
अभी सूरज की पहली किरण ने पृथ्वी से आंखें नहीं मिलाई थी क्योंकि अभी मुर्गे ने बांग नहीं दी थी। अब मुर्गे ने बांग नहीं दी तो उसकी इच्छा नहीं हुई होगी। शायद सो रहा होगा। मेरी नासिका से भी तो घड़ी के अलार्म की तरह घर्र-घर्र की आवाज आने लगी थी और शायद इसीलिए श्रीमती जी मेरा नाक दबाते हुए बोली, ‘दिन में दफ़्तर में थोड़ा सो जाया करिए, नाहक ही आधी रात को परेशान करते हो, अपनी नहीं तो दूसरों की सेहत का ख़्याल तो किया कीजिए।‘ अब मैं लगभग उठकर बैठ ही गया, कहना तो बहुत कुछ चाहता था लेकिन, घर के अन्या सदस्यों की नींद खराब होने के डर से चुप ही रहा। हां, अंधेरे में मेरी भाव-भंगिमाएं देख कर कोई भी अनुमान लगा सकता था कि मैं इस समय कितनी गहरी निद्रा में से बाहर आने की कोशिश कर रहा थ। अभी भी निद्रादेवी मेरे कमलनयनों से प्रेमालाप करना चाहती थी।
यह नींद भी अजीब बीमारी है, किसी को आती नहीं है तो किसी को बहुत आती है । अक्सर सोचता हूं कि श्रीनारायण अगर सामने आएं तो मैं उनसे यह वरदान मांग लूं कि मेरी आंखों से नींद उड़ा दो, दीवार जो हम दोनों में है आज गिरा दो, जिस तरह कुंभकरण को सोते रहने का वरदान दिया था, उसी तरह मुझे जागते रहने का वरदान दे दो। लेकिन वो शायद कुछ अधिक समझदार हैं, मेरी बात पहले से ही सुन लेते हैं और संभल जाते हैं, इसी कारण तो वो मेरे सामने कभी आते नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि वो भी लकीर के फ़कीर बने रहना चाहते हैं और कोई नया काम करने को तैयार नहीं है या यूं कहें कि भगवान भी सोया रहना चाहता है।
11 मार्च 1959 को (बीकानेर, राजस्थान) में जन्मे मुकेश पोपली ने एम.कॉम., एम.ए. (हिंदी) और पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर किया है और वर्तमान में भारतीय स्टेट बैंक, दिल्ली में राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्यरत है|
अनेक पुरुस्कारों से सम्मानित मुकेश जी की रचनायें कई प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं| आपका एक कहानी संग्रह "कहीं ज़रा सा..." भी प्रकाशित है। आकाशवाणी, बीकानेर से भी आपकी कई रचनाओं का प्राय: प्रसारण होता रहा है।
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वैसे भी हमारे देश में सोने का प्रचलन कुछ ज्यादा ही है । मौसम विभाग सोया हुआ रहता है, जिस दिन कहता है कि बारिश आएगी, तेज गर्मी पड़ती है, जिस दिन लू चलने की बात करता है कि कहीं से कोई बदली आकर बरस जाती है। बागों के माली सोये हुए रहते हैं, इसलिए वहां पर क्यारियों में कूड़े के ढेर मिलते हैं, गंदगी के साम्राज्य को देखते हुए फूलों की खुशबू तो वहां से कपूर की तरह काफ़ूर हो गई है । रेलवे स्टेशन पर सवारियां गाड़ी की प्रतीक्षा में ऊंघती रहती हैं और गाड़ी आ जाने पर उसके अंदर सोने के लिए जगह ढूंढती रहती हैं । अपनी बर्थ पक्की करने के लिए न जाने कितने दिन पहले टिकट लेनी पड़ती है, नहीं मिलती तो एजेंट हैं ना । सड़को के बीच में गाय रंभाती रहती हैं, कुत्ते सोये रहते हैं और उन्हें वहां से हटाने का दावा करने वाले भी अपने घरों में सोये रहते हैं । जानवरों की तरह रेंगने वाले हम तथाकथित इंसान यातायात के नियमों की परवाह किए बगैर दौड़ने लगते हैं और उनमें से बहुत से लोग हमेशा के लिए सो जाते हैं । चिट्ठी वाले समारोह हो जाने