
कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपना निकला
न जाने कह दिया क्या धूप से दरिया ने इतरा के
कि पानी का हर इक कतरा उजाले में छना निकला
जरा खिड़की से छन कर चांद जब कमरे तलक पहुँचा
दिवारों पर तेरी यादों का इक जंगल घना निकला
गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला
दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला
मसीहा-सा बना फिरता था जो इक हुक्मरां अपना
मुखौटा जब हटा,वो कातिलों का सरगना निकला
चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
धुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला----------------------
{ये आखिरी शेर मुम्बई-कांड में शहीद हुये अपने हमनवा मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को समर्पित}
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मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में पदस्थापित हैं।
गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
24 टिप्पणियाँ
gautam bhaaee ki is gazal ki jitni bhi tarif kari jaaye kam hai.... behad umda gazal kahi hai unhone... maine is gazal ko unke ab tak ke sabse safal gazal kahi thi...aaj fir se padhwaane ke liye aapka shukriya...
जवाब देंहटाएंarsh
बहुत अच्छी ग़ज़ल,बधाई गौतम जी।
जवाब देंहटाएंचिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
जवाब देंहटाएंधुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला
गौतम जी को बहुत अच्छी रचना के लिये धन्यवाद। अंतिम शेर आपकी संवेदना की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति है।
बेहतरीन रचना.. जिन्दगी के कई फ़लसफ़ों को उजागर करती..
जवाब देंहटाएंपरों का जब कभी तूफान से यूं सामना निकला
कि कितने ही परिंदों का हवा में बचपना निकला
गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
मिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला
गौतम राजरिषि जी आप बहुत अच्छे शायर हैं इसमें कोई संदेह नहीं है। तथापि कुछ रचनायें "मास्टरपीस" हो जाती हैं जिनमें एक यह रचना भी है। हर शेर प्रशंसनीय है और हर कथन गंभीर।
जवाब देंहटाएंमेजर उन्नीकृष्णन को आपने सच्ची श्रद्धांजलि दी है।
EK SE BADHKAR EK SHER KE LIYE
जवाब देंहटाएंSHRI GAUTAM RAJRISHI KO BADHAAEE
EK SE BADHKAR EK SHER KE LIYE
जवाब देंहटाएंSHRI GAUTAM RAJRISHI KO BADHAAEE.
गौतम की कलम के जादू से हम सभी परिचित हैं, बहुत ही नायाब ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएं---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है ...गौतम जी का शुक्रिया ..
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
जरा खिड़की से छन कर चांद जब कमरे तलक पहुँचा
जवाब देंहटाएंदिवारों पर तेरी यादों का इक जंगल घना निकला
बहुत खूब मेजर...जहाँ तक मेजर संदीप की बात है उनके बलिदान का देश कर्जदार है...ओर रहेगा ....कभी मैंने भी उन पर एक पोस्ट लिखी थी.....
kis sher ki taarif karun ..sabhi bahut khuub lagey.
जवाब देंहटाएंbahut umda gazal hai!
Major Sandeep ka balidaan vyarth nahin jayega.
गौतम भाई,
जवाब देंहटाएंआपका हर शेर पसँद आया -
आपके सँग ,
हम भी ,
शहीद उन्नीकृष्णनन के बलिदान को सदा याद रखेँगेँ !
"जय हिन्द ! "
स स्नेह,
- लावण्या
"गली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
जवाब देंहटाएंमिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला"
हर शेर उम्दा जब जुड़ता गया तो बन गई एक बढिया गज़ल...
जितनी तारीफ की जाए...उतनी कम है
शहीद उन्नीकृष्णन को श्रद्धांजलि देते हुए आपकी इस रचना की प्रशंसा करता हूँ।
जवाब देंहटाएंचिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
जवाब देंहटाएंधुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला
बहुत ही दिल को छू लेने वाली गजल लिखी है आपने गौतम ..मेजर संदीप को कभी भुलाया न जा सकेगा ...आपकी लिखा हर लफ्ज़ तारीफ लायक है ..
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
जवाब देंहटाएंजी रहे उनकी बदौलत ही हमीं सब शान से
क्या बात है गौतम भाई...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...मेरी बधाई स्वीकारें...ऐसे ही लिखते रहें...आमीन...
नीरज
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंगली के मोड़ तक तो संग ही दौड़े थे हम अक्सर
जवाब देंहटाएंमिली चौड़ी सड़क जब,अजनबी वो क्यूं बना निकला
दिखे जो चंद अपने ही खड़े दुश्मन के खेमे में
नसों में दौड़ते-फिरते लहू का खौलना निकला
sandeep ji ....
her lafz ne zehan mein kumhlaaye huye ahesaas ko jagaya hai...
hum sochte hai jamane ko unhone kis nazer se aajmaaya hai....
bahut khoob aaapki gazal ko salam
यूं गौतम सत्य-शिव-सुन्दर की चुप आराधना करता.
जवाब देंहटाएंअसत आतंक हरने, राजरिशी माँ का जना निकला..
बहुत अछे भाव व् शिल्प...sadhuvad
meree aankh nam ho gayee phir se
जवाब देंहटाएंaapkee gazal padkar.....
bahut umdaa....
shukriya
गौतम जी,
जवाब देंहटाएंआपने अंतिम पंक्तियों में वो सब कह दिया जो किसी भी श्रद्धांजलि में कभी नहीं कहा गया । एक गंभीर रचना पर मैं बधाई शब्द का प्रयोग तो नहीं करना चाहता, हां इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि आपने प्रत्येक भारतीय का मन जीत लिया और इस प्रकार से हम सबकी तरफ से संवेदना प्रस्तुत कर दी है ।
wah wah wah sir.......
जवाब देंहटाएंsir i am writing a book ''wounded mumbai'' in which i want to give more detail of major krishnan bt i have little-bit information about him can you help me plz
if yes then mail me on-09993724479
or mail me- renaissance.aakkii@gmail.com
gautam ji bahut behatreen likhte hai ... unki is gazal ne man ko bhaari kar diya ..
जवाब देंहटाएंdil se badhai sweekar karen ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
चिता की अग्नि ने बढ़कर छुआ था आसमां को जब
जवाब देंहटाएंधुँयें ने दी सलामी,पर तिरंगा अनमना निकला
यह शेर आपकी सच्ची श्रधांजलि है दिवंगत आत्मा को,
आपकी ग़ज़ल कितनी अच्छी हैं, यह कहने की हिम्मत मैं नहीं कर सकती..
इतने बड़े-बड़े ग़ज़ल के जानकारों के बीच मेरी बात तो वैसे भी बे-मानी होगी...
आप आये मेरे ब्लॉग पर और मुझे हिम्मत दिलाया..
आभारी हूँ ,, ह्रदय से...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.