
सामान्यतः हम किसी प्रसंग से उपजे प्रश्नों का समाधान उस प्रसंग में ही किया करते हैं. श्लेष से सम्बंधित एक पहलू पर किसी पाठक ने प्रश्न ही नहीं किया. उसे अचर्चित छोड़ने के स्थान पर बेहतर है कि नए प्रसंग से पूर्व उस पर चर्चा कर ली जाये.
श्लेष के उदाहरणों में आप देखें कि कहीं-कहीं एकाधिक अर्थ देनेवाले शब्द की चीर-फाड़ की गयी है, कहीं-कहीं नहीं. ऐसा क्यों? इसलिए कि शेष के दो और प्रकार सभंग श्लेष तथा अभंग श्लेष भी हैं.
अभंग शेष में शब्द का विच्छेद किये बिना उसके एकाधिक अर्थ होते हैं.
गुन तें तेल रहीम जन, सलिल कूपतें काढि
कहू को मन होत है, कहौ कूपतें बाढि..
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है।
आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि।
वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
यहाँ 'गुन' का एक अर्थ 'रस्सी' और दूसरा अर्थ 'गुना' है. शब्द को तोडे बिना दो अर्थ मिलने से यहाँ अभंग श्लेष है.
एक कबूतर देख हाथ में,
पूछा- 'कहाँ अपर है?'
उसने कहा- 'अपर कैसा?,
वह उड़ गया सपर है.'
यहाँ जहाँगीर ने नूरजहाँ से पूछा- 'तुम्हारे पास एक हे कबूतर है, अपर (दूसरा) कहाँ गया?' नूर जहाँ ने दूसरे कबूतर को उड़ते हुए उत्तर दिया- 'अपर (बिना पर का) कैसा? वह भी तो इसी कबूतर की तरह सपर (परवाला) था, सो उड़ गया. 'अपर' शब्द का विच्छेद बिना किये दो अर्थ 'दूसरा' तथा 'बिना पर का' होने के कारण यहाँ भी अभंग श्लेष है.
सभंग श्लेष में किसी शब्द के एकाधिक अर्थ तब मिलते हैं जब शब्द को तोडा जाये.
बहुरि सकर सम बिनवऊँ तेही,
संतन सुरानीक हित जेही.
यहाँ 'सुरानीक' शब्द के दो अर्थ सुरा = नीक = अच्छी शराब तथा सुर + अनीक = देवों की सेना ये दो अर्थ शब्द को तोड़ने या भंग करने पर ही मिलते हैं इसलिए यहाँ सभंग श्लेष है.
किसे पदांश में एक साथ एकाधिक अलंकार भी हो सकते हैं और एक पदांश के विविध भागों में भिन्न-भिन्न अलंकार भी हो सकते हैं.
गृह कार्य:
उक्त संकेत को ध्यान में रखकर निम्न पंक्तियों में अन्तर्निहित अलंकार बताइये. संभव हो तो छंद भी बताएँ.
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून..
**********
उपमा इकटक हेरता:
साम्य सेतु उपमा रचे, गुण बनता आधार.
साम्य बिना दुष्कर 'सलिल', जीवन का व्यापार..
उपमा इकटक हेरता, टेर रहा उपमान.
न्यून नहीं हूँ किसी से मैं भी तो श्रीमान..
इस गुहार की अनसुनी न कर हम उपमा से ही साक्षात् करते हैं.
जब किन्हीं दो भिन्न व्यक्तियों या वस्तुओं में किसी गुन या वृत्ति के आधार पर समानता स्थापित होती है तो वहाँ उपमा अलंकार होता है.
उपमा के ४ अंग होते हैं.
१. उपमेय:
वर्णन का विषय या जिसके सम्बन्ध में बात की जाए या जिसे किसी अन्य के सामान बताया जाए वह 'उपमेय' है.
2. उपमान:
उपमेय की समानता जिस वस्तु से की जाए या उपमेय को जिसके समान बताया जाये वह उपमान होता है.
३. वाचक शब्द:
उपमेय और उपमान के बीच जिस शब्द के द्वारा समानता बताई जाती है, उसे वाचक शब्द कहते हैं.
४. साधारण धर्म:
उपमेय और उपमान दोनों में पाया जानेवाला गुन जो समानता का कारक हो, उसे साधारण धर्म कहते हैं.
