
सपनों का अहसास, जरूरी आंखों में.
लम्हा-लम्हा प्यास, जरूरी आंखों में.
योगेन्द्र मौदगिलहास्य-व्यंग्य के कवि एवं गज़लकार हैं। आपकी कविताओं की ६ मौलिक एवं १० संपादित पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपको अनेकों सम्मान प्राप्त हुए हैं जिनमें २००१ में गढ़गंगा शिखर सम्मान, २००२ में कलमवीर सम्मान, २००४ में करील सम्मान, २००६ में युगीन सम्मान, २००७ में उदयभानु हंस कविता सम्मान व २००७ में ही पानीपत रत्न प्रमुख हैं। आप हरियाणा की एकमात्र काव्यपत्रिका कलमदंश का ६ वर्षों से निरन्तर प्रकाशन व संपादन कर रहे हैं।
कदम-कदम विश्वास, जरूरी आंखों में.
आएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
हरपल ये आभास, जरूरी आंखों में.
आंख खोल कर भी जो देख नहीं पाते,
उनके लिये उजास, जरूरी आंखों में.
मिशन हो के एंबीशन, लाइफ में बंधु,
सपने भी हों खास, जरूरी आंखों में.
पहली नज़र में पेंच अगर लड़ ही जाएं,
फिर तो बाईपास जरूरी आंखों में.
एक नज़्र का खेल 'मौदगिल' खेलो तो,
दृष्टिभेद विन्यास ,जरूरी आंखों में.
13 टिप्पणियाँ
हमेशा की तरह एक बढिया रचना
जवाब देंहटाएंएक नज़्र का खेल 'मौदगिल' खेलो तो,
जवाब देंहटाएंदृष्टिभेद विन्यास ,जरूरी आंखों में.
सुंदर ... - बधाई
मोदगिल साहब की खूबसूरत रचना...........बेहतरीन ग़ज़ल.......
जवाब देंहटाएंकस्में-वादे, हया-वफ़ा, रिश्ते-नाते,
कदम-कदम विश्वास, जरूरी आंखों में.
जीवन का दर्शन है इस शेर में......लाजवाब
आएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
भविष्य की आशा........मिलन की प्यास है इस शेर में
सपनों का अहसास, जरूरी आंखों में.
जवाब देंहटाएंलम्हा-लम्हा प्यास, जरूरी आंखों में.
- छेकानुप्रास, अन्त्यानुप्रास
कस्में-वादे, हया-वफ़ा, रिश्ते-नाते,
- छेकानुप्रास, श्रुत्यानुप्रास
कदम-कदम विश्वास, जरूरी आंखों में.
-- छेकानुप्रास
आएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
-श्रुत्यानुप्रास
निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
-छेकानुप्रास, श्रुत्यानुप्रास
हरपल ये आभास, जरूरी आंखों में.
आंख खोल कर भी जो देख नहीं पाते,
- श्रुत्यानुप्रास
उनके लिये उजास, जरूरी आंखों में.
-छेकानुप्रास
मिशन हो के एंबीशन, लाइफ में बंधु,
सपने भी हों खास, जरूरी आंखों में.
पहली नज़र में पेंच अगर लड़ ही जाएं,
-छेकानुप्रास
फिर तो बाईपास जरूरी आंखों में.
-श्रुत्यानुप्रास
एक नज़्र का खेल 'मौदगिल' खेलो तो,
-छेकानुप्रास
दृष्टिभेद विन्यास ,जरूरी आंखों में.
sari gazal hi bahut lajvab hai magar is sha er se hothhon par muskan aa gaye--
जवाब देंहटाएंpehali nazar me pech-----
बेहतरीन ग़ज़ल मौदगिल साहब..
जवाब देंहटाएंनिंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा,
हरपल ये आभास, जरूरी आंखों में.
पहली नज़र में पेंच अगर लड़ ही जाएं,
जवाब देंहटाएंफिर तो बाईपास जरूरी आंखों में.
यह भी खूब रही।
सहज सहल शब्दों की एक सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंआएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
मिशन हो के एंबीशन, लाइफ में बंधु,
सपने भी हों खास, जरूरी आंखों में.
जीवन और सफ़लता का निचोड है इन पंक्तियों में
सपनों का अहसास, जरूरी आंखों में.
जवाब देंहटाएंलम्हा-लम्हा प्यास, जरूरी आंखों में.
bah wa !
wah sir kya kahne is ghazal ke!!!!
जवाब देंहटाएंयोगेन्द्र जी अपना खास अंदाज है ये
जवाब देंहटाएं"निंदक में, आलोचक में है फर्क बड़ा/हरपल ये आभास, जरूरी आंखों में"
वह-वाह मौद्गिल साब
आएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
जवाब देंहटाएंटिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
wah....
sundar gazal...
abhar
bhai yogendra ji ki baat hi kya kahne ... waah kya gazal likhi hai saheb ..
जवाब देंहटाएंआएगा, लौटेगा, इक दिन परदेसी,
टिकी रहे ये आस, जरूरी आंखों में.
dil se badhai sweekar karen ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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