कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन 31 मई 1857 को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था परन्तु 29 मार्च 1857 को बैरक्पुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे (19 जुलाई 1827 - 8 अप्रेल 1857) के विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इन्तजार नहीं कर सकी और प्रथम स्वाधीनता संग्राम का आगाज हो गया. मंगल पाण्डे को 1857 की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है.
29 मार्च 1857, दिन रविवार - उस दिन जनरल जान हियर्से अपने बंगले में आराम कर रहा था कि एक लेफ़्टिनेन्ट बदहवास सा दौडता हुआ आया और बोला कि देसी लाईन में देंगा हो गया है. खून से रंगे अपने घायल लेफ़्टिनेन्ट की हालत देखकर जनरल जान हियर्से अपने दोनों बेटों को लेकर 34वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेन्ट के परेड ग्राऊंड की और दौडा. उधर धोती-जैकट पहने 34वीं देसी पैदल सैना का जवान मंगल पाण्डे नंगे पांव ही एक भरी बन्दूक लेकर कवाटर गार्ड के सामने बडे ताव में चहल कदमी कर रहा था और रह-रह कर अपने साथियों को ललकार रहा था - "अरे ! अब कब निकलोगे ? तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो ? ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे. आओ सब मेरे पीछे आओ. हम इन्हें अभी खत्म कर देते हैं." लेकिन अफ़सोस किसी ने उसका साथ नहीं दिया. परन्तु मंगल पाण्डे ने हार नहीं मानी और अकेले ही अंग्रेजी हुकूमत को ललकारता रहा. तभी अंग्रेज सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया. यह सुन मंगल माण्डे का खून खौल उठा और उसकी बन्दूक गरज उठी. सार्जेट मेजर ह्यूसन वहीं लुढक गया. अपने साथी की यह स्थिति देख घोडे पर सवार लेफ़टिनेन्ट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वाग मंगल पाण्डे की तरफ़ बढता है, परन्तु इससे पहले कि वह उसे काबू कर पाता मंगल पाण्डे ने उस पर गोली चला दी. दुर्भाग्य से गोली घोडे को लगी और वाग नीचे गिरते हुये फ़ुर्ती से उठ खडा हुआ. अब दोनो आमने-सामने थे. इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली और पलक झपकते ही वाग के सीन और कंधे को चीरते हुये निकल गई. तब तक जनरल जान हियर्से ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डे को तुरन्त गिरफ़्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया. तब जनरल हियर्से ने भोख पल्टू को मंगल पाण्डे को गिरफ़्तार करने का हिक्म दिया. भोख पल्टू ने मंगल पाण्डे को पीछे से पकड लिया. स्थिति भयावह हो चली थी. मंगल पाण्डे ने गिरफ़्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बंदूक की नाली अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फ़ायर कर दिया. लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो मंगल पाण्डे सिर्फ़ घायल होकर ही रह गया. तुरन्त अंग्रेजी सैना ने उसे चारों तरफ़ से घेर कर बन्दी बना लिया और मंगल पाण्डे के कोर्टमार्शल का आदेश हुआ. अंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रेल को फ़ैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रेल को फ़ांसी पर चढा दिया जाये. परन्तु बाद में यह तारीख 8 अप्रेल कर दी गई ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेन्टों में भी न फ़ैल जाये. मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फ़ांसी देने को तैयार नहीं हुआ. नजीतन कल्कत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को 8 अप्रेल, 1857 के दिन फ़ांसी पर चढा दिया गया. मंगल पाण्डे को फ़ांसी पर चढाकर अंग्रेजी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को खत्म करना चाहा, वह तो फ़ैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आगोश में ले लिया.
