. उनकी प्रस्तुत कविता मन में उथल-पुथल मचा देती है.
जवाब देंहटाएंचन्देल
तुम्हें हाथ पकड़ कर
जवाब देंहटाएंरोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
सुन्दर संवेदना
बहुत अच्छी कविता है बधाई।
जवाब देंहटाएंबधाई के साथ एक सुझाव
जवाब देंहटाएंकि घर में खिड़कियां भी
लगवा लें, वह भी आने
जाने के काम में आएंगी
और घर को सुंदर बनाएंगी।
कोमल कविता बहुत अच्छी तरह बुनी गयी।
जवाब देंहटाएंतुम्हारे आते ही
जवाब देंहटाएंजीवंत हो उठता है यह घर
तुम्हारे चले जाने से
पसर जाता है इसमें
मरघटों-सा सन्नाटा।
मन को छू गयी लाईनें।
महादेवी के जन्मदिवस को इस तरह मनाया जाता देख मन प्रफुल्लित हो गया है। साहित्य शिल्पी सही दिशा में आगे बढ रही है।
जवाब देंहटाएंसुभाष नीरव जी की कविता बहुत प्रभावित करती है।
एक भावभीनि रचना...
जवाब देंहटाएंतुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
सचमुच तन पर तो अधिकार हो सकता है.. मन को पकडना मुशकिल है..
मन को पकड़ना सचमुच बहुत मुश्किल होता है ...बहुत अच्छी रचना पढ़वाई आपने
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
कविता का माध्यम विभिन्न तरीके से मन के भाव प्रगट कर सकता है
जवाब देंहटाएंखूबसूरत है आपका माध्यम, नवीन शब्दों में सजा
तुम्हें हाथ पकड़ कर
जवाब देंहटाएंरोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले
संवेदनशील रचना
जैसा कि अविनाश जी ने सुझाव दिया है कि आप घर में खिड़कियाँ लगवा लें...तो सस्ती और टिकाऊ खिड़कियों के लिए मेरी सेवाएँ हाज़िर हैँ
aap ki sari rachnaye bahut sunder hoti hai .
जवाब देंहटाएंye kavita bhi bhi bahut sunder hai
saader
rachana
सुंदर भावपूर्ण रचना है। बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंसुभाष भाई बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने मजा आ गया पढकर बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुभाष जी की रचना हृदय की गहराईयों तक उतर गई.
जवाब देंहटाएंतुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
बधाई
..........
जवाब देंहटाएंतुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
अति सुंदर .....
TUM HAATH PAKAD KAR
जवाब देंहटाएंROK LENE KEE
CHAAHAT BHEE TO
POOREE NAHIN HOTEE
KYON KI
N JAANE KAHAN
CHHOD AATE HO
TUM APNEE DEH KO
IS GHAR MEIN
AANE KE PAHLE
KYAA SUNDAR AUR KOMAL BHAV
KEE ABHIVYAKTI HAI!SAADGEE KE SAATH-SAATH HIZAAB BHEE CHHIPAA
HAIN IN PANKTIYON MEIN.MUBAARAK
Waah !!!
जवाब देंहटाएंKya baat kahi...bahut bhaavpoorn rachna..
Neerav Saheb...iss khoobsurat nazam ke liye aapko mubarakbaad bhej rahi hoon...
जवाब देंहटाएंतुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
Inn satron ne kavi-man par gehra parbhav chhorha hai. Pls keep it up.
Best Regards
Tandeep Tamanna
Vancouver, Canada
punjabiaarsi.blogspot.com
Heart Touching Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
भाई अविनाश और राजीव जी के सुझाव के लिए धन्यवाद । सचमुच इस घर में एक खिड़की लग जाती तो घर और सुन्दर हो जाता। भाई राजीव जी, मालूम हुआ है कि आपका खिड़कियों –दरवाजों का कारोबार है, एक ठौ खिड़की उपहार में ही भिजवा दें तो लगवा दूँ, आभारी होऊँगा। मंदी के चलते नहीं लगवा पाया हूँ।
जवाब देंहटाएंराजीव जी कह रहे हैं
जवाब देंहटाएंले जाने के लिए आइए
स्वागत है।
Yadon kee dhatee par bahut bhavpoorN kavita hai. maraghat ka sannta
जवाब देंहटाएंupma pathak ke samne ek udasee ka chitra kheenchtee hai.badhaee!
Rekha Maitra
rekha.maitra@gmail.com
अब ये कविया के बीच खिड़कियाँ कहाँ से आ गयी नीरव जी...?
जवाब देंहटाएंतुम्हें हाथ पकड़ कर
रोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
बहुत सुंदर रचना...गहरे भाव लिए .बधाई...!!
हरकीरत जी, अब कवि-मित्रों का कहना है कि घर बनाया है तो सिर्फ़ दरवाजे से काम नहीं चलेगा, सुन्दर घर के लिए खिड़की भी होनी चाहिए। मैंने कहा -इस घर में जो खिड़की की जो कमी है, आप ही लगवा दो। खैर ! मैं उन सभी का हृदय से आभारी हूँ कि जिन्होंने मेरी इस प्रेम कविता को पढ़कर अपनी टिप्पणियों से मुझे और अन्य पाठकों को अवगत कराया।
जवाब देंहटाएंsubhash jee der se hi sahi aapki ek achhi kavita padne ko mili vaakei jo log karm bhumi se gayab ho jate hain, yaad aate hain lekin unki rachnae apne hone kaa ehsas krati hain yahi unki saphalta ka raj hai jiske karan ve kabhi bhi hamse door nahi hote hain isiliye deh ka koi aarth nahi rehta hai lekin deh ko jis tarah aapne kavita me prayogatmak sawarup deker prastut kiya hai uske liye aapko badhai deta hoon
जवाब देंहटाएंashok andrey
तुम्हें हाथ पकड़ कर
जवाब देंहटाएंरोक लेने की
चाहत भी तो पूरी नहीं होती
क्योंकि
न जाने कहाँ छोड़ आते हो
तुम अपनी देह
इस घर में आने से पहले।
Wah subhash ji in panktiyon ne man moh liya bhaut khoonsurat
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.