के बाद चिट्ठी पहुंचाते हैं, गुस्से को डाकिए पर निकाला जाए या निमंत्रण मन से न भेजने वालों पर। बधाई की चिट्ठी देर से आई हो मगर बख्शीश तो आपको देनी ही पड़ेगी । हवाई जहाज वाले भी आठ-आठ घंटे लेट हो जाते हैं, पूछने पर पता चलता है कि हवाई यात्रा के लिए बिना पासपोर्ट एक मूषक प्रवेश कर गया था और उसे वहां से भगाने के लिए न जाने कितनी बिल्लियों को बुलाना पड़ा थ । किसी मजदूर-मिस्त्री का आप इंतजार कर रहे हैं तो पता चलता है कि देर रात तक फिल्म देखने के कारण देर तक सोया रहा, वैसे भी आपको तो पता ही नहीं है कि आजकल कौन सी फिल्म हिट है, क्योंकि आप तो टी वी पर बिजनेस समाचार देखते रहते हैं या फिर नेताओं की करतूतों को ।
उस दिन मैंने अपने सहयोगी चितलकर से इस बारे में बात करनी चाही तो वो बोला, ‘हां यार, सोने का भाव तो लगातार बढ़ता ही जा रहा है जैसे पानी के पाईप में एक छोटा सा छेद बढ़ता ही जाता है ।‘ फिर वह शेयर मार्केट के गिरने की बात करने लगा, मंदी की मार की बात करने लगा । मुझे डर लगा कि वह कहीं सत्यरम कंपनी का ऑडिट करने वालों की तरह सो जाएगा, मैंने उसे टोका और समझाने की कोशिश कि मैं स्विर्ण-मुद्रा या किसी स्वर्ण-युग की बात नहीं कर रहा हूं, मैं तो नींद की बात कर रहा हूं तो अचानक उसे नींद आने लगी और अपने खुले मुंह के आगे चुटकी बजाते हुए उसने फरमाईश कर दी, ‘अरे यार, नींद आ रही है, बहुत दिन हो गए तुमने चाय नहीं पिलाई, अब चाय-कॉफी मंगाओ और हां साथ में पाव वगैरह भी मंगवाना, वो क्या है कि बिना कुछ खाए-पिए तुम्हारी बात हज़म नहीं होती है ।‘
अभी कल की ही तो बात है कि जब मैं बस से दफ़्तर जा रहा था तो अचानक एक यात्री चिल्ला ने लगा कि उसके बैग कोई लेकर भाग गया, उसमें सात हजार रूपए थे, सभी लोग उस घटना का पोस्टमार्टम करने लगे । तुम सो रहे थे क्या ? अच्छा बताओ, बैग किस रंग का था? क्या तुम घर से लेकर चले थे ? कहीं ऐसा तो नहीं कि वह घर पर ही रह गया हो ? जरा मोबाइल से घर पर पहले पूछ लो ? जवाब मिलता है कि घर पर तो बुजुर्ग पिताजी हैं और अभी तो वो सो रहे होंगे । अच्छा बताओ, बैग में और क्या था ? अरे वो रुपए निकाल कर ले गया होगा बाकी सामान कहीं कूड़े के ढेर पर फेंक गया होगा। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो गया था, अब नहीं मिलने थे, नहीं मिले, उसकी किस्मत! ऐसी घटनाएं अक्सर हो जाती हैं और लोग तरह-तरह की बातें मिर्च-मसाला लगाकर करते हैं, कोई उन्हें यह सलाह नहीं देता कि पुलिस में रिपोर्ट लिखवाओ, मेरे जैसा सलाह देता भी है तो सुनता कौन है, जवाब मिलता है कि पुलिस वाले क्या करेंगे, सब सोये रहते हैं । उनसे पूछा जाए कि अगर तुम्हें सब कुछ मालूम है तो शिकायत कीजिए, लेकिन वो इस तरह से देखते हैं जैसे किसी पागल ने गहरी नींद में समझदारी की बात कर दी हो ।
उधर प्रेमी शिकायत कर रहा है कि कल राज तुम्हारे ख़्वाबों ने सोने नहीं दिया, तुम तो हमेशा की तरह नर्म बिस्तंर पर टैडी बेयर के साथ सो गई लेकिन मैं अपनी बालकनी में खड़े होकर तारे गिनता रहा । प्रेमिका ने जवाब दिया, ‘तुम बालकनी में खड़े हो, यह मुझे मालूम था लेकिन बापू सो रहे थे, कहीं आहट से जाग जाते तो और तुम्हें पता है, बाद में मैं अंधेरे में हिम्मुत करके नींद में से उठी लेकिन बिस्तर से ही नीचे गिर गई और देखो, मुझे इस टैडी बेयर ने बचा लिया क्योंकि यह मेरे हाथ में था, वरना आज मैं तुमसे चोट के कारण मिल ही नहीं पाती । ‘इट इज माई लक्की चार्म’ और यह कहते हुए उसने टैडी-बेयर को चूम लिया ।
