आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी| गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर इधर-उधर ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे.
आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|
हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुंह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|
'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाए तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|
'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाए हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|
'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| कोई कमी रह गई हो तो बताएं|'
ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखडा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'
13 टिप्पणियाँ
बन्दर भी बदले यहाँ देख जगत का हाल।
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में दे गए कुछ संदेश कमाल।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
कम शब्द....गूढ बात...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
बहुत ही श्रेष्ठ लघुकथा है। लघुकथा का अर्थ ही है कि अन्त में कोई दर्शन की बात हो। हमारी शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंsanjiv ji ,
जवाब देंहटाएंbahut kam shbdo me aapne bahut saarthak katha kah daali hai ....
aapko badhai ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
बहुत प्रभावी लघुकथा। यह सच भी है।
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder kahani hai
जवाब देंहटाएंgagar me sagar si
saader
rachana
व्यंग्य है वर्तमान पर। पढ कर ही पता चल जाता है कि आचार्य की लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंसोचने को बाध्य करती लघुकथा।
जवाब देंहटाएंEK SAARGARBHIT LAGHUKATHA.ACHARYA
जवाब देंहटाएंJEE,BADHAEE AAPKO.
EK SAARGARBHIT LAGHUKATHA.ACHAARYA
जवाब देंहटाएंJEE,BADHAAEE AAPKO.
आप सबको धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंलपेट दिये संपादक जी, वैसे संपादक नाम की कौम अभी भी ज्यादा तबाह नहीं हुई है.. .
जवाब देंहटाएंbahut khoob!! vyang ek kalaa bhee hai aur ek guru bhee.
जवाब देंहटाएंbadhaayee!
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