
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
काम मेरे पास हो,
घर पर मेरे अधिकार हो,
पर, यही, मेरा और तेरा ,
क्योँ बन जाता, सरहदोँ मेँ बँटा,
शत्रुता का, कटु व्यवहार?
लावण्या शाह सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री हैं और वर्तमान में अमेरिका में रह कर अपने पिता से प्राप्त काव्य-परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं।
समाजशा्स्त्र और मनोविज्ञान में बी.ए.(आनर्स) की उपाधि प्राप्त लावण्या जी प्रसिद्ध पौराणिक धारावाहिक "महाभारत" के लिये कुछ दोहे भी लिख चुकी हैं। इनकी कुछ रचनायें और स्व० नरेन्द्र शर्मा और स्वर-साम्राज्ञी लता मंगेसकर से जुड़े संस्मरण रेडियो से भी प्रसारित हो चुके हैं।
इनकी एक पुस्तक "फिर गा उठा प्रवासी" प्रकाशित हो चुकी है जो इन्होंने अपने पिता जी की प्रसिद्ध कृति "प्रवासी के गीत" को श्रद्धांजलि देते हुये लिखी है।
चलाती है,
रात दिन के फेर मेँ पर,
चक्रव्यूह कैसे, फँसाते हैँ ,
सबको, मृत्यु के पाश मेँ ?
लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
अनहद, धन व मद का
नहीँ रहता कोई सँतुलन!
मँ ही सच, मेरा धर्म ही सच!
सारे धर्म, वे सारे, गलत हैँ !
क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
भूल कर, अपने से बडा सच!!
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
है जो, आया अब समर का !
18 टिप्पणियाँ
अच्छी रचना के लिए लावण्या जी के साथ-साथ साहित्य शिल्पी को भी बधाई
जवाब देंहटाएंमनोमन्थन है अब अनिवार्य,
जवाब देंहटाएंसत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
है जो, आया अब समर का
-सत्य वचन और सही सलाह!! बेहतरीन रचना!
क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
जवाब देंहटाएंभूल कर, अपने से बडा सच!!
आपने सही लिखा है। मनोमंथन अनिवार्य है।
Nice Poem, Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
बहुत अच्छी कविता है, बधाई।
जवाब देंहटाएंlavanya didi ;
जवाब देंहटाएंitni sundar aur shashakt rachna ke liye badhai sweekar karen ...
ye sach hai ki , ab aatm manthan ki jarurat hai ..aur ye janaane ki , ki hai jo jeevan hum ji rahen hai wo waise hi jeena chahiye...?
aapne bahut saamyik mudda uthaya hai ..
aapko badhai ..
vijay
मनमोहक कविता। मनोमंथन के लिये प्रेरित भी करती है।
जवाब देंहटाएंमानव मनोभाव का सार्थक मंथन करती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंgood one.
जवाब देंहटाएंAdmin, Please check and make corrections in incorrect spellings.
Avaneesh
क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
जवाब देंहटाएंभूल कर, अपने से बडा सच!!
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
है जो, आया अब समर का !
यह तो लावण्या जी की कविता ही हो सकती थी।
एक और अच्छी रचना, लावण्य़ा जी की कलम से।
जवाब देंहटाएंअति-सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंबधाई।
बहुत सही कहा....मनोन्मन्थन परम आवश्यक है....
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण सुन्दर रचना हेतु आभार.
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
जवाब देंहटाएंसत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
आज के युग में तो ये बात और प्रासंगिक हो गयी है
lAVANYA JEE KEE HAR KAVITA MEIN
जवाब देंहटाएंNAVEENTAA HAI.ISEELIYE MUN KO
BHAATEE HAI AUR JEENE KEE SAHEE
RAAH DIKHAATEE HAI.
लावण्या जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब --
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठो बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ, विहान,
है जो, आया अब समर का !
बहुत -बहुत बधाई ...
आप सभी की
जवाब देंहटाएंस्नेहभरी टीप्पणी और
समय देकर मेरी कही बात को
पढने के लिये आभार -
'साहित्य - शिल्पी ' मँच का
व सभी सदस्योँ का भी शुक्रिया !
बहुत स्नेह के साथ,
- लावण्या
सुंदर रचना .. सच है .. बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.