
भाव नहीं है राधा जैसा... तो?
तुम ढूंढो-फिरो... कन्हैया, राम, रसूल...
मैं जानता हूं... मैं बना रहना!
तुम खुदा बनो, तो बनो।
देवेश वशिष्ठ उर्फ खबरी का जन्म आगरा में 6 अगस्त 1985 को हुआ। लम्बे समय से लेखन व पत्रकारिता के क्षेत्र से जुडे रहे हैं। आपने भोपाल के माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रिकारिता विश्वविद्यालय से मॉस कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन की और फिर देहरादून में स्वास्थ्य महानिदेशालय के लिए डॉक्यूमेंट्री फिल्में बनाने लगे। दिल्ली में कई प्रोडक्शन हाऊसों में कैमरामैन, वीडियो एडिटर और कंटेन्ट राइटर की नौकरी करते हुए आपने लाइव इंडिया चैनल में असिस्टेंट प्रड्यूसर के तौर पर काम किया। बाद में आप इंडिया न्यूज में प्रड्यूसर हो गय्रे। आपने तहलका की हिंदी मैगजीन में सीनियर कॉपी एडिटर का काम भी किया है। वर्तमान में आप पत्रकारिता व स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
मेरे पद डगमग हैं... तो?
मेरी गति दुर्धर है... तो?
तुम अपनी फिक्र करो,
नसीहत मत दो...
मैं जानता हूं रास्ते टेड़े करना...
तुम अड़ो, तो अड़ो।
कर्मण्येवाधिकारस्ते...
रट लिया... रट लो!
छाले मेरे हैं...
फैसला तुम क्यों लेने लगो?
नींद, सपने, लाड़, चुंबन,
सपनों ने सब तो छल लिया,
मैं पिटूंगा, पर लड़ूंगा,
तुम डरो, तो डरो!
गर्म तवे पर,
बर्फ के डेले की तरह तड़पा हूं मैं...
हौसला करता हूं,
आग बुझेगी ये...
दही की हांड़ी में,
सहेजे सा जमा बैठा हूं...
उम्मीद में हूं,
दुनिया खट्टी होगी सब...
13 टिप्पणियाँ
मैं जानता हूं... मैं बना रहना!
जवाब देंहटाएंतुम खुदा बनो, तो बनो।
दिन बन गया देवेश जी एसी बेहतरीन कविता पढ कर।
बहुत गज़ब..बेहतरीन, देवेश.. नियमित लिखो!!
जवाब देंहटाएंdevesh bhai .. subah subah aisi damdaar poems padhwakar yaar dil hila diya .. sach me jeevan kya hai ..aapne sahi aaina pesh kiya hai paristitiyo me fanse hue insaan ki....
जवाब देंहटाएंmeri dil se badhai sweeka r kare dost..
vijay
Nice poem, Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
bahut badhiya devesh.
जवाब देंहटाएंkavita padhakar maza aa gaya.
aisee kavita padhakr mun ko sukoon milta hai aur hausala bhee.
badhai devesh.
sahityashilpi team ka aabhaar aisee behatareen racha ke liye.
जिन उपमानों का आपने प्रयोग क्या है वे अलग और प्रभाव उत्पन्न करने वाले हैं।
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी प्रथम आगमन बेहद सार्थक रहा । देवेश जी की कविता का प्रवाह अतिप्रभावशाली लगा । साहित्य शिल्पी जी आपका कार्य हिन्दी साहित्य में सराहनीय है । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंगर्म तवे पर,
जवाब देंहटाएंबर्फ के डेले की तरह तड़पा हूं मैं...
हौसला करता हूं,
आग बुझेगी ये...
दही की हांड़ी में,
सहेजे सा जमा बैठा हूं...
उम्मीद में हूं,
दुनिया खट्टी होगी सब...
आपकी कविताई का कायल होना ही पडेगा।
बहुत अच्छी कविता,बधाई।
जवाब देंहटाएंकविता में यथार्थ और कल्पना का सुंदर मिश्रण। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आनंद आ गया। बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंek nayapan liye hue
जवाब देंहटाएंaapkee rachna achchhe lagee.
abhar
wah Main jaanta hoon main bana rahna
जवाब देंहटाएंbahut ghari baat
jaha log mousam ke saath badal rahe ho waha .......
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