श्री राम शिवमूर्ति यादव जी समाज शास्त्र में काशी विद्यापीठ वाराणसी से स्नातकोतर हैं तथा देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनकी रचनायें छपती रही हैं. बेव पर इनकी रचनायें साहित्य कुंज, रचनाकार, हिन्दी नेस्ट, स्वर्गविभा, कथाव्यथा, वांग्मय पत्रिका पर उपलब्ध हैं. सामाजिक व्यवस्था एंव आरक्षण (१९९०) प्रकाशित हो चुकी है तथा लेखों का एक अन्य संग्रह प्रेस में है. भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा "ज्योतिवा फ़ुले फ़ेलोशिप सम्मान से सम्मानित तथा राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा "भार्ती ज्योति" से सम्मानित. सम्प्रति : उत्तर प्रदेश सरकार में स्वास्थय शिक्षा अधिकारी के पद से सेवानिव्रति के पश्चात स्वतन्त्र लेखन व अधय्यन एंव समाज सेवा.
14 मई 1857 को गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंगज ने मंगल पाण्डे का फ़ांसी नामा अपने आधिपत्य में ले लिया. 8 अप्रेल, 1857 को बैरकपुर, बंगाल में मंगल पाण्डे को प्राण दण्ड किया जाने के ठीक सवा महीने बाद, जहां से उसे कल्कत्ता के फ़ोर्ट विलियम कालेज में स्थानान्तरित कर दिया गया था. सन 1905 के बाद जब लार्ड कर्जन ने उडीसा, बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश की थल सेनाओं का मुख्यालय बनाया गया तो मंगल पाण्डे का फ़ांसीनामा जबलपुर स्थान्तरित कर दिया गया. जबलपुर के सेना आय्ध कोर के संग्राहलय में मंगल पाण्डे का फ़ांसीनाम आज भी सुरक्षित रखा है. इसका हिन्दी अनुवाद निम्नवत है :-
जनरल आर्डर्स वाय हिज एक्सीलेन्सी द कमान्डर इन चीफ़, हेड कवार्टर्स, शिमला - 18 अप्रेल 1857,
गत 18 मार्च 1857, बुधवार को फ़ोर्ट बिलियम्स में सम्पन्न कोर्ट मार्शल के वाद कोर्ट मार्शल समिति 6 अप्रेल 1857, सोमवार के दिन बैरकपुर में पुन: इकट्ठा हुई तथा पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेन्ट्री के 1446 नें के सिपाही मंगल पाण्डे के खिलाफ़ लगाये गये निम्न आरोपों पर विचार किया.
आरोप (1) वगावत : 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में परेड मैदान पर अपनी रेजीमेंट की कवार्टर्गाड के समक्ष तलवार और राईफ़ल से लैस होकर अपने साथियों को ऐसे शब्दों में ललकारा, जिससे वे उत्तेजित होकर उसका साथ दें तथा कानूनों का उल्लंघन करें.
आरोप (2) इसी अवसर पर पहला वार किया गया तथा हिंसा का सहारा लेते हुये अपने वरिष्ठ अधिकारियों, सार्जेंट-मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन और लेफ़्टिनेंट-अडजुटेंट बेंम्पडे हेनरी वाग जो 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेन्ट्री के ही थे, पर अपनी राईफ़ल से कई गोलियां दागी तथा बाद में तलवार से कई वार किये.
निष्कर्ष : अदालत पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं: 1446, मंगल पाण्डे को उक्त आरोपों का दोषी पाती है.
सजा: अदालत पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं: 1446, मंगल पाण्डे को मृत्यूप्रयन्त फ़ांसी पर लटकाये रखने की सजा सुनाती है.
अनुमोदित एंव पुष्टिकृत
हस्ताक्षरित जे.बी. हर्से, मेजर जनरल कमाण्डिंग
प्रेजीडेन्सी डिवीजन बैरकपुर - 7 अप्रेले 1857.
टिप्पणी : पांचवी कंपनी की 34वीं रेजीमेंट नेटिव इन्फ़ेंट्री के सिपाही नं: 1446, मंगल पाण्डे को कल 8 अप्रेल को प्रात: साढे पांच बजे ब्रिगेड परेड पर समूची फ़ौजी टुकडी के समक्ष फ़ांसी पर लटकाया जायेगा.
