
आइये! अब तक पढ़े अलंकारों को दुहरा लें ताकि उदाहरणों के विश्लेषण में आसानी हो.
काव्य नर्मदा में खिले, शतदल कमल अनेक.
अलंकार उनको कहें, समझें सहित विवेक..
जब वर्णों की आवृत्ति, होती है बहु बार.
अनुप्रास तब जानिए, दिखला रहा बहार..
अक्षर एक-अनेक की, आवृत्ति हो जब एक.
अनुप्रास का नाम तब, 'सलिल' जानिए 'छेक'
जब वर्णों से भेंट हो, फिर-फिर बन मन-मीत.
अनुप्रास बन 'वृत्त्य', तब, छेड़े नव संगीत..
शब्दों का दुहराव हो, लगे अर्थ है एक.
अन्वय से भिन्नार्थ दे, 'लाटा' आशय नेक..
जब 'श्रुति' की आवृत्ति हो, अनायास-सायास.
काव्य पंक्ति में हो 'सलिल', तभी 'श्रुत्य-अनुप्रास'..
हो पदांत-चरणान्त में, शब्द-वर्ण दोहराव.
कहें 'अन्त्य-अनुप्रास' है, हो रसिकों को चाव..
एक शब्द फिर-फिर फिरे, भिन्न-भिन्न हों अर्थ.
अलंकार तब 'यमक' हो, कविजन रचें समर्थ..
'वाक्यावृत्ति यमक' में, मिले सरल दुहराव.
रहे नर्मदा-सलिल का, जैसे शांत बहाव..
'सिंह' चतुर्दिक देखता, करता तभी शिकार.
'सिंह-अवलोकन-यमक' में, हो दुहराव अपार..
मात्र एक आवृत्ति से, कई अर्थ दे शब्द. .
अलंकार हो 'श्लेष' तब, लख सौंदर्य निशब्द..
ज्यों का त्यों रह शब्द दे, कई-कई जब अर्थ.
तब 'अभंग' हो 'श्लेष', मत शंका करिए व्यर्थ..
जब एकाधिक अर्थ-हित, शब्द तोड़ते आप.
'श्लेष अभंग' मिले तभी, छोडे अद्भुत छाप..
एक शब्द बहु अर्थ है, श्लेष-यमक में साम्य.
आवृत्ति एक-अनेक है अंतर, कवि को काम्य..
जब दो शब्दों में मिले, गुण या धर्म समान.
'उपमा' इंगित कर उसे, बन जाता रस-खान..
जो वर्णन का विषय हो, जिसको कहें समान.
'सलिल' वही 'उपमेय' है, निसंदेह लें मान..
जिसके सदृश बता रहे, वह प्रसिद्ध 'उपमान'
जोड़े 'वाचक शब्द' औ', 'धर्म' हुआ गुण-गान..
'उपमा' होता 'पूर्ण' जब, दिखते चारों अंग.
होता वह 'लुप्तोपमा', जब न दिखे जो अंग..
आरोपित 'उपमेय' में होता जब 'उपमान'.
'वाचक शब्द' न 'धर्म' हो, तब 'रूपक' गुणवान..
रूपक की चर्चा आगे होगी, हम पिछले उदाहरणों पर केन्द्रित हो उनमें अब तक पढ़े अलंकार देखें, किन्तु जो अलंकार नहीं पढ़े, वे हों भी तो उन्हें अभी छोड़कर पढ़ने के बाद ही उनकी चर्चा करेंगे.
'उपमेय' वह है जिसकी चर्चा की जा रही है, जो वर्ण्य विषय है, जिसे किसी अन्य के समान कहा जा रहा है.
'उपमान' कोई प्रसिद्ध वस्तु होती है जिसके साथ 'उपमेय' की समानता स्थापित की जाती है.
'वाचक शब्द' उपमेय और उपमान के बीच सेतु का कार्य करता है, दोनों को जोड़ता या मिलाता है.
'साधारण धर्म' वह गुण है जो उपमेय और उपमान में समान हो.
उक्त चारों में से कोई भी आगे-पीछे हो सकता है. अतः, पद का अर्थ करने के बाद ही उक्त को पहचानें.
१. सागर सा गंभीर ह्रदय हो,
-यहाँ ह्रदय को सागर जैसा गंभीर कहा गया है, न कि सागर को ह्रदय जैसा. इसलिए 'ह्रदय' उपमेय, 'सागर' उपमान, 'सा' वाचक शब्द तथा 'गंभीर' साधारण धर्म है. अतः, पूर्णोपमा.