पूरे साल पढ़ाने वाले और पढ़ने वाले दोनों सोये रहते हैं, सिलेबस हर महीने बदल जाता है, किताबें समय पर छपती नहीं है, कभी सर्दी की और कभी तेज गर्मी के कारण छुट्टियां हो जाती हैं, त्योहारों के कारण लेडी टीचर्स एक दूसरे को व्यंजन बनाना सिखाती हैं, सोने के गहनों की डिजाईन के बारे में जानकारी देती हैं और आधुनिक युग के बिगड़ते बच्चों की शिकायतें करती हैं । उधर पुरुष अध्यापक तो अपने घर का गुस्सा बच्चों पर निकालते हैं और महिलाओं को आयकर में दी जाने वाली अधिक छूट का, उनको काम के आबंटन में दी जा रही सुविधाओं का रोना भी रोते हैं । हमारे बच्चों की तो क्या कहें, उनमें पहले कॉमिक्सि पढ़ने की बीमारी थी तो अब डोरमोन, परमैन के कारनामे देखने की ललक जाग गई है, वो तो समय रहते किसी की आंख खुल गई और शिनचैन पर पाबंदी लग गई, नहीं तो हाय तौबा, पांच साल का बच्चा पता नहीं क्या-क्या गुल खिला रहा था । क्या, कहा पाबंदी वापस हट गई, कोई बात नहीं, वापस लगा देंगे, अब तो कंप्यूटर पर नये गेम भी तो लाखों की संख्या में आ गए हैं । होम-वर्क के लिए ट्यूटर, कोचिंग सेंटर और मां-बाप तो हैं ही, उसकी चिंता कौन करे ।
एफ एम और टी वी वाले दुष्प्रचार कर रहे हैं, मगर दर्शक और श्रोतागण सोये हुए हैं । विज्ञापनों की भरमार में प्रत्येक अभिनेता और खिलाड़ी हमें फलां साबुन-शैम्पू् प्रयोग करने की सलाह दे रहा है । ऐसा लगा कि वह जाग रहे हैं और हमें जगाने की कोशिश कर रहे हैं, पता करने पर पता चला कि कंपनी से मोटी रकम ऐंठ कर कई दिनों से बिना दांत साफ किए और बिना नहाए सो रहे हैं । दस दिन में दस किलो वजन कम करने का शर्तिया दावा और पंद्रह दिन में कमरे को वापस कमर बनाने वाले उपचारों का प्रचार लगातार हो रहा है और हम हैं कि अपने क्रेडिट कार्ड का वजन बढ़ा रहे हैं, मोबाइल का बिल बढ़ा रहे हैं और दिमाग में चिंताओं का घर बना रहे हैं । हमारे समाचार चैनलों वाले टीआरपी बढ़ाने की कोशिश में तो जागते हैं लेकिन एक ही समाचार को पच्चीस टुकड़ों में बांटकर और रावण की तरह चिल्ला़-चिल्ला कर बोलते हुए बार-बार उसको दिखाकर जागे हुए लोगों को भी सुला देते हैं । उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि किस दृश्य का किस पर कितना प्रभाव पड़ेगा । लगता है कि अपने दायित्वों की और प्रसारण संबंधी नियमावली को पढ़ते-पढ़ते वे सो गए थे ।
मंदी की मार में दुकानदार ग्राहकों के इंतजार में सोये हुए हैं। महंगाई का ग्राफ इस तरह से ऊपर-नीचे हो रहा है जैसे छोटे-बच्चे सांप-सीढ़ी का खेल खेल रहे हैं। एक बार चुनाव जीत जाने के बाद अगले चुनाव की प्रतीक्षा में पार्षद साहब सो रहे हैं । देश में हड़तालें हो रही हैं, आंदोलन हो रहे हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं, चोरियां हो रही हैं, घोटाले हो रहे हैं, छोटे-छोटे गुट अत्याचार फैला रहे हैं, मगर देश को विकास की ओर ले जाने वाले जिम्मेदार लोग सोये हुए हैं । आतंकवाद फैल रहा है मगर तथाकथित चौकीदार सोये हुए हैं। हथियारों की तस्करी हो रही है, नकली नोटों का बाजार गर्म है, मगर सीमा पर तैनाती सोये हुए हैं । पड़ोसी देश हमारी सोयी हुई व्यवस्था का लाभ उठाकर रोज बयानबाजी बदल रहे हैं लेकिन हम उन्हें छोटी सी मक्खी मानकर अपनी नाक से उड़ा रहे हैं ताकि हमारी नींद में खलल पैदा न हो ।
