विक्षुब्ध तरँग दीप,
मँद मँद सा प्रदीप्त,
मौन गगन दीप!
लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।
इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
मौन गगन, मौन घटा,
नव चेतन, अल्हडता
सुख सुरभि, लवलीन!
झाँझर झँकार ध्वनि,
मुख पे मल्हार
कामना असीम,
रे,कामना असीम!
मौन गगन दीप!
चारु चरण, चपल वरण,
घायल मन बीन!
रे, कामना असीम !
मौन गगन दीप!
वेणु ले, वाणी ले,
सुरभि ले, कँकण ले,
नाच रही मीन!
जल न मिला, मन न मिला,
स्वर सारे लीन!
नाच रही मीन!
मौन गगन दीप!
सँध्या के तारक से,
मावस के पावस से,
कौन कहे रीत?
प्रीत करे, जीत,
ओ मेरे, सँध्या के मीत!
मेरे गीत हैँ अतीत!
बीत गई प्रीत!
मेरे सँध्या के मीत
-कामना अतीत
रे, कामना अतीत!
मौन रुदन बीन,
रे,कामना असीम!
मौन गगन दीप!
17 टिप्पणियाँ
लावण्या जी कविता की एसी भाषा अब विलुप्त हो गयी है। पढ कर मन हरा-भरा हो गया।
जवाब देंहटाएंसँध्या के तारक से,
जवाब देंहटाएंमावस के पावस से,
कौन कहे रीत?
प्रीत करे, जीत,
ओ मेरे, सँध्या के मीत!
मेरे गीत हैँ अतीत!
बीत गई प्रीत!
गीत की प्रस्तुति का आभार। मेरे पास प्रसंशा के शब्द नहीं हैं। एसी कविताओं का पुनरावतरण होना चाहिये।
चिर पुरातन चिर नवीन -शाश्वत अनुभूति के शब्द !
जवाब देंहटाएंO MERE SANDHYA KE MEET
जवाब देंहटाएंMERE GEET HAIN ATEET
BEET GAEE PREET
LAVANYA JEE KE IS GEET MEIN
VEENA KEE MADHUR JHANKAAR HAI,
PARBATON MEIN BAHTEE HUEE BAYAAR
HAI,BOLON MEIN ITNAA NIKHAAR HAI
KI MUN BARBAS HEE MANTRAMUGDH HO
GAYAA HAI.
वाकई उम्दा रचना .
जवाब देंहटाएंकविता मे प्रक्र्ति का मानवीकरण ने छायावाद की याद दिला दी । बहुत उम्दा शब्द- संयोजन
जवाब देंहटाएंकविता वही जिसे पढने का मन करे गुननुना उठने को जी करे। कावण्या जी बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंशब्द शक्ति की जय-जयकार करती इस भावप्रवण रचना में लालित्य, माधुर्य तथा शौष्ठव की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है. साधुवाद...
जवाब देंहटाएंसँध्या के तारक से,
जवाब देंहटाएंमावस के पावस से,
कौन कहे रीत?
प्रीत करे, जीत,
ओ मेरे, सँध्या के मीत!
मेरे गीत हैँ अतीत!
behad khubsurat kavita..
shbd chayan behad akarshak aur bhaav abhivyakti safal bhi hain.
Lavnya ji badhaaayee.
बेहद खूबसूरत -बहुत -बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंआदरणीया लावण्या शाह जी की कविताओं में एक तरह की खुशबू है। आपकी हर कविता अपने लय में वेग में और शब्द चयन में उदाहरण है।
जवाब देंहटाएंलावाण्या दी को पढ़ना हमेशा ही सुखद होता है. बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंभाव साम्य---
जवाब देंहटाएंएक कविता लिखी थी, लावण्या जी की तरह अच्छी तो नहीं... पर जिक्र कर रहा हूं...
मैं रोता हूं, पर ये आंसू ना आते आंखों के बाहर
परिधी से ले लेकर टक्कर गिर जाते हैं गश खाकर.
जैसे में लड़ता हूं वैसे मेरे आंसू लड़ते हैं...
मेरा मन हर छन मरता है...
आंसू हर पल झरते हैं...
आपकी लेखनी में जयशंकर जी जीवित हैं...
खबरी
आप सभी के स्नेह तथा उदारमन से की गयी टीप्पणियोँ का बहुत बहुत आभार मानती हूँ ..
जवाब देंहटाएंभाई देवेश जी की पँक्तियाँ भी
भावपूर्ण हैँ ..
इस कविता की तरह
कुछ दूसरी भी
अनायास लिखी गयीँ हैँ -
जो ,
मेरी द्रढ आस्था है कि,
वे अज्ञात की प्रेरणा का
प्रसाद है -
हम बस, माध्यम बनते हैँ ..
अस्तु,
पुन: आभार
साहित्य - शिल्पी मँच का भी,
स स्नेह,
- लावण्या
विभिन्न भाव व रंगों से सुसज्जित रचना जिसको पढना एक सुखद एहसास है.
जवाब देंहटाएंलावण्या जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाषा,
सुन्दर रचना
आभार।
laavnaya ji ;
जवाब देंहटाएंkavita padhkar man prasann ho gaya didi ... waah ,kitni sundar man ko harne waali bhasa hai .. waah
सँध्या के तारक से,
मावस के पावस से,
कौन कहे रीत?
प्रीत करे, जीत,
ओ मेरे, सँध्या के मीत!
मेरे गीत हैँ अतीत!
बीत गई प्रीत!
kya khoob kaha hai aapne ..
dil se badhai sweekar karen ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.