
अपने आस-पास की घटनाओं का असर हर संवेदनशील मन पर पड़ता ही है। और कई बार ये घटनायें हमारे मन में चल रही विचार-श्रंखला को उलट कर रख देती हैं। ऐसी ही एक घटना इस कविता को लिखने की पृष्ठभूमि बनी। उस समय अप्रैल का आरंभ था और गेहूँ की फसल पक चुकी थी, जब अचानक बादल घिर आये। मुझे स्वभावत: बारिश पसंद है और उस समय भी बादलों की उठती घटाओं ने बाबा नागार्जुन की कविता "अमल-धवल गिरि के शिखरों पर, बादल को घिरते देखा है" की याद जगा दी थी। पर दूसरे ही पल मैंने खुद को उन किसानों की तरह चिंतित होते पाया जिनके खेत मेरे तत्कालीन कार्यालय के आस-पास थे। अभी बस यही सब सोच ही रहा था कि बारिश और फिर ओले पड़ने शुरू हो गये और देखते ही देखते कुछ देर पहले तक किसान-हृदय को संबल देते खेत पूरी तरह बरबाद हो गये। इस घटना की मेरे अंदर घुमड़ती "बादल को घिरते देखा है" के साथ प्रतिक्रिया है यह कविता:

रचनाकार परिचय:-
अजय यादव अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा आपकी रचनायें कई प्रमुख अंतर्जाल पत्रिकाओं पर प्रकाशित हैं।
आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं।
देख-देख मन हर्षित होते, आने वाली है खुशहाली
सूरज की किरणें थीं मानो, सोना बरसाती खेतों में
तभी तिरोहित होते मैंने, कृषकों का सपना देखा था।
बादल का घिरना देखा था।
घिर आईं थीं घोर घटाएँ, विस्तृत अंबर के आँगन में
धूप के साथ ही खुशी छिप गई, संशय था हरइक के मन में
बारिश जो इस वक्त हुई तो, फसलों को नुकसान करेगी
भावी अमंगल से बचने को, ईश्वर को जपना देखा था।
बादल का घिरना देखा था।
बारिश की बूँदें थी आईं, पीछे ओला-वृष्टि हुई थी
आधे घंटे से भी कम में, श्वेत-खेत की सृष्टि हुई थी
जहाँ कहीं भी नज़र घुमाएँ, या जल था या जलते ओले
वर्षा के पानी का मैंने, आँखों में तिरना देखा था।
बादल का घिरना देखा था।
हरी भरी फसलों की प्यारी, आकर्षित करती हरियाली
ओलों की चोटों के आगे, बची नहीं थी एक भी बाली
बाहर बारिश बंद हुई थी, लेकिन आँखों से जारी थी
हर्ष-आरोही मानव मन का, गहन शोक गिरना देखा था।
बादल का घिरना देखा था।
10 टिप्पणियाँ
उतार चढावों से भरी कविता दृश्य उपस्थित कर रही है। संवेदनशील कविता है।
जवाब देंहटाएंNice Poem.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
अजय जी आपकी यह कविता मुझे आपकी कविताओं में बेहद प्रिय है। कविता कलात्मक है मनोभावनाओं के उतार चढावों को जिस तरह प्रस्तुत करती है कि कोई भी संवेदित हुए बिना नहीं रह सकता।
जवाब देंहटाएंAJAY JEE AAPKEE KAVITA PADH KAR
जवाब देंहटाएंMUJHE APNEE EK LAGHU KATHA YAAD
AA GAYEE HAI.KABHEE AAP SAHITYA
SHILPI PAR PADHENGE.KHAIR,AAPKEE
SASHAKT KAVITA KE LIYE AAPKO
BADHAAEE.
अजय जी
जवाब देंहटाएंकवी का मन की भी बात के एक पहलू को पसंद करते हुवे भी कोमल रहता है और हर पहलू से उस बात को देखने की, समझने की और महसूस करने की कोशिश करता है.
आपकी रचना भी इसी सत्य को उजागर करती है और बारिश से होने वाले सुख और दर्द को तलाश करती है. लाजवाब रचना है
बारिश को हमेशा से कृषक की मित्र के रूप में देखा गया और कविताएँ इस का अपवाद नहीं हैं | अजय भाई इस में एक नया कोण ले कर आये जिस के लिए वो बधाई के पात्र हैं | साथ ही बाबा नागार्जुन की पूर्व रचित कविता की टेक की पंक्ति में हल्का सा बदलाव कर के आप एक नए भावः एवं रस की " नयी कविता " ले कर प्रस्तुत हुए. जनवादी स्वर लिए हुए किसानो की पीडा का वर्णन करती हुई एक मज़बूत कविता | (मैं इस से relate कर सकता हूँ क्यूंकि जिस फसल की तबाही का वर्णन अजय भाई ने किया है उन में हमारी धनिये की फसल भी थी , मध्य प्रदेश में )
जवाब देंहटाएंवैसे कविता से पहले जो आप ने कविता की पृष्ठभूमि समझाई है , उस के बिना भी काम हो सकता था | मेरी व्यक्तिगत राय है कि कवि को कभी भी पृष्ठभूमि का व्याख्यान नहीं करना चाहिए | इस से ऐसा प्रतीत होता है कि कवि का या तो पाठकों में भरोसा कम है या खुद में (जो कि इस सूरत में मुमकिन नहीं चूँकि आप एक सशक्त कवि हैं :-))
इस विषय पर आप के और सभी के विचार जानना चाहूँगा |
फिलहाल एक खूबसूरत और मर्मस्पर्शी कविता के लिए बधाई | :-)
itni sunder kavita hai ki man davit ho gaya sach kaha hai bevakht ki barish se yahi anjam hota hai
जवाब देंहटाएंsunder ati sunder
saader
rachana
अजय जी !
जवाब देंहटाएंरचनाकार की संवेदनशीलता लोकपीड़ा से सर्वाधिक अनुरक्त होती है. उसके सन्मुख जब भी चिन्तित और पीड़ित जन आ जाता है है उसका सौंदर्य बोध जनसमस्या की ओर अभिमुख हो जाता है. अस्तु बादलों का घिरना लोक दृष्टि से ..... आपने बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है - शुभकामना
बारिश ना हो...तो मुश्किल...
जवाब देंहटाएंबारिश हो...तो भी मुश्किल
आपकी कविता में किसानों की पीड़ा बखूबी उतर कर आई है...
अजय जी आपने बहुत सत्य कहा है ..आसपास घट रही घटनाओं का मन पर गहरा असर पडता है और अगर कवि का मन हो तो निश्चय ही प्रभाव दुगना चौगुना हो जाता है..
जवाब देंहटाएंपकी हुई फ़सल के समय आसमान में उमढे बादलों को देख कर किसान के मन के भावों को आपने बखूबी अपनी रचना में ढाला है..
ओलों की चोटों के आगे, बची नहीं थी एक भी बाली
बाहर बारिश बंद हुई थी, लेकिन आँखों से जारी थी
किसान के मन का दर्द वयान करती सुन्दर पंक्तिया..
सुन्दर मोहक कविता के लिये बधाई
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.