
शहर में कर्फ्यू लगा था। लोग अपने-अपने घरों में दुबके बैठे थे। गलियाँ और सड़कें सुनसान पड़ी थीं। तभी, नौ-दस बरस के दो बच्चे न जाने कब अपने घरवालों से आँख बचाकर घर से बाहर निकलकर सड़क पर खेलने लगे। दूर तक खाली पड़ी सुनसान सड़क पर खेलने में उन्हें मजा आ रहा था। रिक्शा, सायकिल, स्कूटर, मोटर कार आदि का कोई भय नहीं था।
तभी, गश्त लगा रहे सिपाही ने उन्हें देखा और डांटते हुए बोला-
''ऐ बच्चो ! भागो यहाँ से... जाओ अपने घरों में...''
सुभाष नीरव का जन्म 27–12–1953 को मुरादनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक तथा भारत सरकार के पोत परिवहन मंत्रालय में अनुभाग अधिकारी(प्रशासन) के तौर पर कार्यरत सुभाष नीरव की कई कृतियाँ यथा ‘यत्कचित’, ‘रोशनी की लकीर’ (कविता संग्रह); ‘दैत्य तथा अन्य कहानियाँ’, ‘औरत होने का गुनाह’, ‘आखिरी पड़ाव का दु:ख’(कहानी-संग्रह); ‘कथाबिंदु’(लघुकथा–संग्रह), ‘मेहनत की रोटी’(बाल कहानी-संग्रह) आदि प्रकाशित हैं। लगभग 12 पुस्तकों का पंजाबी से हिंदी में अनुवाद भी वे कर चुके हैं और अनियतकालीन पत्रिका ‘प्रयास’ और मासिक ‘मचान’ का सम्पादन भी कर रहे हैं।
हिन्दी में लघुकथा लेखन के साथ-साथ पंजाबी-हिन्दी लघुकथाओं के श्रेष्ठ अनुवाद के लिए उन्हें ‘माता शरबती देवी स्मृति पुरस्कार, 1992’ तथा "मंच पुरस्कार, 2000" से सम्मानित किया गया जा चुका है।
"साहित्य सृजन" तथा अन्य कई ब्लाग्स के माध्यम से अंतर्जाल पर भी वे सक्रिय हैं।
बच्चे अपना खेल रोक कर खड़े हो गए और सिपाही की ओर फटी आँखों से देखने लगे। हिम्मत कर उनमें से एक बच्चा बोला- ''सड़क तो खाली पड़ी है, हमें खेलने दो न, अंकल ?''
''नहीं, सड़क पर नहीं खेल सकते तुम। तुम्हें मालूम नहीं, शहर में कर्फ्यू लगा है ?''
''वो क्या होता है, अंकल ?'' कमर पर हाथ रखे सहमे-से खड़े दूसरे बच्चे ने पूछा।
''कर्फ्यू में घर से बाहर निकलने वाले को बन्दूक की गोली मार दी जाती है, समझे।''
गोली के नाम पर दोनों बच्चे सहम गए। एकाएक उनमें से एक अपने चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों पर टिकाकर आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए बेहद मासूमियत से बोला, ''तुम भी तो घर से बाहर सड़क पर घूम रहे हो।... तुम्हें भी तो कोई गोली मार सकता है… तुम भी अपने घर जाओ न अंकल !”
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19 टिप्पणियाँ
गोली के नाम पर दोनों बच्चे सहम गए। एकाएक उनमें से एक अपने चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों पर टिकाकर आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए बेहद मासूमियत से बोला, ''तुम भी तो घर से बाहर सड़क पर घूम रहे हो।... तुम्हें भी तो कोई गोली मार सकता है… तुम भी अपने घर जाओ न अंकल !”
जवाब देंहटाएंलघुकथा में ठहर कर विचार करने के कई तत्व विद्यमान हैं।
नीरज जी कडवे सच के सबसे संवेदनशील पहलु पर यह लघु-कथा लिखी गयी है।
जवाब देंहटाएंNice Short story.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
प्रभावित करती है आपकी यह लघुकथा।
जवाब देंहटाएंबधाई भाई सुभाष.
जवाब देंहटाएंअंतरतम को झकझोर देने वाली लघुकथा है.
चन्देल
गंभीर, प्रभावित करने में सफल और महत्व की कहानी है। नीरव जी को धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबच्चे...मन के सच्चे
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी
कर्फ्यू और बच्चों के सवाल दोनों की महत्वपूर्ण दिशा दे रहे है कहानी को। जलते सवाल छोड रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लघुकथा है, बधाई।
जवाब देंहटाएंसुभाष जी आपकी लघुलथा के कई मायने हैं। चेतावनी भी है कि आने वाली पीढी को वर्तमान से कैसी घुटन मिल रही है।
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं एक अच्छी लघु-कथा।
जवाब देंहटाएंगहन दृष्टिकोण है।
जवाब देंहटाएंबच्चॊं का मन एक खाली स्लेट की तरह है जो भी लिख डालो.. मगर दिमाग में प्रति प्रशन उमढते ही रहते हैं जिनका उत्तर ढूंढने में व्यस्कों को भी पसीने आ जाते हैं... थोडे शब्दों में बहुत कुछ कहती रचना..
जवाब देंहटाएंहर लिहाज से बेहतरीन लघुकथा।
जवाब देंहटाएंKAHANEE VAH HAI JO MAN AUR MASTISHK
जवाब देंहटाएंKO JHAKJHOR DE AUR KABHEE NAHIN
BHOOLEE JAAYE."APNE GHAR JAAO N
UNCLE!" AESEE HEE PRABHAVSHALEE
KAHANI HAI.SUBHAASH NEERAV KO
BADHAAEE.
बच्चे ही तो सच बोलते हैं और बचपन की उम्र फिक्र करने की नहीं होती तो फिर डर कैसा, वैसे इसमें एक बात यह भी निकल कर आती है कि पुलिसवाले के भीतर भी संवेदना थी ।
जवाब देंहटाएंसुभाष जी की लघु कथा अंदर तक हिला गई-
जवाब देंहटाएंबच्चों के माध्यम से कई प्रश्न छोड़ गई.
बहुत -बहुत बधाई..
Bahut hi badhiya laghu katha hai Neerav saheb. Bahut bahut badhai ho aapko iss katha ko likhne ke liye aur Sahitya Shilpi koi isse post karne ke liye. Main jald isska Aarsi ke liye Punjab mein anuwaad karoongi.
जवाब देंहटाएंTandeep Tamanna
Vancouver, Canada
punjabiaarsi.blogspot.com
मैं उन सभी पाठक मित्रों का दिल से आभारी हूँ जिन्होंने मेरी लघुकथा को पढ़कर अपनी बहुमूल्य राय दी। तनदीप जी, आप ने इस लघुकथा को पंजाबी में अनुवाद करके अपने ब्लॉग "आरसी" पर लगाने की इच्छा ज़ाहिर की है, यह तो मेरे लिए बेहद खुशी की बात है।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.