
कभी-कभी हम सब
साथ रहते हुए भी -
कितने अज़नबी हो जाते हैं?
एक दूसरे की व्यथा, वेदना,पीड़ा,
समझ ही नहीं पाते हैं?
शोभा महेन्द्रू का जन्म उत्तरांखण्ड की राजधानी देहरादून में १४ मार्च सन् १९५८ में हुआ। हिन्दी साहित्य में प्रारम्भ से ही रुचि रही। प्राय: स्वान्तः सुखाय ही लिखा। लेखन के अतिरिक्त भाषण, नाटक और संगीत में आपकी विशेष रुचि है।
आपने गढ़वाल विश्व विद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की है।
वर्तमान में आप फरीदाबाद शहर के 'मार्डन स्कूल' में हिन्दी की विभागाध्यक्ष हैं।
और अपने भी-
फिर भी -
एक दूसरे को
तनाव, चुभन व दर्द
ही क्यों दे जाते हैं?
ये सच है कि-
दिल में प्रधान प्रेम ही है-
फिर भी ------
उपेक्षित और असुरक्षित
क्यों हो जाते हैं ?
एक दूसरे को समझना
क्या इतना कठिन काम है?
फिर जन्मों का बन्धन-
क्यों ठहराते हैं?
कहीं अनेक जन्मों से-
उलझते तो नहीं जा रहे हैं?
करीब आने की धुन में-
दूर तो नहीं जा रहे हैं?
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं -
जिनके उत्तर कभी नहीं मिलते।
इसीलिए दिल के ऑंगन में-
सुरभित- सुन्दर फूल नहीं खिलते।
12 टिप्पणियाँ
रचना भावपूर्ण है। उदय प्रताप हयात की पंक्तियाँ हैं कि-
जवाब देंहटाएंतन्हाइयों से दिल्लगी अपने मकान में।
हम हो गए हैं अजनबी अपने मकान में।
होता है उनका सामना हर शाम आपसे।
मिलते नहीं हैं मिल के भी अपने मकान में।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं -
जवाब देंहटाएंजिनके उत्तर कभी नहीं मिलते।
इसीलिए दिल के ऑंगन में-
सुरभित- सुन्दर फूल नहीं खिलते।
बहुत खूब।
कहीं अनेक जन्मों से-
जवाब देंहटाएंउलझते तो नहीं जा रहे हैं?
करीब आने की धुन में-
दूर तो नहीं जा रहे हैं?
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं -
जिनके उत्तर कभी नहीं मिलते।
इसीलिए दिल के ऑंगन में-
सुरभित- सुन्दर फूल नहीं खिलते।
बडी ही दार्शनिक बात है शोभा जी।
शोभा जी बहुत प्रभावित करने वाली दार्शनिक अंदाज की कविता है।
जवाब देंहटाएंरिश्तों की परत में छुपी तल्खियों को बखुबी उभारा है आपने अपनी इस रचना के माध्यम से. छोटी छोटी बातें ही गहरे घाव दे जाती है.. सब वक्त का फ़ेर है वर्ना क्या दिल से कोई किसी को भूल पाता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता है शोभा जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंआपको उत्तर मिलें
जवाब देंहटाएंआपके दिल के आंगन में
सुरभित फूल खिलें
शुभकामनायें
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंये सच है कि-
जवाब देंहटाएंदिल में प्रधान प्रेम ही है-
फिर भी ------
उपेक्षित और असुरक्षित
क्यों हो जाते हैं ?
ऐसी तकरार और शिकायत है कि चिंतन पर विवश करने की कोशिश कर रही है |
बधाई|
अवनीश तिवारी
ये सच है कि-
जवाब देंहटाएंदिल में प्रधान प्रेम ही है-
फिर भी ------
उपेक्षित और असुरक्षित
क्यों हो जाते हैं
अक्सर ज़िन्दगी ये सवाल पूछती है कभी न कभी हर इंसान से............हर किसी के पास अपना अपना उत्तर भी होता है........
बहुत खूब लिओखा है आपने...........जीवन का सत्य
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं -
जवाब देंहटाएंजिनके उत्तर कभी नहीं मिलते।
सचमुच शोभा जी। सही कहा आपनें।
भाव और लेखन दोनों सजग हैं
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
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