
कितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर,गौर कर
फिर भी उठ-उठ आ गये हैं कितने ही सर, गौर कर
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
जो भी पढ़ ले आँखें मेरी, मुझको दीवाना कहे
तू भी तो इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर
शहर में बढती इमारत पर इमारत देख के
मेरी बस्ती का वो बूढा कांपता 'बर', गौर कर
यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर
अपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नही
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोर्चे पर, गौर कर
मेजर गौतम राजरिशी का जन्म १० मार्च, १९७६ को सहरसा (बिहार) में हुआ। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी व भारतीय सैन्य अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत वर्तमान में आप कश्मीर में पदस्थापित हैं।
गज़ल व हिन्दी-साहित्य के शौकीन गौतम राजरिशी की कई रचनायें कादम्बिनी, हंस आदि साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं।
अपने ब्लाग "पाल ले एक रोग नादाँ" के माध्यम से वे अंतर्जाल पर भी सक्रिय हैं।
31 टिप्पणियाँ
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
जवाब देंहटाएंचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
भाई वाह। साथ ही
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
उक्त पंक्तियों को देखकर किसी की भोजपुरी में कही गयी पंक्तियाँ याद आयी-
तू हूँ लूट हमहूँ लूटीं लूटे के आजादी बा।
सबसे बेसी ऊहे लूटीं जेकरा देह पर खादी बा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
जवाब देंहटाएंहै जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
बहुत बढिया...
गौतम जी ग़ज़ल चिन्गारी की तरह है, बेहद ताकतवर तरीके से आपके शब्द बात कह रहे हैं -
जवाब देंहटाएंआसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
उनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
गौतम भाई का लिखा मुझे पसँद आता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे -
- लावण्या
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
जवाब देंहटाएंचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
ग़ज़ल में यही खूबी है कि इसमें बात जिस सशक्तता से कही जा सकती है पद्य के अन्य प्रकारों में नहीं।
कितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर,गौर कर
जवाब देंहटाएंफिर भी उठ-उठ आ गये हैं कितने ही सर, गौर कर
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
बहुत खूब।
Nice gazal.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
गज़ल पूरी की पूरी---बेहतरीन और उम्दा!!
जवाब देंहटाएंमजा आ गया!
बहुत अच्छी ग़ज़ल, बधाई।
जवाब देंहटाएंआसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
जवाब देंहटाएंचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
वाह....
जो भी पढ़ ले आँखें मेरी, मुझको दीवाना कहे
जवाब देंहटाएंतू भी तो इनको कभी फुर्सत से पढ़ कर गौर कर
तेवर पर तो आप खूब प्रशंसा लूट रहे हैं। लेकिन यह रुमानी ख़्याल भी कम नहीं।
बेहतरीन ग़ज़ल... गौतम जी, वैसे आपके ब्लाग पर पहले पढ़ ली थी. दोबारा भी उतना ही आनंद आया.
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल,
जवाब देंहटाएंआज के हालात से रूबरू करती हुई और मन में एक हलचल सी पैदा करती हुई
gautam bhaee ke gazalon ke kya kahane... bahot hi kamaal ki baaten likhte hai .... nazar chhote chhote chijo ko turant pakad leti hai ... behtarin gazal ke liye dhero badhaayee
जवाब देंहटाएंarsh
यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर
जवाब देंहटाएंअपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर
ये शेर बेहतरीन है.....गजल में अलबत्ता हर पहलू का बयाँ है...
gautam ji ,
जवाब देंहटाएंbahut hi behatreen gazal ..
padhkar aanand aa gaya , har sher apne aap me ek sacchayi bayan kar raha hai...
wah ji wah
meri dil se badhai sweekar kariyenga .
vijay
आपकी इस गज़ल की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है।
जवाब देंहटाएंGautam saHeb!
जवाब देंहटाएंnamaste!
ghazal achchhee ban paRee hai. meree daad qabool keejiye.
beshtar sher bayaan aur bunat meN achchhe haiN.
sarsaree nazar meN 2 nishaandehii kar rahaa huN. nazr e saanee karnaa yah meree baat se ittafaaq nah rakhnaa aapkaa haq hai!
shukriyaa!
यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर
अपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर
sher achchaa hai! magar ghaur keejiye keh radeef 'ghaur kar' yahaaN khap rahaa hai :)? ghar se dafter aane jaane meN kisee aur ke liye ghaur karne waalee kyaa baat hai?
इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नही
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोर्चे पर, गौर कर
sher mafhoom adaa naheeN kar paayaa yah meraa naaqis ilm use samajhne meN naakaamyaab rahaa.
शहर में बढती इमारत पर इमारत देख के
मेरी बस्ती का वो बूढा कांपता 'बर', गौर कर
pehle sher ke 'par' ko 'dar' se badal kar dekh leejiye.
'bar' kaa kyaa arth hotaa hai? kuchh raushnee Daale to mere ilm meN izaafaa hogaa.
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
चीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
yeh sher Haasil e ghazal lagaa.
-Dheeraj Ameta "Dheer"
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
जवाब देंहटाएंचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
अद्भुत शेर...पहले आपने मुझे एक शेर पर सेल्यूट किया था आज सेल्यूट करने की बारी मेरी है...जिंदाबाद...गौतम जी वाह...
