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सूखा बस्तर [क्षणिकायें] - विजय सिंह

1.
बरसात कहाँ है
सिवाय उम्मीद के
और कहीं नहीं

खेत
बाट जोह रहे हैं
बरसात आये तो
वे कुछ हँस लें।

रचनाकार परिचय:-


विजय सिंह का जन्म 18 जुलाई 1962 को जगदलपुर (बस्तर) में हुआ। आप हिन्दी साहित्य में एम. ए हैं।

आप सन 1985 से बस्तर में ही समर्पित रंगकर्मी हैं। समकालीन साहित्यकारों में आप एक सशक्त हस्ताक्षर कहे जाते हैं।

सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में आप प्रकाशित होते रहे हैं। पिछले सत्रह वर्षों से आप प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "सूत्र" का संपादन कर रहे हैं। 

आपको प्राप्त सम्मानों में पं गंगाधर सामंत स्मृति पुरस्कार तथा दलित साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रमुख हैं।

2.
मेड़ अकेला नहीं है
पीली लाल मिट्टी के
साथ देख रहा है
पेड में बैठी चिडिया को
कि कब वह
चोंच में पानी भर लाये
और वह
हरा हो ले

3.
खेत की मिट्टी से
मैनें पूछा
तुम अच्छी हो?
उसने उदास आँख़ों से कहा
आँखों में पानी नहीं है

4.
इतना चुप
पगडंडी को मैनें
कभी नहीँ देखा
कान में कहा
और सूखी पत्तियाँ
उड गयी
पगडंडी के पास।

5.
पेड़ चुप, पत्थर चुप, पगडंडी चुप
नदी चुप, चिड़िया चुप
खेत चुप
सोमारू चुप
आसमान देख रहा है
धरती में सब चुप हैं।

6.
अखबार में छपा है
इस साल सूखा निश्चित है
और देखेते देखते
बाजार से
अनाज नदारद हो गये।

7.
बहुत सी कवितायें लिखूंगा
खेत की तरह हरा-भरा
पानी की तरह लबालब
लेकिन कविता से
पानी नहीं गिरा पाउँगा।

8.
हवा में
पानी नहीं है
पेड़ में
नमीं नहीं है
खेत में क्या है?
कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं

9.
उदास है गाँव
उदास है सोमारू
उदास है ड़ोकरी
उदास है कुकड़ी
उदास हैं पेड्
उदास है बाडी
उदास नहीं है
तो गाँव का एक मात्र
मोटल्ला साहूकार
वह हँस रहा है
बही खाता बना रहा है।

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14 टिप्पणियाँ

  1. प्रभावित करने वाली क्षणिकायें हैं। सूखा बस्तर शीर्षक इसे एक क्षेत्र विषेश की रचना बना रहा है जबकि सूखा कहीं का भी हो आपकी कविता उसकी पीडा और परिस्थिति को दिखा रही है।

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी दृष्य प्रभाव छोडते हैं। अंतिम क्षणिका बहुत अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  3. हल्के में न लें. सिंचाई विभाग को भेजें इन्हें. शायद कोई संवेदना शेष हो.

    जवाब देंहटाएं
  4. हालत का सुन्दर चित्रण किया आपने अपनी क्षणिकाओं में. कुकडी, डोकरी, समारू शब्दों ने हमें अतीत में पहुंचा दिया. बस्तर कि माटी का असर बाकी है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इन क्षणिकाओं में बस्तर के हालात भी नज़र आते हैं और सूखे के चित्र भी उतर आते हैं। कविता एसी है जैसे कोई पेंटिंग देखी जा रही हो।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी क्षणिकायें हैं, बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. क्षणिकाएं सूखे का चित्र खींचती हुई -भावपूर्ण अभिव्यक्ति .
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  8. सभी सशक्त क्षणिकायें हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. उदास है गाँव
    उदास है सोमारू
    उदास है ड़ोकरी
    उदास है कुकड़ी
    उदास हैं पेड्
    उदास है बाडी
    उदास नहीं है
    तो गाँव का एक मात्र
    मोटल्ला साहूकार
    वह हँस रहा है
    बही खाता बना रहा है।

    सभी क्षणिकायें अच्छी बन पडी हैं। क्षेत्रीय शब्दों के प्रयोग से कविता और निखर आती है।

    जवाब देंहटाएं
  10. vijay ji

    saari ki saari kshanikaayen bahut hi dil ko choo leni waali hai ... sabdchitr aise ban padhe hai ki .. wahaan ke haalaat aankho ke saamne nazar aa jaate hai ...

    aapko dil se badhai ..
    vijay

    जवाब देंहटाएं
  11. मजबूरी का फायदा उठाने वाले हर जगह मौजूद हैँ

    बस्तर के हालात को ब्याँ करती आपकी क्षणिकाएँ बेहद प्रभावी हैँ.....

    जवाब देंहटाएं
  12. BASTAR ME SUKHA-HASYASPAD BAAT HAI,SAHI TASVIR DIKHAYE.

    जवाब देंहटाएं

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