नितेश जी! कृपया शीघ्रता न करें. निम्न पंक्तियों में उक्त विवेचन के प्रकाश में अलंकार देखें.
गिरि सा ऊँचा हो जिसका मन.
ध्रुव सा जिसका लक्ष्य अटल हो,
दिनकर सा हो नियमित जीवन.
२. यहीं कहीं पर बिखर गयी वह,
भग्न विजय माला सी.
उपमेय वह, उपमान विजय माला, सी वाचक शब्द, भग्न साधारण धर्म. पूर्णोपमा. निधि जी! क्या यह ठीक है?
उनके फूल यहाँ संचित हैं,
यह स्मृति शाला सी.
यह उपमेय, स्मृति शाला उपमान, संचित साधारण धर्म, सी वाचक शब्द. पूर्णोपमा.
३. सुनि सुरसरि सम पावन बानी.
बानी उपमेय, सुरसरि उपमान, सम वाचक शब्द, पावन साधारण धर्म, पूर्णोपमा.
४. अति रमणीय मूर्ति राधा की.
यहाँ उपमा अलंकार नहीं है किन्तु 'की' को 'सी' करने पर उपमा होगा.
'अति कमनीय मूर्ति राधा सी'
उपमेय मूर्ति, उपमान राधा, साधारण धर्म रमणीय, वाचक शब्द सी, पूर्णोपमा.
५. नव उज्जवल जल-धार हार हीरक सी सोहित.
जलधार उपमेय, हीरक हार उपमान, सी वाचक शब्द, सोहित साधारण धर्म, पूर्णोपमा.
६. भोगी कुसुमायुध योगी सा बना दृष्टिगत होता है.
भोगी कुसुमायुध उपमेय, योगी उपमान, सा वाचक शब्द, साधारण धर्म लुप्त अतः, धर्म लुप्तोपमा.
७. नव अम्बुज अम्बर छवि नीक.
नव अम्बुज उपमेय, अंबर उपमान, साधारण धर्म नीक, वाचक शब्द लुप्त, अतः वाचक लुप्तोपमा.
८. मुख मयंक सम मंजु मनोहर.
मुख उपमेय, मयंक उपमान, सम वाचक शब्द, मंजू-मनोहर साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
९. सागर गरजे मस्ताना सा.
सागर उपमेय, मस्ताना उपमान, सा वाचक शब्द, गरजे साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
१०. वह नागिन सी फुफकार गिरी.
वह उपमेय, नागिन उपमान, सी वाचक शब्द, फुफकार साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
११. राधा वदन चन्द्र सौं सुन्दर.
राधा उपमेय, चन्द्र उपमान, सौं वाचक शब्द, सुन्दर साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
१२. नवल सुन्दर श्याम शरीर की.
सजल नीरद सी कल कांति थी.
नवल सुन्दर श्याम शरीर उपमेय, सजल नीरद उपमान, सी वाचक शब्द, कल-कांति साधारण धर्म., पूर्णोपमा.
१३. कुंद इंदु सम देह.
देह उपमेय, कुंद इंदु उपमान, सम वाचक शब्द, साधारण धर्म लुप्त. धर्म लुप्तोपमा. .
१४. पडी थी बिजली सी विकराल,
लपेटे थे घन जैसे बाल..
उपमेय (कैकेयी) लुप्त, बिजली उपमान, सी वाचक शब्द, विकराल साधारण धर्म. उपमेय लुप्तोपमा.
१५. जीते हुए भी मृतक सम
रहकर न केवल दिन भरो.
उपमेय लुप्त, मृतक उपमान, सम वाचक शब्द, रहकर साधारण धर्म. उपमेय लुप्तोपमा.
१६. मुख बाल रवि सम लाल होकर
ज्वाल सा बोधित हुआ.
मुख उपमेय, ज्वाल उपमान, सा वाचक शब्द, लाल साधारण धर्म.
१७. छत्र सा सर पर उठा था प्राणपति का हाथ.
हाथ उपमेय, छात्र उपमान, सा वाचक शब्द, साधारण धर्म लुप्त. धर्म लुप्तोपमा.
१८. जल संकोच विकल भये मीना,
विविध कुटुम्बी जिमि धन हीना.
मीना उपमेय, विविध कुटुम्बी उपमान, जिमी वाचक शब्द, विकल साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
१९. सहे वार पर वार अंत तक लड़ी वीर बाला सी.
उपमेय लुप्त, वीर बाला उपमान, सी वाचक शब्द, लदी साधारण धर्म. उपमेय लुप्तोपमा.
