
समय कैसे भागता है कब आता है कब चला जाता है पता भी नहीं चलता गीता को मेरे घर काम करते करते १० साल होने को आये। साफ सुथरी, मासूम सी एक बच्चे की माँ थी जब आई थी। आज उसके चार बच्चे हैं - ३ लड़कियाँ १ लड़का। हाँ लड़के की चाह में ३ लड़कियाँ पैदा की थी उस ने, पर उन लोगों से तो बहुत अच्छी थी जो कन्या भूर्ण का पता चलते ही उस को गिरा देते हैं।
गीता आज देर से आई माँ ने कहा "क्या गीता इतनी देर कर दी देखो कितना काम पड़ा है "
"माँ जी अबहीं किये देत हयीं। ये चुनाव बा ना इतना शोर मचावत है की का कहें। रतिया भर नीद नाही आइल, अबहीं इतना बड़ा जुलूस निकलत बा के आदमी के मुडिये मूडी दिखात बा। तिल भी छिट्को तौ घरती तक ना पहुंचे अइसन भीड़ बा। एक घंटा से खडल बानी अबहीं जा के तकनीक भीड़ कम भइल ते आ पवलीं। इहे कुल मा इन्न्हून के देर हो गइल" गीता ने कहा।
रचना श्रीवास्तव का जन्म लखनऊ (यू.पी.) में हुआ। आपनें डैलास तथा भारत में बहुत सी कवि गोष्ठियों में भाग लिया है। आपने रेडियो फन एशिया, रेडियो सलाम नमस्ते (डैलस), रेडियो मनोरंजन (फ्लोरिडा), रेडियो संगीत (हियूस्टन) में कविता पाठ प्रस्तुत किये हैं। आपकी रचनायें सभी प्रमुख वेब-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
गीता का पति ठेला लगता है। मौसम के अनुसार उस के ठेले के सामान भी बदलते हैं। गर्मियों में खीरा ककडी, बरसात में भुट्टा तो जाड़े में अमरुद,गाजर अच्छी कमाई कर लेता है।
गीता अपना काम कर के चली गई। फिर गीता २ दिन हो गए, नहीं आई। माँ बहुत परेशान थीं सारा काम करतें करते थक जाती थी। अभी हम सारा काम करके उठे ही थे कि कि गीता आ गई। बदहाल बाल बिखरे उतरा चेहरा, हम ने गीता को कभी भी एसे नहीं देखा था। माँ कुछ कहने तो थीं कि उसका ये हाल देख के चुप हो गई।
"क्या हुआ गीता" माँ का इतना कहना था कि वो जोर जोर से रोने लगी।
"का बताईं माँ जी .बिल्लू के बाउजी ............" और आगे वो कुछ नहीं कह पाई आंसूं कि धरा उसका चेहरा भिगोतो रही ।
" अरे कब क्या हुआ !'"
"उह दिनवां जब काम कर के गइलीं ते १ बजत रहा। हाली हाली खाना बनावत रहली की बिल्लू के बाऊ जी आइलें कहिलें की पेटवा दुखत बा। हींग देहली कौनो फायदा ना भइल हम पूछलीं कछु खईले बाटा। का कहिलें की नेता जी सराब बाट्त राहिलें उहे पी लेहली। इहे आखिरी बार बोललें। तबियत आउर बिगड़ गइल तव लइके अस्पताल भगली। उहाँ डाक्टर जवाब दे देहलें। बहुत हाथ गोड जोडली, पर देखिले नाही डाक्टर। कहिलें ले जा नाही ते पुलिस केस हो जाई। इतने में ते इ दम तोड़ देहलें। उजड़ गइल हमार दुनिया माँ जी। मुआ नेता अपने वोट के खातिर ना जाने कितने के मार डालिस। ये ६ ७ महिना में कबहूँ कबहूँ पियत राहिले। अब का बोली माँ जी मौत आ गइल। नहीं ते इ काहे के पियतें उ नेता ससुरा ते गद्दी पाई हमार दुनिया अंधियार क्यै देहलस" गीता रोये जा रही थी।
मै अवाक खड़ी एक एसे जुर्म को देख रही थी जिसकी कोई सुनवाई नहीं है। ये मजलूम कहाँ जायें किस से कहे मै सोच रही थी। एक वोट जीवन से बड़ा है? क्या ये गरीब लोग इन्सान नहीं है? स्वार्थ आदमी को कितना अँधा बना देता है। चन्द पैसे बचाने की खातिर जहरीली शराब बटवा दी। उफ़ कहाँ जा रहा है इन्सान। हम गीता को गले लगाये उसे सांत्वना दे रहे थे। उस का करुण क्रंदन अब सिसकियों में बदल चुका था। शायद जीवन भर के लिए...दूर किसी के घर से आरही थी आवाज - देख तेरे संसार की हालत क्या होगई भगवान के कितना बदल गया इन्सान।
10 टिप्पणियाँ
आम जनता अपने नेता नहीं चुनती, अफसोस जो चुने जा रहे हैं वे राक्षस हैं।
जवाब देंहटाएंजहरीली शराम के केस बहुत आम है हर साल हजारो मौत चुनावी मैसम में इस कारण से हो जाती हैं। आपने बहुत अच्छा संदर्भ उठाया है। सोचने की आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सार्थक लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंनीतिश जी ,नंदन जी ,निधि जी आप सभी का ह्रदय से धन्यवाद .जी एसा हो रहा है .ये एक सच्ची धटना है जो अभी पिछले महीने हुई है दिल बहुत दुख था तो लिख दिया .
जवाब देंहटाएंपुनः धन्यवाद
रचना
sahi smy pr sahi laghu katha
जवाब देंहटाएंsunder aur sachchi
mahesh
अभी मैं भी जहरीली शराब से हुई मृत्यु के एक केस का साक्षी बना था... चुनावी माहौल में ये कोरी कल्पना नहीं है बल्कि ऐसा सचमुच हो रहा है... ऐसे गरीब लोगों की भीड़ को खुश करने के लिए बहुत गंदी क्वालिटी का एल्कोहल (या नशीला सस्ता कैमिकल) जी भर के पिलाया जा रहा है... उफ... सच में मुफ्त में मौत बांट रहे हैं ये राक्षस... सबसे अलग प्रसंग उठाया है रचना जी ने
जवाब देंहटाएंखबरी...
sach kaha devesh ji
जवाब देंहटाएंme aap se sahmat hoon dhatnayen ho rahi hai .aur rachna ji ne sunder likha bhi hai .samvedanshil laghu katha
divakar rao
यह एक सच्चाई है और इस विषय पर लिख कर आपने एक लेखक का फर्ज निभाया है।
जवाब देंहटाएंजहरीली शराब और उससे हो रही मौतों के प्रकरण आम हैं। बहुत अच्छी लघुकथा है।
जवाब देंहटाएंसब ऊंची इमारते देखते हैं.. कौन जानता है इनकी नींव में क्या क्या दबा है.. चंद रुपयॊं की खातिर लोगों की जान से खेलते लोग और राजनीति का काला पक्ष उजागर करती अच्छी लघुकथा.
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.