शंभू चौधरी का जन्म कटिहार (बिहार) में हुआ तथा गत 25 वर्षों से कोलकाता में रह रहे हैं। बचपन से ही आप कविता, लघुकथा, व सामाजिक लेख लिख रहे हैं, जिनका देश के कई पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशन हुआ है। आपनें "देवराला सती काण्ड" के विरुद्ध कलकत्ता शहर में जुलूस निकालकर कानून में संशोधन कराने में सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया है। आपकी पुस्तक " मारवाड़ी देस का ना परदेस का" प्रकाशित है। आपने सामाजिक विषय पर चिन्तनशील पुस्तक, 'धुन्ध और धूआं', कोलकात्ता से प्रकाशित "उद्दघोष" सामाजिक पत्रिका के 'जमुनालाल बजाज विशेषांक' और 'भंवरमल सिंघी विशेषांक' का सम्पादन भी किया है। वर्तमान में आप कोलकात्ता से प्रकाशित "समाज विकास" सामाजिक पत्रिका के सह-संपादक और कथा-व्यथा ई पत्रिका के संपादक हैं साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं
आज, अपने आपको खोजता रहा,
अपने आप में,
मीलों भटक चुका था,
चारों तरफ घनघोर अंधेरा
सन्नाटे के बीच एक अजीब सी,
तड़फन,
जो आस-पास,
भटक सी गयी थी।
शून्य! शून्य! और शून्य!
सिर्फ एक प्राण,
जो निःसंकोच, निस्वार्थ रहता था,
हर पल साथ
पर मैंने कभी उसकी परवाह न की,
अचानक उसकी जरूरत ने,
सबको चौंका दिया।
चौंका दिया था मुझको भी,
पर! अब वह
बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर...
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज...
11 टिप्पणियाँ
यहाँ हर चीज़ नश्वर है....आज जीना है तो कल मरना भी है
जवाब देंहटाएंजीवन-मरण के चक्रव्यूह से ना कोई बच पाया है और ना ही कोई बच पाएगा
अच्छी कविता
गहरी रचना!! बधाई.
जवाब देंहटाएंअपने अंतर मन को खोजते हुवे.........सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंye jeevan hai ek behti dhara ek kinara sukh haiiska duja hai dukh sukh dukh se upar uthkarjisne jeena sikh lia is jag to jeeta usne us jag ko bhi jeet lia
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव। कहते हैं कि-
जवाब देंहटाएंअपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास।
कितना दुश्वार है खुद को कोई चेहरा देना।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दार्शनिकता समेटे एक गहरी रचना.
जवाब देंहटाएंnice poem dipicting friction between two opposite thoughts which can not exist together.
जवाब देंहटाएंReality of life. keep writing.
Alok Katariya
बहुत ही अच्छी कविता.. बधाई
जवाब देंहटाएंshambuji ,
जवाब देंहटाएंbahut sundar kavita... bahut gahrai hai .. shabd jee uthe hai ..
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज...
in panktiyo ne to bahut asar diya hai .. dil se badhai ..
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
जो निःसंकोच, निस्वार्थ रहता था,
जवाब देंहटाएंहर पल साथ
पर मैंने कभी उसकी परवाह न की,
अचानक उसकी जरूरत ने,
सबको चौंका दिया।
चौंका दिया था मुझको भी,
पर! अब वह
बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर...
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज.
स्वयं बॊध कॊ शब्दों में उतार पान कई बार ुष्कर प्रतीत होता है. आपने इस अनुभुति को मानों उकेर सा दिया हो .... अभिनंदन
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