उदाहरण:
शब्द बचे रहें
जो चिड़ियों की तरह कभी पकड़ में नहीं आते
- मंगेश डबराल, साहित्य शिल्पी में
यहाँ 'शब्द' उपमेय, 'चिडियों' उपमान, 'तरह' वाचक शब्द तथा 'पकड़ में नहीं आते' साधारण धर्म है.
उपमा अलंकार के प्रकार:
१. पूर्णोपमा- जहाँ उपमेय, उपमान, वाचक शब्द व साधारण धर्म इन चारों अंगों का उल्लेख हो.
२. लुप्तोपमा- जहाँ उक्त चार अंगों में से किसी या किन्हीं का उल्लेख न हो अर्थात वह लुप्त हो.
लुप्तोपमा के ४ भेद
(१) उपमेय लुप्तोपमा: जब उपमेय का उल्लेख न हो,
(२) उपमान लुप्तोपमा: जब उपमान का उल्लेख न हो,
(३) धर्म लुप्तोपमा: जब धर्म का उल्लेख न हो तथा
(४) वाचक लुप्तोपमा: जब वाचक शब्द का उल्लेख न हो, हैं.
यथा:
१. 'माँगते हैं मत भिखारी के समान' - यहाँ भिखारी उपमान, समान वाचक शब्द, माँगना साधारण धर्म हैं किन्तु मत कौन मांगता है, इसका उल्लेख नहीं है. अतः, उपमेय न होने से यहाँ उपमेय लुप्तोपमा है.
२. 'भारत सा निर्वाचन कहीं नहीं है'- उपमेय 'भारत', वाचक शब्द 'सा', साधारण धर्म 'निर्वाचन' है किन्तु भारत की तुलना किस से की जा रही है?, यह उल्लेख न होने से यहाँ उपमान लुप्तोपमा है.
३. 'जनता को मंत्री खटमल सा'- यहाँ मंत्री उपमेय, खटमल उपमान, सा वाचक शब्द है किन्तु खून चूसने के गुण का उल्लेख नहीं है. अतः, धर्म लुप्तोपमा है.
४. 'नव शासन छवि स्वच्छ गगन'- उपमेय नव शासन, उपमान गगन, साधारण धर्म स्वच्छ है किन्तु वाचक शब्द न होने से 'वाचक लुप्तोपमा' है.
***********
उपमा के कुछ उदाहरण निम्न हैं. इनके अंग तथा प्रकार पहचानिये और बताइए, कोई कठिनाई हो तो हम सब मिलकर सुलझा ही लेंगे.
१. सागर सा गंभीर ह्रदय हो,
गिरि सा ऊँचा हो जिसका मन.
ध्रुव सा जिसका लक्ष्य अटल हो,
दिनकर सा हो नियमित जीवन.
२. यहीं कहीं पर बिखर गयी वह,
भग्न विजय माला सी.
उनके फूल यहाँ संचित हैं,
यह स्मृति शाला सी.
३. सुनि सुरसरि सम पावन बानी.
४. अति रमणीय मूर्ति राधा की.
५. नव उज्जवल जल-धार हार हीरक सी सोहित.
६. भोगी कुसुमायुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है.
७. नव अम्बुज अम्बर छवि नीक.
८. मुख मयंक सम मंजु मनोहर.
९. सागर गरजे मस्ताना सा.
१०. वह नागिन सी फुफकार गिरी.
११. राधा वदन चन्द्र सौं सुन्दर.
१२. नवल सुन्दर श्याम शरीर की.
सजल नीरद सी कल कांति थी.
१३. कुंद इंदु सम देह.
१४. पडी थी बिजली सी विकराल,
लपेटे थे घन जैसे बाल.
१५. जीते हुए भी मृतक सम रहकर न केवल दिन भरो.
१६. मुख बाल रवि सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ.
१७. छत्र सा सर पर उठा था प्राणपति का हाथ.
१८. लज संकोच विकल भये मीना, विविध कुटुम्बी जिमि धन हीना.
१९. सहे वार पर वार अंत तक लड़ी वीर बाला सी.
२०.माँ कबीर की साखी जैसी, तुलसी की चौपाई सी.
माँ मीरा की पदावली सी माँ है ललित रुबाई सी.
माँ धरती के धैर्य सरीखी, माँ ममता की खान है.
माँ की उपमा केवल माँ है, माँ सचमुच भगवान है.
