20 मई 1981 को पेन्ड्रा (छत्तीसगढ़) में जन्मे अमितोष मिश्रा ने रायपुर से बी.ई.(सूचना प्रौधोगिकी) तथा पोलीटेकनिक कॉलेज अम्बिकापुर से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया है और वर्तमान में मुंबई में एक फ्रेंच मल्टी नेशनल कंपनी में सॉफ्टवेर इंजिनियर के पद पर कार्यरत है|
लेखन मुख्यतः ग़ज़लों में उनकी विशेष रूचि है |
ये अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं और अपना एक ब्लाग "Amitosh The Shayar" चलाते हैं।
लेखन मुख्यतः ग़ज़लों में उनकी विशेष रूचि है |
ये अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं और अपना एक ब्लाग "Amitosh The Shayar" चलाते हैं।
खुदा ऐसी शब् न दे, जिसमे न तेरा ख्वाब रहे
तेरी आँखे है या समंदर हैं मय का
मेरे घर में एक भी ना, बोतल-ऐ-शराब रहे|
एक सुहाने सफ़र सी होगी जिंदगी
आसपास मेरे ग़र तुझ जैसा एक अहबाब रहे|
उठते है हाथ मेरे हर वक्त इस दुआ में
क़यामत तक तू रहे और तेरा श़बाब रहे|
चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा
खुदा खैर करे, जब दो-दो आफताब रहे|
6 टिप्पणियाँ
चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा
जवाब देंहटाएंखुदा खैर करे, जब दो-दो आफताब रहे|
बहुत खूब।
पढ़ गया पूरी गजल तो सोचता हूँ इस तरह।
कहते सुमन अच्छे सभी पर ये शेर लाजबाव रहे।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा
जवाब देंहटाएंखुदा खैर करे, जब दो-दो आफताब रहे
......... यह पंक्तियां अच्छी लगी - शुभकामना
ता-उम्र तेरी चाहतों का, सीने में एक सैलाब रहे
जवाब देंहटाएंखुदा ऐसी शब् न दे, जिसमे न तेरा ख्वाब रहे
सुंदर गज़ल ले लिये अभिनंदन।
अच्छी गज़ल... बधाई
जवाब देंहटाएंwah !!! bahut acche
जवाब देंहटाएंAvaneesh
चाँदनी रात में वो छत पर टहलना तेरा
जवाब देंहटाएंखुदा खैर करे, जब दो-दो आफताब रहे|
लाजवाब शेर इस ग़ज़ल का ..........
मजा अ गया
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