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मुखौटा [लघुकथा] - सीमा सचदेव


मेट्रिक पास, उम्र लगभग सोलह साल, बातों में इतनी कुशल कि बड़े-बड़ों मात दे जाए, साँवला रंग, दरमियान कद, दुबली-पतली, तेज़ आँखें, चुस्त - दुरुस्त, व्यक्तित्व ऐसा कि क्या डॉक्टर, क्या इन्जीनियर, क्या करोड़पति महिलाएं उसके इशारे पर नाचने को मजबूर हो जाती है। 
बड़ी ही चालाकी से वह दूसरों के बाल काट देती है , केवल बाल ही नहीं काटती मुँह पर थपेड़े भी मारती है और किसी को बुरा भी नहीं लगता बल्कि इसके लिए मिलती है उसको अच्छी खासी मोटी रकम भी (जो वह किसी और के लिए होती है) कोई खुशी से देती है तो कोई मजबूरी में लेकिन देती सब है,जिसको वह अपनी उंगलियों पे नचाती है जिस तेज़ी के साथ चेहरे पर उसके हाथ चलते है उसी आत्म-विश्वास के साथ चलती है बालों में कैंची कभी वह अपनी गोदी में पैर रख कर बिना किसी भेद-भाव और नफरत के करती है दूसरों के पैरो और नाख़ुनों की सफाई और कभी उतनी ही ईमानदारी से करती है मालिश और साथ - साथ में चलती रहती है उसकी मीठी जुबान भी अपने हाथों और जुबान में तालमेल बैठाना वह बखूबी जानती है। 

साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-


2 अक्टूबर, 1974 को पंजाब के अबोहर मे जन्मी सीमा सचदेव पेशे से हिन्दी-अध्यापिका हैं। इनकी कई रचनाये जैसे- विभिन्न अंतर्जाल पत्रिकाओ मे प्रकाशित हैं। "मेरी आवाज़ भाग-१,२", "मानस की पीड़ा",,"सन्जीवनी", "आओ सुनाऊं एक कहानी", "नन्ही कलियाँ", "आओ गाएं" नामक रचना-संकलन ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हैं।

जी हाँ ! मैं जानती हूँ एक ऐसी लड़की को जो एक लेडिज़ ब्यूटी पार्लर में काम करती है नहीं , वह केवल ब्यूटी पार्लर में काम नहीं करती , बल्कि एक घरेलू कन्या है। .... । घरेलू कन्या ! नहीं घरेलू नौकरानी है अरे ! वह एक छोटे बच्चे की आया भी है, अभी वह स्वयं भी बच्ची ही है छोटी सी गुड़िया को नहलाना, उसका लन्च बॉक्स तैयार करना और फिर स्कूल(डे केयर) छोड़ने जाना वापिस आ कर सबका नाश्ता तैयार करना, सबको खिलाना,बर्तन साफ करना, ब्यूटी पार्लर में जाना और जुट जाना अपने काम में दोपहर का भोजन भी वही बनाती है, शाम तक कार्य और फिर बच्ची को स्कूल से लाना, घर जाकर रात का खाना बनाना, बर्तन साफ करना, रात को कपड़े धोना, सुखाना और अगली सुबह सबके पहनने के लिए कपड़े इस्तरी करना और फिर जाकर पूरी दुनिया को सुलाकर सोना, सुबह सूर्य की पहली किरण से पहले जागना उसका नियमित कार्य है फिर भी उसके चेहरे पर कभी उदासी नहीं देखी हमेशा मुस्कराता हुआ चेहरा अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। 
उसे देखने पर ऐसा महसूस होता है मानो दुनिया की सबसे खुश रहने वाली लड़की वही है कभी कोई शिकन नहीं , और न ही कोई शिकायत निम्मो यही नाम है उसका या फिर सभी उसे इसी नाम से बुलाते है कभी -कभी मुलाकात हो जाती है , जब मैं भी अपने बच्चे को स्कूल छोड़ने जाती हूँ दोनों बच्चे एक ही स्कूल में है जब मिलती है तो थोड़ी बातचीत होना स्वाभाविक है। एक दिन ऐसे ही बातों ही बातों में मैंने पूछ लिया, (जो शायद मुझे नहीं पूछना चाहिए था ) तुम्हें कितनी तनख्वाह मिलती है ? (निम्मो के चेहरे पर कुछ अजीब से भाव दौड़ गए ,लेकिन बिना मुझे महसूस करवाए उसने उत्तर दिया)  - दो हजार मैडम। 
केवल दो हजार ....? 

(चेहरे पर व्यंज्ञात्मक हँसी को छुपाने का असफल प्रयास करती हुई) बहुत है मैडम।
पर तुम दिन भर काम करती हो बच्चे को सँभालना, घर की सारी जिम्मेदारी और फिर ब्यूटी पार्लर में भी काम देखना ,कैसे कर लेती हो यह सब ? 

