सुनीता चोटिया (शानू) होम-साइंस में स्नात्त्कोत्तर श्रीमती सुनीता चोटिया ’शानू’ का जन्म पिलानी (राजस्थान)में हुआ।
लेखन (कविता, कहानी, लेख),चित्रकला, तैराकी व दूरगामी-यात्राओं की शौकीन शानू दिल्ली में स्वयं का चाय निर्यात का व्यापार चलाती हैं।
पिछले काफी समय से वे विभिन्न कवि-गोष्ठियों में भी भाग लेती रहीं हैं और रेडियो से भी उनका काव्य-पाठ प्रसारित हुआ है।
अपने चिट्ठे " " के माध्यम से अंतर्जाल पर भी वे सक्रिय हैं।
विचारो की श्रंखला
टूटती ही नही
एक आता है एक जाता है
दिन भर हावी रहते है
लड़ते रहते है
अपने ही वजूद से
और
विचारो का आना-जाना
नींद मे भी पीछा नही छोड़ता
रात भर स्वप्न में
पिंघलते रहते है
और नींद खुलने पर
हावी हो जाता है एक नया विचार
पूरे दिन की कशमकश में
जीतता वही है
जो ताकतवर होता है
वकीलो की तरह
झूठी सच्ची दलीलों की तरह
सरकारी वकील की तरह
आत्मा विरोध भी करती है
मगर सबूतों के अभाव में
दिन-भर की लड़ी हुई
थकी माँदी निर्बल आत्मा से
झूठी बेबुनियाद दलीले
जीत जाती है
जैसे बीमारी के कीटाणु
बीमार शरीर को ही
जल्दी शिकार बनाते हैं
और शरीर को सजा हो जाती है
मनोविकारों से पीड़ित रोगी
जो दिमाग का संतुलन खो बैठते है
खुद को पाते है...
शून्य में!!!
16 टिप्पणियाँ
जिस विषय पर कविता वैसी ही कविता...
जवाब देंहटाएंकई सारी बातों की एक साथ मुंह से निकलने की ख्वाहिश जैसी...
बहुत दिनों से बात नहीं हुई आपसे... कैसी हैं दी...
खबरी
http://deveshkhabri.blogspot.com/
सुन्दर प्रस्तुति। शानू जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंपिघल रहे हैं स्वप्न में अच्छा लगा विचार।
भाव जगत से देह का होता नित संचार।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
विचारों के भंवर में गोते खाती आपकी कविता पसन्द आई...
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकार करें
एक सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंआपकी कलम आजकल हडताल पर है क्या??
जवाब देंहटाएंकविता अच्छी लगी! सशक्त.
इसमें एक निष्कर्ष और जोड दें तो दुगनी सशक्त हो जायगी.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
sunita ji ,
जवाब देंहटाएंbahut acchi kavita hai , vichaar bahut hi shashakt ban pade hai aur bhaavpoorn bhi hai .
aapko badhai .
viijay
शशक्त और भावुक अभिव्यक्ति है...........
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता वैसे तो आप हमेशा बहुत ही अच्छा लिखती है परन्तु ये कुछ जयादा ही अच्छी बन पड़ी है बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंजैसे बीमारी के कीटाणु
जवाब देंहटाएंबीमार शरीर को ही
जल्दी शिकार बनाते हैं
और शरीर को सजा हो जाती है
मनोविकारों से पीड़ित रोगी
जो दिमाग का संतुलन खो बैठते है
खुद को पाते है...
शून्य में!!!
बहुत खूब।
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंशानू जी बधाई
बहुत खूब सुनीता जी। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती है आपकी कविता...बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी भावपूर्ण कविता..
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव भरी अभिव्यक्ति ... बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावाभिव्यक्ति, प्रभावी कविता।
जवाब देंहटाएंसुनीता जी,
जवाब देंहटाएंमन की सूक्ष्म गतिविधियों को पढ़ना अपने आप में एक कारीगरी है. आपने इसे शब्दों के माध्यम से अत्यंत सफलतापूर्वक ब्यक्त किया है. विचारों की तारतम्यता की सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए बधाई,
किरण सिन्धु
आदरणीय सुनीता जी,
जवाब देंहटाएंएक लम्बे अरसे के बाद आपके भाव, और शब्द कविता के रूप में दिखे. बहुत अच्छी कविता कही है आपने. सारे बिम्ब बिलकुल नए और यथार्थपरक .........
एक अच्छी, समर्थ और जीवंत कविता पढने के बाद उस पर बधाई देना महज औपचारिकता सा लगता हैं ना- !!!!!!
सादर-
आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
http://www.hindi-nikash.blogspot.com
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