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आँखें तब आँसू भर लातीं [कविता] - अजय यादव

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प्रियतम की यादों से अलंकृत
उसकी पग-ध्वनि से आंदोलित
मन-वीणा की तारें झंकृत
होकर प्रिय को पास बुलातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं

रचनाकार परिचय:-


अजय यादव अजय यादव अंतर्जाल पर सक्रिय हैं तथा आपकी रचनायें कई प्रमुख अंतर्जाल पत्रिकाओं पर प्रकाशित हैं।

आप साहित्य शिल्पी के संचालक सदस्यों में हैं

सांसारिक कार्यों से बोझिल
दिन भर हँसते हैं सबसे मिल
हृदय टूटता रहता तिल-तिल
रातें दाह और भड़कातीं
आँखें तब आँसू भर लातीं

खिली चाँदनी है अंबर में
दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
लेकिन मेरे कातर उर में
दुख की अंधियारी गहराती
आँखें तब आँसू भर लातीं

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16 टिप्पणियाँ

  1. खिली चाँदनी है अंबर में
    दीप प्रकाशित हैं घर-घर में
    लेकिन मेरे कातर उर में
    दुख की अंधियारी गहराती
    आँखें तब आँसू भर लातीं

    बहुत खूब। छायावा की छाप है।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह अजय!! बहुत खूब प्रयास है. बहुत शुभकामना!!

    जवाब देंहटाएं
  3. अजय जी भाषा और काव्य सौष्ठव की दृष्टि से कविता बार बार पढी जा सकती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी कविता या कहूँ कविता जैसी कविता है।

    जवाब देंहटाएं
  5. "आँखे तब आँसू भर लाती"
    बहुत सुन्दर अजय जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी कविता अजय जी, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छी श्रंगार रस की प्रस्तुति है।

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह !! काव्य सौन्दर्य ने मुग्ध कर लिया ...बहुत बहुत सुन्दर कविता....

    जवाब देंहटाएं
  9. पंकज सक्सेना21 मई 2009 को 4:59 pm बजे

    बहुत खूब। भीतर उतर कर कविता लिखी है।

    जवाब देंहटाएं
  10. प्यार और विरह के भावों से सजी सुन्दर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  11. एक मीठा , सुन्दर गीत है |
    बधाई |

    अवनीश तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  12. विरह की वेदना से परिपूर्ण रचना...

    बधाई ....

    जवाब देंहटाएं
  13. ajay ji , aap jab bhi likhate ho , bus kaamal ka hi likhte ho .. prem ras me doobi hui ye rachna , prem aur vurah ke bhaavo ko kitni acchi tarah se ujagar karti hai ..

    bhai , do baar padh chuka hoon , maza aa gaya
    meri dil se badhai sweekar karen ...

    vijay

    जवाब देंहटाएं
  14. कवि का नाम भूल गया हूं- किसी कवि सम्मेलन में सुना था- बोल याद रह गए हैं- भावसाम्य के रूप में वही लिख रहा हूं-

    ना रही वो बात, ना मौसम रहा
    साथ खुशियों का बहुत ही कम रहा...
    हर तरफ से चोट ही खाने लगे,
    क्या करें, तब गीत हम गाने लगे...

    आपको पढ़ता हूं तो जयशंकर याद आते हैं, क्यों ये पता नहीं...
    सादर,
    खबरी
    http://deveshkhabri.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  15. खिली चाँदनी है अंबर में
    दीप प्रकाशित हैं घर-घर में

    गीत की तरह लय और छंद में, सुर और ताल में गाया जा सकता है ये मधुर गीत..............लाजवाब है अजय जी

    जवाब देंहटाएं

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