हस्ताक्षरित जे.बी. हर्से, मेजर जनरल कमाण्डिंग
प्रेजीडेन्सी डिवीजन
इस आदेश को प्रत्येक फ़ौजी टुकडी की परेड के दौरान और खास तौर से बंगाल आर्मी के हर हिन्दुस्तानी सिपाही को पढकर सुनाया जाये.
वाय आर्डर आफ़ हिज एक्सीलेन्सी
द कमान्डर इन चीफ़
सी. वेस्टर, कर्नल.
21 टिप्पणियाँ
LEKH SHAHEED MANGAL PANDEY KE
जवाब देंहटाएंKRANTIKAREE JEEVAN SE BHARPOOR
PARICHAY KARVAATAA HAI.BADHAAEE.
शहीदों को याद करने का बहुत बहुत शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंअमर शहीद मंगल पाण्डे के स्मरण मात्र से रोमांच हो उठता है. ऐतिहासिक जानकारी से परिचय कराने के लिये एक तथ्यपरक लेख - आभार
जवाब देंहटाएंबेहद प्रेरक आलेख....ऐसी सच्ची शहादत को नमन.
जवाब देंहटाएंअंग्रेजी हुकूमत ने 6 अप्रेल को फ़ैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को 18 अप्रेल को फ़ांसी पर चढा दिया जाये. परन्तु बाद में यह तारीख 8 अप्रेल कर दी गई ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेन्टों में भी न फ़ैल जाये. मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फ़ांसी देने को तैयार नहीं हुआ.
जवाब देंहटाएं_________________________________
ऐसे वीरों ने ही आजादी की राह दिखाई. श्री यादव जी ने बड़ी चौकाऊ बातें बताई हैं.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजबलपुर के सेना आय्ध कोर के संग्राहलय में मंगल पाण्डे का फ़ांसीनाम आज भी सुरक्षित रखा है. इसका हिन्दी अनुवाद पेश कर राम शिव मूर्ति यादव जी ने इतिहास को जिन्दा कर दिया है.
जवाब देंहटाएंमंगल पाण्डेय की शहादत का पूरा घटनाक्रम जिस तरह प्रस्तुत है, रोंगटे खडा कर देता है.वाकई सारगर्भित प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंNice article...Salute.
जवाब देंहटाएंऐसे आलेख युवा जगत को प्रेरणा देते हैं. अपने बेहद गहराई से इस आलेख को लिखा है.
जवाब देंहटाएंऐसे आलेख युवा जगत को प्रेरणा देते हैं. अपने बेहद गहराई से इस आलेख को लिखा है.
जवाब देंहटाएंप्रथम शहीद के बारे में इतनी ऐतिहासिक जानकारी के लिए साधुवाद....मंगल पांडे को श्रद्धांजलि.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअमर शहीद मंगल पाण्डे का
जवाब देंहटाएंस्मरण कराने के लिये....
आभार..
सारगर्भित आलेख...
