
पवन कुमार ’चंदन’ राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद के संस्थापको मे से एक और वर्तमान मे महासचिव हैं। आपका जन्म 17 दिसम्बर1953 को बागपत के गाँव मीतली मे हुआ। आपनें वर्ष 1974 मे लेखन की शुरूआत की। सन 1977 की जनता पार्टी की खिचड़ीसरकार पर दैनिक नवभारत टाइम्स में प्रकाशित कटाक्ष सेप्रकाशन का जो क्रम आरंभ हुआ वो आज तक निरंतर जारी है। आपकी रचनायें राष्ट्रीय सहारा, बालवाणी, नई दुनिया, अमर उजाला, दैनिक ट्रिब्यून इत्यादि मे खूब छप रही है। आप कलमवाला, फिल्म फैशन संसार पत्रिकाओं मे संपादकिय विभाग से जुडे रहे। ‘तेताला’ और नवें दशक के प्रगतिशील कवि काव्य संग्रह के भी आप एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। वर्तमान में आप भारतीय रेल सेवा से संबंद्ध हैं।
बड़े साहब ने
तड़क कर पूछा
आज कुछ कमाया?
उत्तर मिला, जी नहीं
ये रोज रोज की
जी नहीं, जी नहीं
अच्छा नहीं लगता
तू कमा नहीं सकता?
जी हां मै किसी का दिल
दुखा नहीं सकता।
यही प्रत्युत्त्र
उनको तंग कर गया
उनका चैन भंग कर गया
बड़े सहब अंदर तक उखड़ गये
हद से ज्यादा उधड़ गये
बोले, अबे मूर्ख
पहला ध्येय कमाना है
यही तो जमाना है
तू अगर किसी का दिल नहीं दुखाता
तो फिर मेरा क्यों दुखाता है?
और दुखा ले
तू कहीं और
क्यों नहीं चला जाता है?
कुछ तो कर
जमाने से नहीं तो मुझसे डर
अगर तू बिल्कुल नकारा है
कुछ भी न कमाना गवारा है
तो एसा कर
कहीं जाकर कविता कर.....
कहीं जाकर कविता कर.....
13 टिप्पणियाँ
सही नसीहत है।
जवाब देंहटाएंकवि से बडा निकम्मा मिलेगा कहाँ। सही दृष्टिकोण है।
जवाब देंहटाएंएक सुन्दर रचना है |
जवाब देंहटाएंमंच पर कही जाने लायक |
बधाई|
अवनीश तिवारी
कविता की दुर्गति
जवाब देंहटाएंजैसी तेज गति की
गंध आ रही है
कविता तो खुद
कवि का मजाक
बना रहा रही है
असलियत यही है
बेमंचियों के यही
हाल हैं और जो
मंचीय हैं वे महा
खुशहाल हैं।
जनाब कवी इतना गया गुज़रा तो नहीं होता है............और न ही हर कवी इतना इमानदार होता है ............
जवाब देंहटाएंजो भी है आपका व्यंग लाजवाब है........इस चरमराती व्यवस्था पर सही चोट है
बढिया कटाक्ष
जवाब देंहटाएंपवन जी आपके कविता करने का राज उजागर हो गया।
जवाब देंहटाएंअच्छा ही है कि कवि से एसे निम्मेपन की उम्मीद की जाती है।
जवाब देंहटाएंबेचारा कवि।
जवाब देंहटाएंuf kavi ka ye haal vese vyang achha hai
जवाब देंहटाएंuf kavi ka ye haal vese vyang achha hai
जवाब देंहटाएंसब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी
जवाब देंहटाएंसच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाडी..
चलिये कविता ही लिखते हैं :)
सही है
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.