नीरज
Gautam ji, Bahut hi pyari gazal kahi hai aapne.
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
GAUTAM JEE,
जवाब देंहटाएंAAPKEE SAMYIK GAZAL KE
ADHIKAANSH ASHAAR ACHCHHE LAGE HAIN.HAAN,"IK TERE NA KAHNE---"
MISRAA DOOSE MISRE KO UTHAA NAHIN SAKA HAI AUR "BOODHA KANPTA BAR"
SAMAJH KE BAAHAR HAI.
AAP KHOOB UNNTI KAR RAHE
HAIN.BADHAAEE
एक एक शेर पर आपने मेहनत की है। प्रशंशनीय प्रस्तुति है। बधाई।
जवाब देंहटाएंwah kya likha hai ek ek sher lajavab hai
जवाब देंहटाएंउनके ही हाथों से देखो बिक रहा हिन्दोस्तां
है जिन्होंने डाल रक्खा तन पे खद्दर, गौर कर
kya kahne
saader
rachana
बहुत बेहतरीन और उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गौतम जी
जवाब देंहटाएंक्या बात है बहुत अच्चे तेवर के साथ लिखी गजल है
मक्ता बहुत सुन्दर बन पडा है
वीनस केसरी
आपकी गज़ल के तीन सबसे उम्दा शेर-
जवाब देंहटाएंशहर में बढती इमारत पर इमारत देख के
मेरी बस्ती का वो बूढा कांपता 'बर', गौर कर
यार जब-तब घूम आते हैं विदेशों में, मगर
अपनी तो बस है कवायद घर से दफ्तर, गौर कर
इक तेरे 'ना' कहने से अब कुछ बदल सकता नही
मैं सिपाही-सा डटा हूँ मोर्चे पर, गौर कर....
सेल्यूट---
खबरी
http://deveshkhabri.blogspot.com/
आसमां तक जा चढ़ा सेंसेक्स अपने देश का
जवाब देंहटाएंचीथड़े हैं फिर भी बचपन के बदन पर, गौर कर
बेहतरीन..लजवाब ..............कितनी गहराई तक जा कर अपने देश की हालत को समझा है........गौतम जी.........बहूत ही खूबसूरत ग़ज़ल है.....हर शेर लाजवाब
आप सब का दिल से शुक्रिया इस अद्भुत हौसलाअफ़जाई का
जवाब देंहटाएं@धीर जी,
आपका फैन हूँ और खास कर आप जिस तरह से मशवरा देते हैं, वर्ना यहाँ तो "वाह-वाह" और "उम्दा रचना" से ऊपर उठा ही नहीं जाता...
चौथे शेर में दरअसल "बर" बरगद के लिये इस्तेमाल हुआ, लेकिन अपनी नाकामी मानता हूँ और शेर खारिज है इस लिहाज..
@आदरणीय प्राण साब,
आपका अशिर्वाद और अच्छा लिखने को प्रेरित करता है..
आप सब का एक बार फिर से शुक्रिया
इस ग़ज़ल में एक और दोष है, जो मुझे लगा था कि धीर जी आप इंगित करेंगे
जवाब देंहटाएंपांचवा शेर का मिस्रा-उला "मगर’ पे खत्म हो रहा है जो रदीफ़ से तुकांत है और शायद ये दोष माना जाता है।
धीर जी कुछ सुझाव दें इस बारे में तो मेहरबानी होगी।
गौतम जी, आपके शायरी करने का अंदाज प्रसंशनीय है। शेर पैने हैं और असरदार। पहला ही शेर एसा है जिसमें कालजयी होने की क्षमता है।
जवाब देंहटाएंकितने हाथों में यहाँ हैं कितने पत्थर,गौर कर
फिर भी उठ-उठ आ गये हैं कितने ही सर, गौर कर
बहुत अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई स्वीकारें।
namaste Gautam ji!
जवाब देंहटाएंaapkee zarr'a nawaazee hai. shukriyaa!
'magar' lafz par khatm honaa koee nuks to naheeN hai, agar hai bhee to mujhe bhee iskaa ilm naheeN. aam taur par donoN misroN meN rab't aise bhee nikal paRtaa hai jo, agar, magar, lekin ityaadi se kaam le.
apnaa hee ek sher yaad aa rahaa hai jismeN maine 'magar' ko qafiye meN isee tarz par istemaal kiyaa thaa.
zindagee ke pech o kham se ham nah the waaqif magar,
ham jiye, dil se jiye, chhoRee naheeN koee qasar!
ab agar yeh dosh hai to ahl e ilm hee is or nazar Daal sakte haiN. maiN ustaad e mohatarm janaab Sarwar Alam Raz saHeb se bhee maalumaat kar ke aapko likhungaa.
waise ek baat ghaur karne kee yeh hai, 'magar' lafz kee aapke misre meN zaroorat hee naheeN hai. misre meN thoRee heraa-pheree karenge to aur behtar ho jaayegaa.
koee misra zehn meN aayaa to likhungaa.
shukriyaa!
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.