बहुत बढिया आलेख ... सचमुच प्रेरणास्पद।
जवाब देंहटाएंप्रभावी जानकारी। अतीत को बहुत जानकारी पूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
जवाब देंहटाएंभारतीय स्वतंत्रता संग्राम मंगल पाण्डेय को याद किये बिना अधूरा है।
जवाब देंहटाएंआपकी जानकारी के लिए ये बता दूँ कि 1857 की क्रांति के जनक कोई मंगल पांडे नहीं थे , वो तो ब्राह्मणवादी इतिहासकारों ने अपने जातिविशेष के व्यक्ति को महिमामंडित करने के लिए उनका नाम प्रसिद्ध कर दिया । 1857 की क्रांति के जनक दलित समाज के महान देशभक्त और क्रांतिकारी " मातादीन भंगी " थे , अंग्रेजो की बैरकपुर छावनी मे ही मातादीन भंगी और मंगल पांडे दोनों कार्यरत थे , बैरकपुर विद्रोह के मुख्य सूत्रधार मातादीन थे ।(ब्राह्मणो द्वारा बनाए गए वेद-पुराण और मनुस्मृति सम्मत भेदभाव के नियमों को जिन्होने भंग किया वो "भंगी" कहलाए और आर्यों के आक्रमण के समय जो अनार्य हल्ला मचाने का काम करते थे वो हल्ला-हेल्ला-हेला कहे गए) ।
जवाब देंहटाएंमातादीन अपने विचारों में बहुत क्रांतिकारी थे , उनको जब प्यास लगती तो वो अपनी छावनी मे जानबूझकर ब्राह्मणो से ही लोटा मांगते , एक दिन उन्होने मंगल पांडे से पानी पीने के लिए लोटा मांगा लेकिन मंगल पांडे ने अपनी जाति का अभिमान दिखाते हुए मातादीन से छुआछूत और जातिसूचक भेदभाव दर्शाया और उनको भला बुरा कहा । मातादीन ने भी उसको ईंट का जवाब पत्थर से दिया और कहा कि ""तुम जो कारतूस मुंह से काटते हो उसमे गाय और सुअर की चर्बी मिली है , तब तुम्हारी पंडिताई कहाँ चली जाती है ?""
मातादीन बैरकपुर के उसी कारखाने मे काम करता था जिसमे ये कारतूस बनाए जाते थे , फिर मातादीन ने इसी गुस्से मे घूम घूमकर सभी सैनिकों को इस कारतूस की असलियत बताई और सभी भारतीय सैनिकों को इकट्ठा कर अंग्रेजो के खिलाफ देश की आज़ादी के लिए बगावत की जमीन तैयार की । बैरकपुर में सैनिकों के ऊपर जो मुकदमा चला उसका नाम ही "मातादीन बनाम अंग्रेज सरकार" था । आज़ादी के लिए गदर और विद्रोह का सूत्रपात करने वाले इन सैनिकों मे सबसे पहली फांसी भी मातादीन को ही दी गयी । बैरकपुर के कैप्टन राइट ने अपने मेजर बोन्टीन को एक पत्र लिखकर सारे मामले की जानकारी दी थी और उसमे बगावत और विद्रोह का सूत्रधार मातादीन भंगी को बताया था ।
उपरोक्त के सारे ऐतेहासिक तथ्यों से साबित होता हैं की भारत की आज़ादी की शुरुवात करने वाला "मंगल पांडे" नहीं बल्कि देशभक्त और क्रांतिकारी " मातादीन भंगी " थे ....
यादव जी आपसे अनुरोध है कि आप हमारे पिछड़े और दलित समाज के क्रांतिकारी और प्रेरणास्त्रोत " मातादीन भंगी " के ऊपर भी अगर एक लिखेंगे तो सभी मूलनिवासी भाई-बंधु आपके आभारी रहेंगे ।
जानकारीस्त्रोत :- आप ही के 'यदुकुल' मे प्रकाशित निम्नलिखित लेख से ....
http://yadukul.blogspot.in/2009/12/1857.html
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जवाब देंहटाएंdqN ,slh gh lq#vkr djuh gksxh
जब जब अपने स्वयं के धर्म पर बिपत आई है तब तब जागना ,,,सही लगा ,,,पर दस बारह साल विदेशी सेना मे भर्ती होकर ,,पुरे हिंदुस्तान पर गोली चलाना यह बहुत ही अच्छा लगा,,,,हमे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि,,,,, जिन लोग ने बगावत की थी वो अंग्रेअंग्रेजोविदेशियों की दी हुई कोई भी चीज छुछुतेक नही थे,,,,हम नमन ,करते हैं की धर्म का पालन व ररछाकरो,,,पर जो सुख सुविधा बटालियन मे रहते हुए लिए,,उन निनिक्कमोंके बारे मे भी प्रकाशित करो,,
जवाब देंहटाएंThanks sir ji
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.