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निर्लज्ज युवा हैं [कविता] - राजीव रंजन प्रसाद


शान बघारें, शोर मचायें
चिल्ल-पों, चीखें चिल्लायें
तोडें फोडें, आग लगायें
हमसे आजादी का मतलब
पूछ समंदर डूब गया था
आशाओं का बरगद सूखा
हम पानी के वही बुलबुले
उगते हैं, फट फट जाते हैं
हम खजूर के गाछ सरीखे
गूंगे की आवाज सरीखे
बेमकसद बेगैरत बादल
अंधे की आँखों का काजल
सूरज को ढाँप रहा,
काला धुवां हैं
निर्लज्ज युवा हैं....

रचनाकार परिचय:-


राजीव रंजन प्रसाद का जन्म बिहार के सुल्तानगंज में २७.०५.१९७२ में हुआ, किन्तु उनका बचपन व उनकी प्रारंभिक शिक्षा छत्तिसगढ राज्य के जिला बस्तर (बचेली-दंतेवाडा) में हुई। आप सूदूर संवेदन तकनीक में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से एम. टेक हैं। 

विद्यालय के दिनों में ही आपनें एक पत्रिका "प्रतिध्वनि" का संपादन भी किया। ईप्टा से जुड कर उनकी नाटक के क्षेत्र में रुचि बढी और नाटक लेखन व निर्देशन उनके स्नातक काल से ही अभिरुचि व जीवन का हिस्सा बने। आकाशवाणी जगदलपुर से नियमित उनकी कवितायें प्रसारित होती रही थी तथा वे समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुईं। 

वर्तमान में आप सरकारी उपक्रम "राष्ट्रीय जलविद्युत निगम" में सहायक प्रबंधक (पर्यावरण) के पद पर कार्यरत हैं। 

आप "साहित्य शिल्पी" के संचालक सदस्यों में हैं।

आपकी पुस्तक "टुकडे अस्तित्व के" प्रकाशनाधीन है।

हमें ढूंढो, मिलेंगे हम
कोनों में, किनारों में
अगर कुछ शर्म होगी तो
तुम्हें मुँह फेरना होगा
नयी पीढी हैं, बेची है
यही एक चीज तो हमनें
वही हम्माम के भीतर
वही हम्माम के बाहर
जो नंगापन हकीकत है
हमारी सीरत है....

बहुत ताकत है बाहों में
बदन कसरत से गांठा है
बाँहों पर उभरते माँस के गोले
मगर बस ठंडे ओले हैं
वो कमसिन बाँह में आये
यही बाहों का मक्सद है
नयन दो चार हो जायें,
निगाहों का मक्सद है
वही डिगरी है, जिसमें
तोड कुर्सी लूट खाना है
मकसद ज़िन्दगी का
एक आसां घर बसाना है
न पूछो, चुल्लुओं पानी है
फिर भी जी रहे क्यों हैं....

मगर तुम पाओगे हमको
जहाँ भी आग पाओगे
कभी दूकान लूटोगे अगर
या बस जलाओगे
हम ही तो भीड हैं
जो भेड हो कर बहती जाती है
हम ईमान के चौकीदार हैं
धर्म के सिक्युरिटी गार्ड हैं हम....

लेकिन उम्मीद न रखना
वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
नमक हराम, अहसान फरोश,
नपुंसक हैं हम
तुम चीख चीख कर यह कहोगे
तो क्या हम जाग जायेंगे?
तुम डूबता जहाज हो
हम अमरीका भाग जायेंगे...

एक टिप्पणी भेजें

23 टिप्पणियाँ

  1. Rajeev ji ;
    Namsakr..

    subah se main aapki kavita ki pratiksha kar raha tha .. kyonki jo aapki kavita me darshaya hota hai wo padhne ke bahut der tak man mastik disturb sa rahta hai ..kyonki ...wo jeevan ki ek sacchai hoti hai aur hame ye yaad dilati hai ki jeevan ki waastivikta kya hai aur hamesha hi aapki kavitayen desh se judi hoti hai aur samaaj ka aaina hoti hai ..

    apki ye kavita bhi kuch aisi hi hai .... in fact ham saare yuva sirf kuch der tak hi thoughts me rahte hai jo sacche hote hai .. chaahe wo aatankwad ho ya koiaur dusari sacchai .. aur uske baad apne apne zindagi me jhoothi khushiyan dhoondhne lag jaate hai ..

    लेकिन उम्मीद न रखना
    वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
    तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
    नमक हराम, अहसान फरोश,
    नपुंसक हैं हम
    तुम चीख चीख कर यह कहोगे
    तो क्या हम जाग जायेंगे?
    तुम डूबता जहाज हो
    हम अमरीका भाग जायेंगे...

    in panktiyon me aapne jo sach kaha hai ...wah hame nishabd kar deta hai ...

    aapki lekhni ko salaam ..main koi aur comment nahikar paane ki stithi me hoon .. kaash main bhi aapki tarah likh paata ..bus yahi kahna chahunga ..

    naman aapki lekhni ko ..

