
मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में पदस्थापित हैं। गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
उठेंगी चिलमनें अब हम यहाँ देखेंगे किस-किस की
चलें,खोलें किवाड़ें दब न जाये कोई भी सिसकी
जलूँ जब मैं,जलाऊँ संग अपने लौ मशालों की
जलाये दीप जैसे,जब जले इक तीली माचिस की
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
सितारे उसके भी,हाँ, गर्दिशों में रेंगते देखा
कभी थी सुर्खियों में हर अदा की बात ही जिसकी
हवाओं के परों पर उड़ने की यूँ तो तमन्ना थी
पड़ा जब सामने तूफां,जमीं पैरों तले खिसकी
उसी के नाम का दावा यहाँ हाकिम की गद्दी पर
करे बोया फसादें जो जरा देखो चहुँ दिस की
अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी,रौनक भी मजलिस की
27 टिप्पणियाँ
बहुत सुन्दर और भावप्रद लफ़्जों से सजी गजल
जवाब देंहटाएंसितारे को उसके भी, हाँ, गर्दिशों में रेंगते देखा
कभी थी सुर्खियों में हर अदा की बात ही जिसकी
उसी के नाम का दावा यहाँ हाकिम की गद्दी पर
करे बोया फसादें जो जरा देखो चहुँ दिस की
अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी,रौनक भी मजलिस की
उसी के नाम का दावा यहाँ हाकिम की गद्दी पर
जवाब देंहटाएंकरे बोया फसादें जो जरा देखो चहुँ दिस की
अगर जाना ही है तुमको,चले जाओ मगर सुन लो
तुम्हीं से है दीये की रौशनी,रौनक भी मजलिस की
waah aalag andaaz bahut achhi lagi gazal
होली की हार्दिक शुभकामनाऍं।
जवाब देंहटाएंजरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
जवाब देंहटाएंभुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
दिल को छू लिया गौतम जी नें।
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
जवाब देंहटाएंभुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
ऐसे कमाल के रदीफ़ काफिये वाली ग़ज़ल लिखना आपके ही बस की बात है....बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...बधाई...
आपको होली की शुभकामनाएं....
नीरज
उठेंगी चिलमनें अब हम यहाँ देखेंगे किस-किस की
जवाब देंहटाएंचलें,खोलें किवाड़ें दब न जाये कोई भी सिसकी
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
उसी के नाम का दावा यहाँ हाकिम की गद्दी पर
करे बोया फसादें जो जरा देखो चहुँ दिस की
कमाल के शायर हैं आप।
बहुत अच्छी गजल है.. मेजर साहब को बधाई है खास कर इस शेर के पर ...
जवाब देंहटाएंजरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
वाह वाह
EK ACHCHHE GAZAL PADHNE KO MILEE
जवाब देंहटाएंHAI.SUBAH KEE TEA PEENE KAA AANAND
BADH GAYAA HAI.GAUTAM JEE VAH DIN
DOOR NAHIN JAB AAP GAZAL KE MAJOR
NAHIN,RAJRISHEE KAHLAYENGE.Badhaaee
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
जवाब देंहटाएंभुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
गौतम जी ने जब ये शे'र कहा था तभी से उनका मुरीद हो चूका हूँ... हलाकि अभी मेरी शादी नहीं हुई है मगर जिस छोटी से बात को उन्होंने गंभीरता से लिया है वो कबीले गौर है जो सत्य है ... यहाँ इन्होने मासूमियत को बहोत ही सरल भाव में ब्यक्त किया है .. इसके लिए इन्ही के अंदाज में उफ्फ्फ ... साथ में इनके तथा इनके पुरे परिवार को मेरे तरफ से रंगीन होली की ढेरो बधईयाँ और शुभकामनाएं...
अर्श
Nice Gazal.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
लाजवाब !
जवाब देंहटाएंहोली आ रही है इसलिए आपको और आपके परिवार को होली मुबारक ।
वाहवा.. गौतम भाई, बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने.. बहुत बधाई ...
जवाब देंहटाएंगौतम जी कहते हैं न कि "इस सादगी पर कौन न मर जाये भला" आपकी गज़ल के लिये कही गयी प्रतीत होते है। हरा कर दिया आपनें।
जवाब देंहटाएंकसी हुई ग़ज़ल है। सर शेर खूबसूरत व सही तरह कहा गया है।
जवाब देंहटाएंजरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
हवाओं के परों पर उड़ने की यूँ तो तमन्ना थी
पड़ा जब सामने तूफां,जमीं पैरों तले खिसकी
एक नयापन है, इस अनूठी ग़ज़ल में, बधाई!
जवाब देंहटाएंरंगों के त्योहार होली पर आपको एवं आपके समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ
---
चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
lajawaab gazal, holi ki shubh kaamnayen.
जवाब देंहटाएंजरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
जवाब देंहटाएंभुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
वाह वाह!
बहुत खूबसूरत गज़ल है, मेज़र साहब!
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें!
कमाल। जबरदस्त। बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंमुबारक होली की।
अनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
कमाल। जबरदस्त। बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंमुबारक होली की।
अनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
behad khoobsoorat ,bheetar tak chootee huee gazal.
जवाब देंहटाएंjai ho
praveen pandit
आप सबों का शुक्रगुजार हूँ इस हौसलाअफ़जाई के लिये
जवाब देंहटाएंइस गज़ल को गज़ल जैसा कहने लायक परम आदरणीय महावीर जी और द्विज जी ने बनाया है।
और प्राण साब के शब्दों के लिये आभार कि वो मुझे इस काबिल समझते हैं...
कुछ व्यस्त होने के कारण टिप्पणी ठीक समय पर न दे सका।
जवाब देंहटाएंगौतम जी, निहायत आला ग़ज़ल है। सही बात तो यह है कि इसके ख़याल, बहर और शब्दों का चयन आपके मस्तिष्क और दिल की उपज है जिसके लिए आप वाक़ई बधाई के हक़दार हो।
बेहतरीन गज़ल की बधाई के साथ आप सभी को होली की अनेक शुभकामनाऎं
जवाब देंहटाएंजलूँ जब मैं,जलाऊँ संग अपने लौ मशालों की
जवाब देंहटाएंजलाये दीप जैसे,जब जले इक तीली माचिस की
wah bhaut sunder sher bhaut bhaav purn joshila
जरा-सा मुस्कुरा कर जब मेरी बेटी मुझे देखे
भुला देता हूँ दिन भर की थकन सारी मैं आफिस की
bahut nazuk samvedansheel ghari baat
सितारे उसके भी,हाँ, गर्दिशों में रेंगते देखा
कभी थी सुर्खियों में हर अदा की बात ही जिसकी
hmm ye zindgi ka sachha roop hai
हवाओं के परों पर उड़ने की यूँ तो तमन्ना थी
पड़ा जब सामने तूफां,जमीं पैरों तले खिसकी
bahut kamaal ka sher hai asli zindgi dikhate hue
bahut hi sunder gazal
der se aane ke liye maafi chahti hoon
बहुत बढ़िया गज़ल है यह मेजर साहब की ।
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रचना ......
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.