मैं अक्संर सोचता हूं कि सब सोए क्यों रहते हैं, फिर मुझे लगता है कि मैं तो जाग ही रहा हूं, कुछ और लोग भी जाग रहे होंगे, यदि सब लोग एक साथ जाग जाएं तब तो क्रांति ही आ जाएगी और अभी शायद हमारे देश को क्रांति की आवश्यकता नहीं है क्यों कि अभी तो आजाद हुए हमें एक शताब्दी भी नहीं हुई है । वैसे भी अभी मेरी उम्र ही क्या है, जब अस्सी-नब्बें साल के लोग प्रधानमंत्री और मुख्यवमंत्री पद के लिए लोलुपता दर्शा रहे हैं तो भला मैं अपना घर देखूं या देश की चिंता करुं । अभी तो रात के तीसरे प्रहर की वेला में मेरे जैसे जीवन के अर्द्ध-शतक लगाने के आस-पास डोल रहे लोगों को क्रांति नहीं शांति चाहिए, जब सब जाग जाएं तो मुझे भी उठा देना और वैसे भी सागर में से एक बूंद निकल भी जाए तो भला सागर को क्या फर्क पड़ता है ।
मैं एक बार फिर से सोने का उपक्रम करता हूं ।
13 टिप्पणियाँ
उत्कृष्ट और प्रभावी व्यंग्य है। उपसंहार सशक्त है "मैं अक्संर सोचता हूं कि सब सोए क्यों रहते हैं, फिर मुझे लगता है कि मैं तो जाग ही रहा हूं, कुछ और लोग भी जाग रहे होंगे, यदि सब लोग एक साथ जाग जाएं तब तो क्रांति ही आ जाएगी और अभी शायद हमारे देश को क्रांति की आवश्यकता नहीं है क्यों कि अभी तो आजाद हुए हमें एक शताब्दी भी नहीं हुई है।"
जवाब देंहटाएंहम सोने वालों की कौम ही हो गये हैं। अब तो हमें बडी से बडी घटनायें और भूकंप भी नहीं जगाते।
जवाब देंहटाएंपैना और सशक्त व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंबहुत से विषय आपने अपने व्यंग्य में उठाये हैं और व्यंग्य की चाशनी में प्रस्तुत किया है। आपकी प्रस्तुति बहुत्क़ अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंNice Satire.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
mukesh ji ,
जवाब देंहटाएंbahut hi shashakt vyangya . aaj ke samaaj par gahri maar..
bahut badhai ..
vijay
एक अरब के देश में जब तक एक को जगाओ दूसरा सोने लगता है... और अगर कोई मुसीबत पडोस में हो तो लोग कह देते हैं क्यों पराये फ़ट्टे में टांग अडा कर अपनी टांग तुडायें.
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग्य.. बधाई
बहुत अच्छा व्यंग्य, बधाई।
जवाब देंहटाएंमुकेश जी आपका व्यंग्य पढ कर वास्तव में एक अच्छे "व्यंग्य आलेख" को पढने का सुख मिला। सोने और जागने के इर्द गिर्द आपके कटाक्ष बेहतरीन हैं।
जवाब देंहटाएंआप सभी ने अपने व्यस्त समय में मेरी रचना को शामिल किया, इसके लिए मैं आप सबका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूं । आप सब की प्रतिक्रिया से मेरा हौंसला बढ़ा है ।
जवाब देंहटाएंमुकेश जी, नारायण द्वार पर आ जाएं तो अपनी नींद हमें ट्रांसफर करा दीजियेगा... लुकाछिपी खेलती है तो कभी छूकर भाग जाती है...
जवाब देंहटाएंखबरी
http://sarpanchji.blogspot.com/
मुकेश जी के प्रस्तुत व्यंग्य की शैली प्रभावी है। बहुत बधाई एक अच्छी रचना के लिये।
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया...
जवाब देंहटाएंआपने अपने व्यंग्य में बहुतों को लपेटा....
बधाई स्वीकार करें
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