जगदीश व्योम, साहित्य शिल्पी में.
२१. पूजा की जैसी
हर माँ की ममता है
प्राण शर्मा, साहित्य शिल्पी में
२२. माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है
प्राण शर्मा, साहित्य शिल्पी में
२३. रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
श्यामल सुमन, साहित्य शिल्पी में
२४. चहकते हुए पंछियों की सदाएं,
ठुमकती हुई हिरणियों की अदाएं!
धीरज आमेटा, साहित्य शिल्पी में
16 टिप्पणियाँ
सभंग श्लेश बहुत चमत्कृत करने वाला अलंकार है। आपके उदाहरण से इसे स्वयं प्रयोग में लाने की रुचि हुई। अभी तो ऑफिस जाने की शीघ्रता है एक उदाहरण पर कोशिश कर रहा हूँ लेकिन शाम को होमवर्क पूरा होगा -
जवाब देंहटाएंसागर (उपमेय) सा (वाचक शब्द) गंभीर (साधारण धर्म) ह्रदय(उपमान) हो,
गिरि (उपमेय) सा (वाचक शब्द) ऊँचा (साधारण धर्म) हो जिसका मन(उपमान).
ध्रुव (उपमेय) सा (वाचक शब्द) जिसका लक्ष्य (उपमान) अटल (साधारण धर्म) हो,
दिनकर (उपमेय) सा (वाचक शब्द) हो नियमित (साधारण धर्म) जीवन (उपमान).
नितेश जी नें जिस उदाहरण पर काम किया है वह पूर्णोपमा का है।
जवाब देंहटाएं*****
मेरी भी कुछ उदाहरणों पर कोशिश:
यहीं कहीं पर
बिखर - साधारण धर्म
गयी वह,
भग्न विजय माला - उपमान
सी - वाचक शब्द
उनके फूल यहाँ संचित हैं,
यह
स्मृति - साधारण धर्म
शाला सी - उपमान
लुप्तोपमा का उदाहरण
*****
सुनि
सुरसरि - उपमेय
सम - वाचल शब्द
पावन - साधारण धर्म
बानी - उपमान
पूर्णोपमा का उदाहरण
*****
अति - वाचक शब्द
रमणीय -साधारण धर्म
मूर्ति राधा की -उपमान
लुप्तोपमा का उदाहरण
क्या मेरी समझ सही दिशा में है? सलिल जी अंधों को आँखें देने के लिये धन्यवाद।
Thanks for the article sir.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
उदाहरणों में धीरज आमेटा जी का उदाहरन बहुत सुनर है और बताता है कि उपमा अलंकार कविता को कितनी सुन्दरता प्रदान कर सकती है।
जवाब देंहटाएंचहकते हुए पंछियों की सदाएं,
ठुमकती हुई हिरणियों की अदाएं!
यहाँ चहकना और ठुमकना वह विषय है जिसके संदर्भ में बात की गयी अत: उपमेय है औत तुलना पंछियों व हिरणियों से की गयी जो उपमान हैं। सदाये व अदाये साधारण धर्म तथा हुए व हुई वाचक शब्द हैं।
इस बुनियाद को समझने में मुझसे जो गलती हुई है उसे इंगित कीजियेगा।
बहुत अच्छा आलेख है, धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबेहद ज्ञानवर्धक..ऐसे अनेकों आलेखों की आवश्यक्ता है. बहुत आभार आचार्य जी का.
