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परों का जब कभी तूफान से यूं सामना निकला [ग़ज़ल] - गौतम राजरिषि

परों का जब कभी तूफान से यूं सामना निकला
कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपना निकला

न जाने कह दिया क्या धूप से दरिया ने इतरा के
कि पानी का हर इक कतरा उजाले में छना निकला

जरा खिड़की से छन कर चांद जब कमरे तलक पहुँचा
दिवारों पर तेरी यादों का इक जंगल घना निकला

मेजर संदीप उन्नीकृष्णन


गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला

दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला

मसीहा-सा बना फिरता था जो इक हुक्मरां अपना
मुखौटा जब हटा,वो कातिलों का सरगना निकला

चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला
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{ये आखिरी शेर मुम्बई-कांड में शहीद हुये अपने हमनवा मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को समर्पित}
----------------------


रचनाकार परिचय:-


मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में पदस्थापित हैं।

गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।

अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।

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24 टिप्पणियाँ

  1. gautam bhaaee ki is gazal ki jitni bhi tarif kari jaaye kam hai.... behad umda gazal kahi hai unhone... maine is gazal ko unke ab tak ke sabse safal gazal kahi thi...aaj fir se padhwaane ke liye aapka shukriya...


    arsh

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी ग़ज़ल,बधाई गौतम जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
    धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला

    गौतम जी को बहुत अच्छी रचना के लिये धन्यवाद। अंतिम शेर आपकी संवेदना की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन रचना.. जिन्दगी के कई फ़लसफ़ों को उजागर करती..
    परों का जब कभी तूफान से यूं सामना निकला
    कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपना निकला
    गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
    मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला

    जवाब देंहटाएं
  5. गौतम राजरिषि जी आप बहुत अच्छे शायर हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। तथापि कुछ रचनायें "मास्टरपीस" हो जाती हैं जिनमें एक यह रचना भी है। हर शेर प्रशंसनीय है और हर कथन गंभीर।

    मेजर उन्नीकृष्णन को आपने सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

    जवाब देंहटाएं
  6. EK SE BADHKAR EK SHER KE LIYE
    SHRI GAUTAM RAJRISHI KO BADHAAEE

    जवाब देंहटाएं
  7. EK SE BADHKAR EK SHER KE LIYE
    SHRI GAUTAM RAJRISHI KO BADHAAEE.

    जवाब देंहटाएं
  8. गौतम की कलम के जादू से हम सभी परिचित हैं, बहुत ही नायाब ग़ज़ल है।

    ---
    तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

    जवाब देंहटाएं
  9. जरा खिड़की से छन कर चांद जब कमरे तलक पहुँचा
    दिवारों पर तेरी यादों का इक जंगल घना निकला

    बहुत खूब मेजर...जहाँ तक मेजर संदीप की बात है उनके बलिदान का देश कर्जदार है...ओर रहेगा ....कभी मैंने भी उन पर एक पोस्ट लिखी थी.....

    जवाब देंहटाएं
  10. kis sher ki taarif karun ..sabhi bahut khuub lagey.
    bahut umda gazal hai!

    Major Sandeep ka balidaan vyarth nahin jayega.

    जवाब देंहटाएं
  11. गौतम भाई,
    आपका हर शेर पसँद आया -
    आपके सँग ,
    हम भी ,
    शहीद उन्नीकृष्णनन के बलिदान को सदा याद रखेँगेँ !
    "जय हिन्द ! "
    स स्नेह,
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  12. "गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
    मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला"

    हर शेर उम्दा जब जुड़ता गया तो बन गई एक बढिया गज़ल...

    जितनी तारीफ की जाए...उतनी कम है

    जवाब देंहटाएं
  13. शहीद उन्नीकृष्णन को श्रद्धांजलि देते हुए आपकी इस रचना की प्रशंसा करता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
  14. चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
    धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला

    बहुत ही दिल को छू लेने वाली गजल लिखी है आपने गौतम ..मेजर संदीप को कभी भुलाया न जा सकेगा ...आपकी लिखा हर लफ्ज़ तारीफ लायक है ..

    जवाब देंहटाएं
  15. जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
    जी रहे उनकी बदौलत ही हमीं सब शान से

    क्या बात है गौतम भाई...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...मेरी बधाई स्वीकारें...ऐसे ही लिखते रहें...आमीन...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  16. गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
    मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला

    दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
    नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला

    sandeep ji ....
    her lafz ne zehan mein kumhlaaye huye ahesaas ko jagaya hai...
    hum sochte hai jamane ko unhone kis nazer se aajmaaya hai....

    bahut khoob aaapki gazal ko salam

    जवाब देंहटाएं
  17. यूं गौतम सत्य-शिव-सुन्दर की चुप आराधना करता.

    असत आतंक हरने, राजरिशी माँ का जना निकला..

    बहुत अछे भाव व् शिल्प...sadhuvad

    जवाब देंहटाएं
  18. meree aankh nam ho gayee phir se
    aapkee gazal padkar.....

    bahut umdaa....

    shukriya

    जवाब देंहटाएं
  19. गौतम जी,


    आपने अंतिम पंक्तियों में वो सब कह दिया जो किसी भी श्रद्धांजलि में कभी नहीं कहा गया । एक गंभीर रचना पर मैं बधाई शब्‍द का प्रयोग तो नहीं करना चाहता, हां इतना अवश्‍य कहना चाहता हूं कि आपने प्रत्‍येक भारतीय का मन जीत लिया और इस प्रकार से हम सबकी तरफ से संवेदना प्रस्‍तुत कर दी है ।

    जवाब देंहटाएं
  20. wah wah wah sir.......

    sir i am writing a book ''wounded mumbai'' in which i want to give more detail of major krishnan bt i have little-bit information about him can you help me plz
    if yes then mail me on-09993724479
    or mail me- renaissance.aakkii@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  21. gautam ji bahut behatreen likhte hai ... unki is gazal ne man ko bhaari kar diya ..



    dil se badhai sweekar karen ..

    vijay
    http://poemsofvijay.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  22. चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
    धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला
    यह शेर आपकी सच्ची श्रधांजलि है दिवंगत आत्मा को,
    आपकी ग़ज़ल कितनी अच्छी हैं, यह कहने की हिम्मत मैं नहीं कर सकती..
    इतने बड़े-बड़े ग़ज़ल के जानकारों के बीच मेरी बात तो वैसे भी बे-मानी होगी...
    आप आये मेरे ब्लॉग पर और मुझे हिम्मत दिलाया..
    आभारी हूँ ,, ह्रदय से...

    जवाब देंहटाएं

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