२०. माँ कबीर की साखी जैसी,
तुलसी की चौपाई सी.
माँ मीरा की पदावली सी
माँ है ललित रुबाई सी.
माँ धरती के धैर्य सरीखी,
माँ ममता की खान है.
माँ की उपमा केवल माँ है,
माँ सचमुच भगवान है.
जगदीश व्योम, साहित्य शिल्पी में.
यहाँ माँ उपमेय है, उपमान कई हैं जिनसे मान की तुलना की गयी है यहाँ तक की माँ भी उपमान है, वाचक शब्द भी कई हैं, साधारण धर्म लुप्त है. अतः धर्म लुप्तोपमा.
२१. पूजा की जैसी
हर माँ की ममता है -प्राण शर्मा, साहित्य शिल्पी में
माँ की ममता उपमेय, पूजा उपमान, जैसी वाचक शब्द, साधारण धर्म लुप्त. धर्म लुप्तोपमा.
२२. माँ की लोरी में
मुरली सा जादू है -प्राण शर्मा, साहित्य शिल्पी में
लोरी उपमेय, मुरली उपमान, सा वाचक शब्द, जादू साधारण धर्म. पूर्णोपमा.
२३. रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया। -श्यामल सुमन, साहित्य शिल्पी में
रिश्ता उपमेय, व्यापार उपमान, जैसे वाचक शब्द, साधारण शब्द लुप्त. धर्म लुप्तोपमा,
२४. चहकते हुए पंछियों की सदाएँ,
ठुमकती हुई हिरणियों की अदाएँ! -धीरज आमेटा, साहित्य शिल्पी में
यहाँ उपमा नहीं है पर 'की' को 'सी' करते ही उपमा अपना सौदर्य बिखेरने लगता है.
साहित्य शिल्पी में जो कवितायेँ, गज़लें आदि छाप रही हैं उनमें अब तक पढ़े हुए अलंकार खोजिये और बताइए. हर सहपाठी अपनी रचनाओं में भी अलंकार खोजे तो अभ्यास होने के साथ-साथ नए लेखन में उन्हें पिरोकर रचना का सौंदर्य निखार सकेंगे.
अगली बातचीत 'रूपक' पर केन्द्रित होगी. तब तक तक के लिए 'काव्य देवताय नमः.'
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' नें नागरिक अभियंत्रण में त्रिवर्षीय डिप्लोमा. बी.ई.., एम. आई.ई., अर्थशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में एम. ऐ.., एल-एल. बी., विशारद,, पत्रकारिता में डिप्लोमा, कंप्युटर ऍप्लिकेशन में डिप्लोमा किया है। आपकी प्रथम प्रकाशित कृति 'कलम के देव' भक्ति गीत संग्रह है। 'लोकतंत्र का मकबरा' तथा 'मीत मेरे' आपकी छंद मुक्त कविताओं के संग्रह हैं। आपकी चौथी प्रकाशित कृति है 'भूकंप के साथ जीना सीखें'। आपनें निर्माण के नूपुर, नींव के पत्थर, राम नम सुखदाई, तिनका-तिनका नीड़, सौरभ:, यदा-कदा, द्वार खड़े इतिहास के, काव्य मन्दाकिनी २००८ आदि पुस्तकों के साथ साथ अनेक पत्रिकाओं व स्मारिकाओं का भी संपादन किया है। आपको देश-विदेश में १२ राज्यों की ५० सस्थाओं ने ७० सम्मानों से सम्मानित किया जिनमें प्रमुख हैं : आचार्य, २०वीन शताब्दी रत्न, सरस्वती रत्न, संपादक रत्न, विज्ञानं रत्न, शारदा सुत, श्रेष्ठ गीतकार, भाषा भूषण, चित्रांश गौरव, साहित्य गौरव, साहित्य वारिधि, साहित्य शिरोमणि, काव्य श्री, मानसरोवर साहित्य सम्मान, पाथेय सम्मान, वृक्ष मित्र सम्मान, आदि। वर्तमान में आप म.प्र. सड़क विकास निगम में उप महाप्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।
27 टिप्पणियाँ
जब स्कूल में था तब अलंकारों को याद करने के लिये फार्मूले बनाये थे। आज आपकी कविता में अलंकारों की परिभाषा का सरलीकरण देख कर वे दिन याद आ गये।
जवाब देंहटाएंअपनी गलतियाँ भी समझ आ गयी। मैं एक एक शब्द चुन कर अलंकार की दूसरे शब्द में तलाश कर रहा था, वाक्य या वाक्यांश को एक साथ रख कर देखने की कोशिश करनी चाहिये थी।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआचार्य का यह स्तंभ नेट जगत में क्रांतिकारी है। यह एसा संग्रहालय बन रहा है जो लम्बे समय तक विद्यार्थियों, खोजियों और कवियों को लाभ पहुँचाता रहेगा।
जवाब देंहटाएंनितेश जी!