जवाब देंहटाएंएसे आलेख बहुत आवश्यक हैं और नेट पर इन्हे देख कर अच्छा लगता है। मेरी भी कोशिश रहेगी कि शाम या रात तक उदाहरणों पर मैं भी अलंकारों की पहचान करने की कोशिश करूं। धन्यवाद सलिल जी।
जवाब देंहटाएंसाहित्य शिल्पी एवं सलिल जी को बधाई के साथ मैं कहना चाहता हूँ कि अलंकारों पर प्रामाणिक सस्तावेज इंटरनेट पर आपके अलावा अन्य कहीं उपलब्ध नहीं है। मेरा अनुरोध है कि हर आलेख के साथ पिछले आलेखों के लिंक नीचे शीर्षक के साथ भी दे दिये जायें। इससे संकलन एक साथ देखा जा सकेगा।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है |
जवाब देंहटाएंबिलकुल सटीक, सरलता से ग्राह्य सामग्री है |
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
जवाब देंहटाएंपानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।
यहाँ पानी का प्रयोग एक बार ही किया गया है, किन्तु उसके तीन अर्थ हैं - मोती के लिये पानी का अर्थ चमक, मनुष्य के लिये इज्जत (सम्मान) और चूने के लिये पानी है अत: गृहकार्य के लिये दिया गया उदाहरण श्लेष अलंकार का है।
ALANKAAR PAR AACHAARYA SANJEEV
जवाब देंहटाएंVERMA "SALIL" JEE KAA HAR LEKH
EK SE BADHKAR EK HAI.KAVIYON KE
LIYE BHEE BAHUT SAAREE BAATEN
SEEKHNE KO HOTEE HAIN.AACHAARYA
JEE KE LEKH PADHKAR ALANKAAR KEE
KAEE BHOOLEE HUEE BAATEN MUJHE
MUJHE YAAD AA RAHEE HAIN.DHANYAVAD
UNKAA.
पंकज जी का सुझाव अच्छा है, संपादक जी विचार करें. अनिल जी इस उदहारण में तो 'पानी' शब्द ३ बार आया है. १ले, २रे व ३रे चरण में. किसी प्रयास पर अभी कोई टिप्पणी नहीं, अन्य जन भी प्रयास कर लें...और जिन्होंने उत्तर दिए हैं वे भी अपने उत्तर जाँच और सुधार लें तब तक शाबाशी उन्हें जिन्होंने प्रयास किया...
जवाब देंहटाएंगिरते हैं शाह-सवार ही मैदाने जंग में.
वो तिफ्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले..
अतः, कोशिश करने में क्या लज्जा?...
एक नम्र निवेदन...पिंगल पर चर्चा करना तलवार की धार पर चलने की तरह है, 'सावधानी हटी, दुर्घटना घटी' की तरह नज़र चुकी और त्रुटि हुई...इसलिए विद्वान् इस विषय पर चर्चा करने से बचते हैं. एक विद्यार्थी के नाते इस चर्चा में मुझसे त्रुटियाँ संभावित हैं...निवेदन यह है की जब-जहाँ त्रुटि हो, कृपया निस्संकोच इंगित करें ताकि मैं भूल सुधार सकूं और अन्य जन भ्रमित न हों.
अप्रतिम ज्ञानवर्धक महत आलेख हेतु आपका कोटिशः आभार और नमन..
जवाब देंहटाएंआचार्य सलिल जी नें सही कहा कि गलतियों से क्या शर्माना तभी सीखा जा सकता है। मैं भी कोशिश करता हूँ। कमजोर विद्यार्थी हूँ, प्राण जी के दो उदाहरण ले रहा हूँ -
जवाब देंहटाएंपूजा की जैसी
हर माँ की ममता है
पूजा की तुलना ममता से इस लिये उपमेय और उपमान हैं। जैसी नें समानता बतायी है वह वाचक शब्द होगा। हर माँ के भीतर की भावना और पूजा का प्रभाव समान हैं इस लिये साधारण धर्म।
माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है
लोरी की तुलना मुरली से इस लिये उपमेय और उपमान हैं। जादू साधारण धर्म और में है वाचक शब्द।
भूल क्षमा।
अनुज कुमार सिन्हा
भागलपुर
आचार्यवर!
जवाब देंहटाएंआपकी कक्षा का एक अनियमित विद्यार्थी होने के कारण अभी पूरी तरह आपके बताये सभी अलंकारों को नहीं समझ सका हूँ पर जल्द ही छूटे हुए अंशों का अध्ययन करने का प्रयास करूँगा ताकि आगे आपकी बताई बातों को समझने के लिये पन्ने न पलटने पड़ें।
आपके दिये गृहकार्य हेतु एक उदाहरण पर कोशिश कर रहा हूँ। शेष भी शीघ्र करता हूँ।
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चून..
रहीम के इस बेहद लोकप्रिय दोहे में वाक्यावृति यमक के साथ-साथ छेकानुप्रास, अन्त्यानु्प्रास और वृत्यानुप्रास की छटा भी दष्टव्य है। (यमक - पानी, छेकानुप्रास - स और म, अन्त्यानुप्रास और वृत्यानुप्रास - न)
बेहद ज्ञानवर्धक..आलेख ....
जवाब देंहटाएंसलिल जी !
आपका आभार...
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.