अक्सर शहर के जंगलों में;
मुझे जानवर नज़र आतें है!
इंसान की शक्ल में,
घूमते हुए;
शिकार को ढूंढते हुए;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
और खाते हुए!
विजय कुमार सपत्ति के लिये कविता उनका प्रेम है। विजय अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा हिन्दी को नेट पर स्थापित करने के अभियान में सक्रिय हैं। आप वर्तमान में हैदराबाद में अवस्थित हैं व एक कंपनी में वरिष्ठ महाप्रबंधक के पद पर कार्य कर रहे हैं।
और फिर
एक और शिकार के तलाश में,
भटकते हुए..!
और क्या कहूँ,
जो जंगल के जानवर है;
वो परेशान है!
हैरान है!!
इंसान की भूख को देखकर!!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे!!!
उन जानवरों के सामने;
मैं निशब्द था,
क्योंकि;
मैं भी एक इंसान था!!!
13 टिप्पणियाँ
शहरों के जंगल होने
जवाब देंहटाएंऔर शहरियों कें जंगली होने
अवसरवादिता को पराक्रम समझने वाले
एक विशेष भूख से पराजितों का
जीवंत चित्रण।
बहुत सटीक व जीवंत रचना है।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंkhub.........
जवाब देंहटाएंऔर क्या कहूँ,
जवाब देंहटाएंजो जंगल के जानवर है;
वो परेशान है!
हैरान है!!
इंसान की भूख को देखकर!!!
मुझसे कह रहे थे..
तुम इंसानों से तो हम जानवर अच्छे!!!
विजय कुमार जी !
इन पंक्तियों के मर्म को प्रायः बचपन से निकटता से देखता भोगता सा आया हूं खेद यह कि इस अंतराल में दोपाये जानवरों की निरंतर संख्यावृद्धि हुयी है.
वर्षों पूर्व एक कविता ’अंकुर’ इसी विषय पर स्रजित हुयी थी. उसकी चर्चा फ़िर कभी .....
शुभकामना और आभार एक ज्वलंत बिन्दु की ओर ध्यानाकर्षण के लिये
अक्सर शहर के जंगलों में;
जवाब देंहटाएंमुझे जानवर नज़र आतें है!
इंसान की शक्ल में,
घूमते हुए;
शिकार को ढूंढते हुए;
और झपटते हुए..
फिर नोचते हुए..
बहुत सुन्दर प्रतीक दिए हैं। बधाई स्वीकारें।
हम क्या कहें?....
जवाब देंहटाएंहम भी तो उन्हीं में से एक हैँ।
बहरहाल...कविता बढिया है
सच कह रहे हैं विजय जी आज के युग में इंसान पशुओं की प्रवृत्तियों की और भाग रहा है.
जवाब देंहटाएंजो की दुर्भाग्य पूर्ण है
- विजय
और क्या कहूँ,
जवाब देंहटाएंजो जंगल के जानवर है;
वो परेशान है!
हैरान है!!
इंसान की भूख को देखकर!!!
गहरी संवेदन शील रचना है विजय ji .....सच में इंसान की भूक बढ़ चुकी है
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआप में एक अच्छे कवि के गुण विद्यमान हैं,बस थोड़ी मेहनत करनी होगी। आपकी भाषा भी दिनोंदिन संयत और काव्यानुकूल हो चली है।सुशील कुमार
जवाब देंहटाएंहकीकत दिखलाती आपकी रचना अच्छी लगी। कहते हैं कि-
जवाब देंहटाएंसाँपों के मुकद्दर में वो जहर नहीं होता।
इन्सान अदावत पे जो जहर उगलता है।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बहुत ही अच्छी कविता.. बधाई
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.