
रोशनी हुई है लाजवाब निकलती नही
आलोक शंकर का जन्म रामपुरवा बिहार में २५ अक्तूबर १९८३ को हुआ। आपने विकास विद्यालय रांची में बारहवी तक पढाई करने के पश्चात कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से सूचना प्राद्यौगिकी में अभियांत्रिकी का अध्य्यन किया है| वर्त्तमान में आप बेंगलुरु में सिस्को सिस्टम्स में सॉफ्टवेर इंजिनियर के रूप में कार्यरत हैं| आप विभिन्न कवि सम्मेलनों , मुशायरों में काव्य पाठ करने के अलावा रेडियो और विभिन्न वेब साईट पर कवितायें प्रसारित - प्रकाशित करते रहे हैं।
महफ़िलों की नीयतें बदल गयीं हैं आजकल
महमिलों से आजकल शराब निकलती नहीं
क़ातिलों के कायदे खुदा भी जानता नहीं
जान गई पर मुई हिज़ाब निकलती नहीं
जिन्दगी जवाब चाहती हरेक ख्वाब का
ख्वाब बह गये मगर अज़ाब निकलती नहीं
ख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
कब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
क़ौम कई लुट गये मोहब्बतों के खेल में
क्यों इबादतों से इन्कलाब निकलती नहीं
तेरे इन्तजार में बिगड़ गयी हैं आदतें
रह गयी है उम्र बेहिसाब निकलती नहीं ।
इस क़दर है ज़िन्दगी की लौ यहाँ बुझी-बुझी,
एक भी चराग़ से है आब निकलती नहीं
11 टिप्पणियाँ
waah bahut khub
जवाब देंहटाएंख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
जवाब देंहटाएंकब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
बहुत खूब ग़ज़ल कही है।
तेरे इन्तजार में बिगड़ गयी हैं आदतें
जवाब देंहटाएंरह गयी है उम्र बेहिसाब निकलती नहीं
ख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
कब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
लाजवाब ग़ज़ल है..............हर शेर शोख बहुत कुछ bolta हुवा ............
bahut sunder gazal
जवाब देंहटाएंbadhai
rachana
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआलोक जी, इस बार तो मंत्रमुग्ध हूं... हर शेर में एक एक कविता लिखी है... अश्कों और सपनों लिखना मुझे सबसे अच्छा लगता है लेकिन मैं ये तो अभी तक सोच ही नहीं पाया-
जवाब देंहटाएंख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
कब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
देवेश जी नें सही लिखा है, हर शेर संपूर्ण कविता है। परिपक्व लेखन है।
जवाब देंहटाएंआलोक जी आप हर विधा को साध कर लिखते हैं। चाहे वह कविता-नयी कविता हो, गीत हो या फिर ग़ज़ल। आपकी क्षमतायें अनंत हैं।
जवाब देंहटाएंआलोक जी बहुत अच्छी ग़ज़ल है।
जवाब देंहटाएंआलोक जी,
जवाब देंहटाएंपहला शेर विरोधाभासी लगा दूसरा कुछ कमजोर रह गया .. बाकी सभी शेर खूब बन पडे हैं.
ख़्वाहिशों के अश्क हैं हज़ार मौत मर रहे
कब्रगाह से मगर चनाब निकलती नहीं
क़ौम कई लुट गये मोहब्बतों के खेल में
क्यों इबादतों से इन्कलाब निकलती नहीं
तेरे इन्तजार में बिगड़ गयी हैं आदतें
रह गयी है उम्र बेहिसाब निकलती नहीं ।
ALOK ji apka andaje bya hume khub psand ayya..
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.