
कई दिनों से कमरे में घुटन सी बनी हुई थी।
हवाओं के साथ फूलों की खुशबू
समुद्री लहरों की ठंडक,
पहुँचा रही थी मेरे मन को सुकून
शंभू चौधरी का जन्म कटिहार (बिहार) में हुआ तथा गत 25 वर्षों से कोलकाता में रह रहे हैं। बचपन से ही आप कविता, लघुकथा, व सामाजिक लेख लिख रहे हैं, जिनका देश के कई पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशन हुआ है। आपनें "देवराला सती काण्ड" के विरुद्ध कलकत्ता शहर में जुलूस निकालकर कानून में संशोधन कराने में सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया है। आपकी पुस्तक " मारवाड़ी देस का ना परदेस का" प्रकाशित है। आपने सामाजिक विषय पर चिन्तनशील पुस्तक, 'धुन्ध और धूआं', कोलकात्ता से प्रकाशित "उद्दघोष" सामाजिक पत्रिका के 'जमुनालाल बजाज विशेषांक' और 'भंवरमल सिंघी विशेषांक' का सम्पादन भी किया है। वर्तमान में आप कोलकात्ता से प्रकाशित "समाज विकास" सामाजिक पत्रिका के सह-संपादक और कथा-व्यथा ई पत्रिका के संपादक हैं साथ ही स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं।
कुछ पल पूर्व मानो कोई बंधक बना लिया था
समुंदर पार कोई रोके रखा था,
कई बंधनों को तोड़, स्वतंत्रता के शब्द ताल
बज रही थी एक मधुर धुन।
सांय...सांय.....सांय.....सांय.....
मैं नितांत, निश्चित व शांत मन से
एकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुत्फ़ उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
13 टिप्पणियाँ
सुन्दर और सारगर्भित रचना |
जवाब देंहटाएंअवनीश तिवारी
shambhu ji
जवाब देंहटाएंaapne bahut hi sundar kavita likhi hai jo ki maanav man ki uljhan aur chatpatahat ko darshata hai ..
itni acchi kavita ke liye badhai sweekar karen...
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
मैं नितांत, निश्चित व शांत मन से
जवाब देंहटाएंएकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुत्फ़ उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
शंभु जी, बहुत अच्छी रचना।
अच्छी और सार्थक रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंBAHOT HI KHUBSURAT KAVITA KAHI HAI AAPNE JANAAB.... MAZAA AAGAYA... AUR JAB KAVITA SIROMANI VIJAY JI KHUD HI BADHAAYEE DE RAHE HAI TO AUR KYA KAHNE ... BAHOT HI ACHHI LAGI YE KAVITA....
जवाब देंहटाएंARSH
काश! इन हवाओं की तरह,
जवाब देंहटाएंमैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
वाह, बहुत सुन्दर।
मैं नितांत, निश्चित व शांत मन से
जवाब देंहटाएंएकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुत्फ़ उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
बढिया रचना...
बस यही हमारी कमजोरी है और ताकत भी कि हम अपने आप से आजाद नहीं हो पाते और यही गुलामी ही हमें कुछ नई सोच भी प्रदान करती है । बहुत सुन्दर भाव । बधाई
जवाब देंहटाएंshambhu ji
जवाब देंहटाएंkavita ke bhav bahut hi sunder hai .aap ki kavita hamesha hi achchhi hoti hai
saader
rachana
शम्भू जी,
जवाब देंहटाएंकाश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
यही तो कठिन है ,बहुत खूब --
Shambhu ji
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna
khas kar ye panktiyan
मैं नितांत, निश्चित व शांत मन से
एकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुत्फ़ उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
शंभू जी की रचना बहुत दिनों बाद पढ़ने को मिली, एक अच्छी कविता के लिए मैं बधाई के अतिरिक्त और दे क्या सकता हूं । बधाई ।
जवाब देंहटाएंShambhuji ki aisi aur rachnayen padhwayiye.
जवाब देंहटाएंprakash chandalia
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.