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ये किसकी चाल है, मोहरे हैं, किसका है पत्ता [ग़ज़ल] - दिगम्बर नासवा


साहित्य शिल्पीरचनाकार परिचय:-
मूलतः फरीदाबाद, हरियाणा के निवासी दिगंबर नासवा को स्कूल, कौलेज के ज़माने से लिखने का शौक है जो अब तक बना हुआ है।

आप पेशे से चार्टेड एकाउंटेंट हैं और वर्तमान में दुबई स्थित एक कंपनी में C.F.O. के पद पर विगत ७ वर्षों से कार्यरत हैं।

पिछले कुछ वर्षों से अपने ब्लॉग "स्वप्न मेरे" पर लिखते आ रहे हैं।

ये किसकी चाल है, मोहरे हैं, किसका है पत्ता
हिली कुर्सी, हिले सब लोग, हिल गयी सत्ता

ये किसने रंग दिए, दीवारों दर संसद भवन के
ये किसका पान है, चूना है, किसका है कत्था

ये किसकी चाह थी, मिट जाये या फांसी चढ़े
भगत सिंह, राज, और सुखदेव का बागी जत्था

ये कैसा न्याय है जो मर मिटा इस देश की खातिर
नहीं मिलता है उस परिवार को राशन भत्ता

शहद की प्यास रखते हो तो कुछ हिम्मत करो
चुरा लो फूल से या तोड़ लो मधु का छत्ता

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19 टिप्पणियाँ

  1. ये कैसा न्याय है जो मर मिटा इस देश की खातिर
    नहीं मिलता है उस परिवार को राशन भत्ता
    अच्छे शेर हैं।

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  2. पंकज सक्सेना28 मई 2009 को 2:07 pm बजे

    आपकी ग़ज़ल नें अच्छे सवाल उठाये हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. ये कैसा न्याय है जो मर मिटा इस देश की खातिर
    नहीं मिलता है उस परिवार को राशन भत्ता

    शहद की प्यास रखते हो तो कुछ हिम्मत करो
    चुरा लो फूल से या तोड़ लो मधु का छत्ता

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं
  4. जिंदगी के फलसफे को बहुत आसानी से समझा गयी आपकी गजल।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

    जवाब देंहटाएं
  5. सोचने पर विवश कर देने वाला कथ्य ... "ये किसका पान है, चूना है, किसका है कत्था" वाली लाइन काफी जमी | उठाये गए सवाल सामयिक हैं और दुःख ये भी है की वे काफी समय से सामयिक बने हुए हैं | :-)
    वैसे ग़ज़ल शिल्प की द्रष्टि से यह रचना उतना असर नहीं छोड़ती | मतले में काफिये के लिए "त्ता" का इस्तेमाल करने के बाद आप ने कहीं जत्था लिखा है , कहीं कत्था | बेहर भी समझ में नहीं आयी | ये भी हो सकता है कि मेरे इल्म में कुछ कमी हो पर इस रचना को ग़ज़ल कारी के नियमों को साथ ले कर , एक बार फिर से लिखा जाना चाहिए |

    जवाब देंहटाएं
  6. कहन गंभीर है और सोचने को बाध्य करने वाला भी है। दिव्यांशु जी की बात पर भी गौर कीजियेगा।

    जवाब देंहटाएं
  7. शहद की प्यास रखते हो तो कुछ हिम्मत करो
    चुरा लो फूल से या तोड़ लो मधु का छत्ता
    वाह वाह, कमाल।

    जवाब देंहटाएं
  8. DIGAMBAR NASVA JEE,AAPKEE GAZAL KAA
    BHAAV PAKSH UTTAM HAI .AGAR KALAA
    PAKSH BHEE UTTAM HOTA TO GAZAL KO
    CHAAR CHAAND LAG JAATE.AAP ACHCHHE
    SHER KAH SAKTE HAIN.BAHRON PAR
    DHYAAN DIJIYE AUR ABHYAAS KIJIYE.

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  9. मुझे आपकी रचना अच्छी लगी।

    जवाब देंहटाएं
  10. digambar ji ,
    namaskar

    aaj aapko padhkar man bahut vyatith ho utha hai ....desh ki haalat jo ho gayi hai ..iski aor darshati hsai aapki gazal ki pankhtiyan ...

    ये कैसा न्याय है जो मर मिटा इस देश की खातिर
    नहीं मिलता है उस परिवार को राशन भत्ता

    aapki kavita ke bhaav bahut shashakt hai ...
    aapko bahut bahit badhai ..
    vijay

    जवाब देंहटाएं
  11. शहद की प्यास रखते हो तो कुछ हिम्मत करो
    चुरा लो फूल से या तोड़ लो मधु का छत्ता

    waah! kya khuub kahaa!Umda!
    bahut achchee gazal hai .

    जवाब देंहटाएं
  12. कई जीवन्त प्रश्न उठाती सुन्दर गजल

    जवाब देंहटाएं
  13. दिगंबर जी सत्ता भत्ता के साथ कत्था का काफिया सही है या नहीं ये तो उस्ताद ही बता सकते हैं...लेकिन कुछ शेर आपने बेहद कमाल के कहें हैं...प्राण साहेब ने जो कहा उसे गाँठ बाँध लें...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  14. आदरणीय प्राण साहब.............. आपने मेरी ग़ज़ल के शेरो को साहित्य शिल्पी में सराहा है................जहां जहां मेरी गलती है कुछ कुछ समझ आ गयी............ आगे से ध्यान करने की कौशिश करूंगा और अगर आप का आर्शीवाद रहेगा तो यकीनन सुधार हो जाएगा,..............आप अपना आर्शीवाद बनाए रखें ...........

    जवाब देंहटाएं
  15. दिगंबर जी, जब सामने कुछ 'बहुत ही अच्छा हो' तो पास रखी दूसरी अच्छी चीज, कम अच्छी लगना लगती है... आपकी रचना में कुछ छंद इतने अच्छे हैं कि वही आपके ही बाकी कुछ छंदों को फीका कर रहे हैं---

    इतनी अच्छी रचना कि शुरू के तीन छंदों तक की ही कविता रखते तो ये कंठस्थ हो जाती

    जवाब देंहटाएं
  16. " सतसैया के दोहरा ज्यों नाविक के तीर ।
    देखन में छोटे लगे घाव करे गम्भीर ॥"
    बिहारी

    जवाब देंहटाएं

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