
विजय कुमार सपत्ति के लिये कविता उनका प्रेम है। विजय अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा हिन्दी को नेट पर स्थापित करने के अभियान में सक्रिय हैं।
आप वर्तमान में हैदराबाद में अवस्थित हैं व एक कंपनी में वरिष्ठ महाप्रबंधक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला
जब हर कोई मेरा साथ छोड़ दे ,
दुनिया के भीड़ में तन्हा छोड़ दे
तब ज़िन्दगी की तन्हाइयों में
एक तेरा ही तो साया ;
मेरे साथ होता है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला
प्रीत ; अब मुझे किसी से न रही
कोई अपना ,कोई पराया न रहा
हर सुबह ,हर शाम
बस एक तेरा ही नाम
अब मेरे होठों पर है मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला
मेरी दुनिया में ,अब मेरा मन नही लगता
यहाँ की बातों में कोई दिल नही बसता
सुना है तेरी दुनिया में बड़े जादू होतें है
तेरी दुनिया में चाहत की नदिया बहती है
मुझे भी अपनी दुनिया में बुला ले ,मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला
मुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
अपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
व्यथित हृदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला !
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला !!
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला !!!
12 टिप्पणियाँ
बहुत अच्छी कविता है, बधाई।
जवाब देंहटाएंमुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
जवाब देंहटाएंअपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
व्यथित हृदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
बडे ही सूफ़ियाना अंदाज में लिखा है, बहुत सुन्दर रचना।
bahut sunder
जवाब देंहटाएंमुझे अब ; किसी से कोई शिकवा नही ,
जवाब देंहटाएंअपना - पराया , सब कुछ छोड़ यही ;
व्यथित हृदय के साथ , तेरे दर पर आया हूँ ,
दोनों हाथों की झोली फैलाये हुए हूँ
मेरी झोली अपने प्यार से भर दे मेरे मौला
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला !
मुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला !!
प्रार्थना जैसी कविता है। अच्छी लगी।
आपकी अनोखी शैली है पूरी तरह मौलिक और आपका अपना अंदाज है। आपकी कवितायें अच्छी लगती हैं।
जवाब देंहटाएंNice Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
मुझे अपने रंग में ; रंग दे ,मेरे मौला !
जवाब देंहटाएंमुझे भी अपने संग ले ले ,मेरे मौला !!
मेरा सब कुछ अब तू ही मेरे मौला !!!
सूफ़ियाना अंदाज में कही गयी अच्ची रचना है।
सहज सुन्दर सुफ़ियाना अन्दाज की रचना... पढ कर आनन्द आया.. सच में पूर्ण समर्पण से ही हम उसे पा सकते है और अपना जीवन सफ़ल कर सकते हैं
जवाब देंहटाएंकई बार मन करता है कि सब कुछ छोड़-छाड़ के उसकी शरण में चले जाएँ....
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
सुन्दर सुफ़ियाना अन्दाज.....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.....
बहुत अच्छी कविता। अलग सी है।
जवाब देंहटाएंविजय जी आपकी इस कविता मे भी आपकी झलक है। बहुत बधाई आपको।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.