जवाब देंहटाएंआपकी रूचि सराहनीय है.
विगत दिनों सिवनी से श्री रमेश श्रीवास्तव 'चातक' दिव्य नर्मदा कार्यालय में पधारे थे. वे श्रेष्ठ हिंदी शिक्षक व् कवि हैं. उनसे इस प्रसंग में दिलचस्प बहस हुई. रहीम का प्रसिद्ध दोहा केंद्र बना.
'रहिमन पानी रखिये, बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून..'
इसमें यमक है या श्लेष? इस बिंदु पर मतभेद था. वे श्लेष कह रहे थे मैं यमक. पुस्तकें और शब्द कोष तलाशे गए. पाठ्य पुस्तकें इसे श्लेष बता रही थीं जबकि मैं परिभाषा के अनुसार 'पानी' की ३ आवृत्तियों और भिन्नार्थों के आधार पर यमक मान रहा था. रमेश जी सिर्फ भिन्नार्थों के आधार पर श्लेष कह रहे थे. किताबों में सिर्फ उदाहरण...व्याख्या नहीं...अंततः, मैंने निषकर्ष यह निकाला कि पूरा दोहा लें तो यह यमक का उदाहरण है किन्तु केवल दूसरा पद लें तो श्लेष है. पाठ्य पुस्तकों में पूरा दोहा श्लेष बताया जाना भ्रामक है. इससे रमेश जी भी सहमत हुए.
इसी आलेख में 'अति रमणीय मूर्ति राधा की.' को पाठ्य पुस्तकें उपमा का उदाहरण बता रही हैं. इस अर्धाली का शेष भाग वह उपमान लिए होगा जिससे तुलना की गयी है...यदि उसका आभास हो तो यहाँ उपमान लुप्तोपमा होगा, आभास न हो तो उसे सामने ले आने पर पूर्णोपमा होगा अन्यथा केवल उद्धृत अंश में आधार पर यहाँ उपमा नहीं है. मैंने यही माना है.
रचना को रचनाकार से अधिक पाठक समझता है. तभी तो अनेक व्याख्याएँ कर पाता है. अस्तु...
राजीव् रंजन जी तथा साहित्य शिल्पी के सभी मित्रों को सुरुचिपूर्ण तरीके से आलेख प्रकाशित करने के लिए साधुवाद. विविध रंगों की छटा नयनाभिराम तो है ही अर्थ संप्रेषण में भी सहायक है.
ऋतु जी! इसका श्री आप जैसे सुधि पाठकों को है जिनकी प्रेरणा से यह इस रूप में आ रहा है.
अभी दिव्य नर्मदा से आयी टिप्पणी पढी थी जो डिलीट हो गयी। बहुत सुन्दर और लाभ पहुँचाने वाली चर्चा थी...?
जवाब देंहटाएंआचार्य संजीव कर्मा सलिल जी को कोटिश: धन्यवाद। वाचक शब्द और साधारण धर्म में ही कंफ्यूजन होता है लेकिन कहते हैं न कि-
करत करत अभ्यास के जड़्मति होत सुजान
रसरी आवत जात के सिल पर पड़्त निसान
तो मुझ जडमति का अभ्यास भी सफल होगा।
मेरी टिप्पणी करने से पहले ही आपने मेरी शिकायत दूर कर दी। धन्यवाद सलिल जी।
जवाब देंहटाएंअनिल जी!
जवाब देंहटाएंकुछ टंकन त्रुटियाँ हो जाने के कारण टिप्पणी को विलोपित कर संशोधित किया है.
alankaron ko sarlikrit kar apne hum vidyarthiyon ki hindi me ruchi aur gehri kardi hai
जवाब देंहटाएंबुद्धवार को पहली फुर्सत में सलिल जी का आलेख पढना प्राथमिक काम होता है। उदाहरणों पर आपके विश्लेषण से गलतियाँ पता चलीं। नितेश जी वाली त्रुटिया मुझसे भी हुई थीं। अभ्यास करने का वयदा करती हूँ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है, बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी अलंकारों की विशेषताओं पर लिखी कविता ही इस विषय को सरलता और काव्यात्मकता से प्रस्तुत करती है।
जवाब देंहटाएंमेरी पत्नि हिन्दी में एम.ए कर रही हैं। आपके सभी लेख उनके लिये नोट्स की तरह काम आ रहे हैं।
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य अनूठा आलेख!