हो जाता है मैडम ..... 

पर इतनी कम तनख्वाह में कैसे .....? तुम्हें तो काम करने का अनुभव है फिर तुम अपना स्वयं का काम क्यों नहीं शुरू कर लेती ?अच्छी -खासी कमाई भी होगी और इतना काम भी नहीं करना पड़ेगा..... 

(निम्मो की आँखें आँसुओं से छलक आई ) मजबूरी मैडम...... 

बस निम्मो इतना ही बोल पाई थी कि पीछे से उसकी किसी नियमित ग्राहक ने आवाज़ दे कर बुलाया निम्मो ने बिना कोई देरी किए अपने आँसू पोंछ लिए और पीछे मुड़कर उसे हँसते हुए बुलाया , उसके चेहरे पर वही हँसी थी मैं उस हँसी का राज जान चुकी थी पहली बार मुझे उसकी हँसी नकली प्रतीत हुई और लगा जैसे उसने चेहरे पर मुखौटा ओढ़ रखा हो। (जिस चेहरे पर मैंने सदा हँसी ही देखी , उसकी आँखों में आँसू देखकर मुझे खुद को ग्लानि अनुभव हुई)। निम्मो तो अपने उसी अंदाज में बात कर रही थी और मैं खड़ी हुई निम्मो की मजबूरी सोचने पर मजबूर थी कितने ही प्रश्न मन में उठने लगे थे ? मेरे पास हर प्रश्न का जवाब तो था मगर कोई हल नहीं

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14 टिप्पणियाँ

  1. सच है कि मुस्कुराहट भी कभी कभी मुखौटा होती है। सीमा जी साहित्य शिल्पी पर आपका बहुत स्वागत।

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  2. आम दृश्य है, हम आम तौर पर मुस्कुराहट के अर्थ नहीं निकाल पाते लेकिन एक लेखिका कैसे चूक सकती थीं। बहुत अच्छी लघुकथा है सीमा जी।

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  3. "मेरे पास हर प्रश्न का जवाब तो था मगर कोई हल नहीं" सही कहा आपने सीमा जी। इन सवालों के हल नहीं मिलते। संवेदन शील कहानी है।

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  4. मैने एक कविता लिखी थी उसी की चार लाईन आपकी कहानी पर टिप्पणी के रूप में लिख रहा हूं..

    चेहरों के पीछे कितने चेहरे हैं
    कभी पलट कर गौर से देखो
    मेलों की हँसती भीड़ में तुमको
    दर्द सजीले मिल जायेंगे

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  5. मन को उद्वेलित करती है कहानी। साहित्य शिल्पी पर आपका स्वागत।

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  6. अच्छा चरित्र उकेरा सीमा जी ने आप के जिस गहराई से चरित्र को एक लघु कथा के सीमित शब्दों में खींचने का काम किया , उस से सिद्ध होता है कि आप निम्मो चरित्र से ह्रदय से जुड़ पायी हैं |
    "मेरे पास हर प्रश्न का जवाब तो था मगर कोई हल नहीं"....
    लघु कथा का अंत भी सशक्त है जब आप पाठक को एक विचारमग्न अवस्था में छोड़ते हुए कथा समाप्त करती हैं |
    वैसे इस चरित्र को थोडी और बड़ी कहानी के लिए उपयोग में लाया जा सकता था | :-)

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  7. मुस्कान के मुखौटा हो जाने का दर्द प्रस्तुत करती आपका लघु कथा प्रसंशनीय है।

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  8. बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा। आपकी अब तक बाल कहानियाँ व कवितायें ही पढी थीं। आपकी इस प्रतिभा से पहली बार साक्षात्कार हुआ।

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  9. बहुत सुन्दर। दिल को छू लेने वाली कथा। बधाई।

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  10. आपकी विविधता और बहुआयामी प्रतिभा इस लघुकथा से निकल कर बाहर आयी है। आप न केवल एक अच्छी बाल साहित्यकार हैं अपितु आप साहित्य की हर विधा में समान दखल रखती हैं। यह लघुकथा आपकी अनुभवशीलता और परख को शब्द देने की विलक्षण प्रतिभा का सुन्दर नमूना है।

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  11. चाहे मजबूरी ही सही....एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैँ लोग ...


    अच्छी लघुकथा

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  12. दुनिया का शायद यही सच्चा रूप है....चहरे के ऊपर चेहरा....सच क्या है समझ ही नहीं आता....!!

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  13. मानीय महोदय
    आपके ब्लाग पर रचनाएं पढकर बहुत ही अच्छा लगा। इन रवनाओं में जीवन का मधुर संगीत है जो बांसुरी की धुन सा लग रहा है। संगीत के सातों सुरों से आने वाली सुमधुर धुन सदा आपके जीवन को सुखमय बनाएं रखें यही आशाकरता हूं।
    अखिलेश शुक्ल
    http://katha-chakra.blogspot.com

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