HeaderLarge

नवीनतम रचनाएं

6/recent/ticker-posts

हर कोई चाहता है [कविता] - लावण्या शाह

हर कोई चाहता है,
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
काम मेरे पास हो,
घर पर मेरे अधिकार हो,
पर, यही, मेरा और तेरा ,
क्योँ बन जाता, सरहदोँ मेँ बँटा,
शत्रुता का, कटु व्यवहार?

रचनाकार परिचय:-


लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।

समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।

इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।

रोटी की भूख, इन्सानाँ को,
चलाती है,
रात दिन के फेर मेँ पर,
चक्रव्यूह कैसे, फँसाते हैँ ,
सबको, मृत्यु के पाश मेँ ?

लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
अनहद, धन व मद का
नहीँ रहता कोई सँतुलन!
मँ ही सच, मेरा धर्म ही सच!
सारे धर्म, वे सारे, गलत हैँ !

क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
भूल कर, अपने से बडा सच!!

मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
है जो, आया अब समर का !

एक टिप्पणी भेजें

18 टिप्पणियाँ

  1. अच्छी रचना के लिए लावण्या जी के साथ-साथ साहित्य शिल्पी को भी बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
    सत्य का सामना, करो नर,
    उठो बन कर नई आग,
    जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
    है जो, आया अब समर का

    -सत्य वचन और सही सलाह!! बेहतरीन रचना!

    जवाब देंहटाएं
  3. क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
    भूल कर, अपने से बडा सच!!

    आपने सही लिखा है। मनोमंथन अनिवार्य है।

    जवाब देंहटाएं
  4. lavanya didi ;

    itni sundar aur shashakt rachna ke liye badhai sweekar karen ...

    ye sach hai ki , ab aatm manthan ki jarurat hai ..aur ye janaane ki , ki hai jo jeevan hum ji rahen hai wo waise hi jeena chahiye...?
    aapne bahut saamyik mudda uthaya hai ..

    aapko badhai ..

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  5. मनमोहक कविता। मनोमंथन के लिये प्रेरित भी करती है।

    जवाब देंहटाएं
  6. मानव मनोभाव का सार्थक मंथन करती सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  7. good one.
    Admin, Please check and make corrections in incorrect spellings.


    Avaneesh

    जवाब देंहटाएं
  8. क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
    भूल कर, अपने से बडा सच!!

    मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
    सत्य का सामना, करो नर,
    उठो बन कर नई आग,
    जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
    है जो, आया अब समर का !

    यह तो लावण्या जी की कविता ही हो सकती थी।

    जवाब देंहटाएं
  9. एक और अच्छी रचना, लावण्य़ा जी की कलम से।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सही कहा....मनोन्मन्थन परम आवश्यक है....
    भावपूर्ण सुन्दर रचना हेतु आभार.

    जवाब देंहटाएं
  11. मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
    सत्य का सामना, करो नर,
    उठो बन कर नई आग,

    आज के युग में तो ये बात और प्रासंगिक हो गयी है

    जवाब देंहटाएं
  12. lAVANYA JEE KEE HAR KAVITA MEIN
    NAVEENTAA HAI.ISEELIYE MUN KO
    BHAATEE HAI AUR JEENE KEE SAHEE
    RAAH DIKHAATEE HAI.

    जवाब देंहटाएं
  13. लावण्या जी,
    बहुत खूब --
    मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
    सत्य का सामना, करो नर,
    उठो बन कर नई आग,
    जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
    है जो, आया अब समर का !
    बहुत -बहुत बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  14. आप सभी की
    स्नेहभरी टीप्पणी और
    समय देकर मेरी कही बात को
    पढने के लिये आभार -
    'साहित्य - शिल्पी ' मँच का
    व सभी सदस्योँ का भी शुक्रिया !
    बहुत स्नेह के साथ,
    - लावण्या

    जवाब देंहटाएं
  15. सुंदर रचना .. सच है .. बहुत बढिया।

    जवाब देंहटाएं

आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.

आइये कारवां बनायें...

~~~ साहित्य शिल्पी का पुस्तकालय निरंतर समृद्ध हो रहा है। इन्हें आप हमारी साईट से सीधे डाउनलोड कर के पढ सकते हैं ~~~~~~~

डाउनलोड करने के लिए चित्र पर क्लिक करें...