जवाब देंहटाएंऐसे में, जब कविगण
अलंकारों को कविता में सजाना
भूल चुके हैं,
एक उल्लासमय जागरण का काम करेगा!
अद्भुत है यह लेख !
जवाब देंहटाएंअलंकारों को दोहे में कहना | पुनर्पाठ अच्छा है |
उपमा के सन्दर्भ में एक प्रश्न -
पढा है - व्यंजना के विषय में | तो उपमा अलंकार और व्यंजना एक ही हुए ?
क्या यह सही है ?
धन्यवाद |
अवनीश तिवारी
अवनीश जी!
जवाब देंहटाएंलक्षणा, व्यंजना आदि शब्द की शक्तियाँ हैं, अलंकार नहीं. जिस तरह दूध गाय, दही और खोवे तीनों में होने पर भी तीनों को दूध नहीं कहा जा सकता है, उसी प्रकार शब्द शक्ति और अलंकार एक नहीं हैं.शब्द शक्ति शब्द में अन्तर्निहित वैशिष्ट्य है जबकि अलंकार बाह्य सौंदर्यवर्धक है.
आचार्य संजीव सलिल जी को नमन करते हुए इस आलेख का आभार करना चाहती हूँ। अलंकार का काव्य-प्रस्तुतिकरण अनूठा है।
जवाब देंहटाएंALANKAAR KEE VISHAD VYAAKHYA AAP SA
जवाब देंहटाएंKAVYA-MARMGYA HEE KAR SAKTAA HAI
KAVITA MEIN ALANKAAR PADHKAR BADAA
SUKHAD LAGAA HAI.BADHAAEE.
आलेख पठन क्रम में निरंतर यह विचार आता रहा कि यदि आप जैसा योग्य गुरु अध्यन काल में मिले होते तो व्याकरण इतना कठिन और उबाऊ कभी न लगता....
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक सुन्दर आलेख हेतु आपको नमन....
Ranjan ji i request you to pls make one pdf book of all articles by acharya ji and distribute it .
जवाब देंहटाएंYe gian kisee kitab me nahi milega jo yahaN muft me hum sab ko mil raha hai.
Thanks acharya ji.
Regards
khyaal
आचार्य सलील जी का यह लेख संग्रहणीय है.
जवाब देंहटाएंसाभार
अलंकारों पर इस तरह चर्चा होने लगी यह सुखद है।
जवाब देंहटाएंआचार्य जी, ये जानकारी हमें बारहवीं में मिल जाती, तो हम भी ससम्मान उत्तीर्ण हो जाते... खैर अब मिली तो अब सही, बच्चों के काम आयेगी, मैं तो दूर की सोचता हूं, अभी से प्रिंट निकाल कर रख लेता हूं...
जवाब देंहटाएंसादर प्रणाम,
खबरी
मित्रों !
जवाब देंहटाएंमैं सचमुच भाग्यशाली हूँ की हिंदी में बहुधा श्रेष्ठ शिक्षक मिले. मेरी हिंदी और साहित्य से जुडाव का श्रेय जिन्हें है अधिकांश अब नहीं हैं. एक हैं श्री सुरेश उपाध्याय, कोठी बाज़ार, होशंगाबाद. आप इस समस्त कार्य का श्रेय उन्हें देते हुए पत्र भेजें तो मुझे आनंद मिलेगा.
आदरणीय आचार्य संजीव वर्मा सलिल जी,
जवाब देंहटाएंआपकी यह इच्छा "साहित्य शिल्पी" के लिये आदेश की तरह है। श्री सुरेश उपाध्याय को हम आभार पत्र प्रेषित करते हुए आपकी भावनाओं से अवगत भी करा रहे हैं।
-साहित्य शिल्पी।
निश्चय ही यह सभी कडियां संग्रहणीय है. सतपाल जी की टिप्पणी से मुझे इत्तेफ़ाक है.
जवाब देंहटाएंगिरि सा ऊँचा हो जिसका मन.
जवाब देंहटाएंध्रुव सा जिसका लक्ष्य अटल हो,
दिनकर सा हो नियमित जीवन.
ये कौन सी कविता से ली गयी है?
मुख मयंक सम मंजू मनोहर ।
जवाब देंहटाएंया
मुख मयंक सम मनोहर ।
????
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.