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वो समय.. [लघुकथा] - गरिमा तिवारी


"जानती हो... कैसा लग रहा है?" 

"जी कैसा?" 

"मतलब आज तक मै अपने 3 बच्चो मे से किसी के साथ बचपन से बड़े होने तक के सफर मे नही रह सका... अब जब अमर के साथ हूँ, इसकी जिन्दगी के एक-एक पल मे साथ हूँ... हरेक एहसास से वाकिफ हो रहा हूँ.. तो लग रहा है कि पहले मैने बहुत कुछ खो दिया है...। अमर के बचपन से लेकर अब तक के सफर को देखते हुए जहाँ खुशी मिल रही है, वही पहले जो खोया उसका दर्द भी जग रहा है... अभी लग रहा है कि पिता होने के मतलब सिर्फ आर्थिक स्थिति मजबूत करना ही नही होता... उससे भी बढ़कर बहुत कुछ होता है..." 

ऐसे बात करते हुए पापा जी की आँखें भर आती हैं... मम्मा उनको धीरज देती हैं, और मैं उनको गले लगकर कहती हूँ कोई बात नही पापा जी, तब ना सही अब तो हम साथ हैं ना...।

पापा जी को धीरज तो दे दिया... पर अन्दर मे दबा हुआ दर्द बाहर आ जाता है। आँखो मे आयी नमी और दिल के दर्द को छुपाने के लिये मै अपने कमरे मे भाग जाती हूँ।...। पापा जी आपने जो खोया वो तो अमर को सामने देखकर पा लेंगे... पर हम बाकी बच्चो ने जो खोया?...? उसकी पूर्ति कैसे होगी? हमारा बचपन जिसने पिता के प्यार की कमी को हर पल बर्दाश्त किया...वो समय वापस आ पायेगा?

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14 टिप्पणियाँ

  1. आर्थिक युग के इस बियाबान में परिवार के भरण पोषण के लिए मार्ग बनाते, परिजनों की संवेदनाओं और सरोकारों से जुड़े रहना, सचमुच कुछ आसान काम नहीं है। धन सब कुछ नहीं है।

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  2. आर्थिक मजबूरियों के चलते बहुत कुछ खोना पड़ता है लेकिन ये कहानी सिर्फ निम्न वर्ग या मध्यम वर्ग की नहीं है।अत्याधिक संपन्न लोग भी और अधिक पैसा कमाने के चक्कर में अपना घर-परिवार खो बैठते हैँ...
    जिसे कम में संतोष है....वही असल में सुखी है
    अच्छी कहानी

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  3. दौडती भागती दुनियाँ, घर चलाने का संघर्ष खास तौर पर महानगरीय जीवन में वह परिस्थिति उत्पन्न कर रहा है जो इस लघुकथा में वर्णित है।

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  4. kya kahun nishabd hoon , itni choti si katha me bahut si baate hai ..jeevan kaatna kuch kam mashakkat ka kaam nahi hai ,,

    garima ji is rachna ke liye badhai ..

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  5. उजडे बाग लगाना आसान है
    टूटे फ़ूल खिलाना मुशकिल है

    सुन्दर लघुकथा जो थोडे शब्दों में बहुत कुछ कहती है. मैं आरम्भ में दी हुई टिप्पणियों से सहमत हूं.
    अपने दिल की बात परिवार के सभी लोग मुखिया से कह लेते हैं. लेकिन शायद मुखिया को सभी दबाब अपने पर ले कर जीना पडता है.. वह किससे कहे.
    एक दूसरे के मन की बात को बिना कहे ही समझना अति आवश्यक है.

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  6. संवेदना की सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. मां-पिता से तो कभी किसी को न बिछुड़ना पड़े... न बचपन में, न जवानी में... दुनियादारी का सबसे बड़ा मजाक है मां-पिता से दूर परदेसी होना... और दुनिया हर बच्चे से ये मजाक करती है... निष्ठुर दुनिया...
    खबरी

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  8. एक कडुवी सच्चाई है। आज के दौर की हकीकत है।

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  9. bhaut khub laghu katha ke arth ko sachme aap jaise kathakar hi saakar kar sakte hain..... tahe dil se meri badhae swikar karen.
    vivekanand yadav

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  10. ek achhi laghu katha jisne aaj ki bhag daur bhari jindagi me khote bachpan aur mata pita ke pyar ke dard ko uker kar rakh diya hai

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  11. बहुत खूब। बेहद संवेदनशील।

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  12. ANK ACCHA BANA HAI. LAGHUKATHA KO LEKAR INDORE ME "KSHITIJ" KE MADHYAM SE JO KARYA KIYA GAYA HAI USE BHI LAGHUKATHA KE ITIHAS ME SHAMIL KARE.
    TEESARA KSHITIJ, SAMAKSH, MANOBAL, SHABDA SHAKHI HAI KI JANKARI DE.
    SATISH RATHI 212 USHA NAGAR MAIN
    INDORE452009
    09893164272

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