    जवाब देंहटाएं
  2. शान बघारें, शोर मचायें
    चिल्ल-पों, चीखें चिल्लायें
    तोडें फोडें, आग लगायें
    हमसे आजादी का मतलब
    पूछ समंदर डूब गया था
    आशाओं का बरगद सूखा
    हम पानी के वही बुलबुले
    उगते हैं, फट फट जाते हैं
    हम खजूर के गाछ सरीखे
    गूंगे की आवाज सरीखे
    बेमकसद बेगैरत बादल
    अंधे की आँखों का काजल
    सूरज को ढाँप रहा,
    काला धुवां हैं
    निर्लज्ज युवा हैं....

    पंक्ति दर पंक्ति सच्चाई है। आज का युवा इसी परिभाषा में आता है।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत सही सार्थक सत्य का सुन्दर प्रभावशाली उदघाटन इस कविता के माध्यम से किया है आपने......
    साधुवाद !

    हमने आजादी का जितना बेदर्द इस्तेमाल किया है,वह अफसोसनाक नहीं शर्मनाक है...

    उद्दंड भीड़ को स्वतंत्रता नहीं बेडियाँ चाहिए....

    छोटी छोटी अनर्गल बातों पर देश की संपत्ति को नष्ट करने वालों को देशद्रोही ठहरा उन्हें उसी के अनुरूप सजा देने का प्रावधान होना चाहिए....

    जवाब देंहटाएं
  4. राजीव, आप की कविता पढ़ी--कई प्रश्न चिन्ह लगा गई. युवा वर्ग की मानसिकता का यथार्थ वर्णन करती व सोचने पर मजबूर करती, बेहद खूबसूरत कविता है.
    अंतिम पंक्तियों ने हिला कर रख दिया--
    लेकिन उम्मीद न रखना
    वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
    तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
    नमक हराम, अहसान फरोश,
    नपुंसक हैं हम
    तुम चीख चीख कर यह कहोगे
    तो क्या हम जाग जायेंगे?
    तुम डूबता जहाज हो
    हम अमरीका भाग जायेंगे...

    वह क्या बात है -बहुत -बहुत बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  5. राजीव जी !

    कविता में लोकानुभूति से उपजा रोष सहज ही परि्लक्षित है. कवि का संवेदनशील मन बहुधा जनसरोकार से सर्वाधिक उद्वेलित होता है. हमारे युवा जिस दिशा में कईबार भटक रहे हैं यह कविता की प्रत्येक पंक्ति से स्पष्ट है. उनको लताड़्ते हुये सही राह की ओर प्रेरित करना कवि का उद्देश्य है. यहां तक मैं आपसे स्पष्ट रूप से सहमत हूं ...

    किन्तु .. हमारे युवाओं के समुचित वैत्यक्तिक विकास के अभाव में यह जो स्थिति उत्पन्न हुयी है क्या इसके लिये सामूहिक रूप से इन युवाओं की अग्रज एवं पिछली पीढ़ी उत्तरदायी नहीं है .... ?

    मेरे विचार से व्यवसायी मनोदशा एवं राजनीतिकों द्वारा उत्कृष्ट नैतिक मूल्यों का निरन्तर अवमूल्यन एवं सर्वांगीण भ्रष्टाचार की स्वीकार्यता के लिये हम सभी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में उत्तरदायी हैं.

    अस्तु .. एक सामयिक और ज्वलंत बिन्दु को कविता के माध्यम से चर्चा में लाने कि लिये साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  6. वही डिगरी है, जिसमें
    तोड कुर्सी लूट खाना है
    मकसद ज़िन्दगी का
    एक आसां घर बसाना है

    इन पंक्तियों में सारा सार भी है। वाकई युवाओं के सपने छोटे होने लगे हैं। राजीव जी बेहतरीन कविता।

    जवाब देंहटाएं
  7. RAJIV JEE,SASHAKT RACHNAA KE LIYE
    AAPKO BADHAAEE.

    जवाब देंहटाएं
  8. लेकिन उम्मीद न रखना
    वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
    तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
    नमक हराम, अहसान फरोश,
    नपुंसक हैं हम
    तुम चीख चीख कर यह कहोगे
    तो क्या हम जाग जायेंगे?
    तुम डूबता जहाज हो
    हम अमरीका भाग जायेंगे...

    सच पर क्या टिप्पणी करूं।

    जवाब देंहटाएं
  9. सोचने पर मजबूर करती है कविता। युवा आईना देख सकते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहूत ही यथार्त को लिखा है राजीव जी............हर शब्द जैसे सच की स्याही से लिखा...........आज के हालात पर सटीक टीका है आपका.... सचमुच पिछले ५०-६० वर्षों में हमारे समाज के ठेकेदारों का बस पतन ही हुवा है .....लाजवाब लेखन के लिए बधाई

    जवाब देंहटाएं
  11. युवा हनुमान की तरह हैं और उन्हे अपनी शक्ति का भान नहीं है। एसी कविता झकझोरने के लिये जरूरी है।

    जवाब देंहटाएं
  12. पहली नज़र में एक शिकायत प्रधान सी दिखने वाली इस कविता में एक ललकार है जो लताड़ और व्यंग्य में लपेट कर प्रस्तुत की गयी है | इस ललकार का संप्रेषण ही इस कविता का हासिल है | एक और बात गौर-ए-तलब है, युवाओं के सभी समूहों को ललकारा जाना | देश में युवाओं के बहुत से समूह हो गए हैं , जिनकी अपनी अपनी कुंठाएं हैं , अपने अपने स्वप्न हैं | एक युवा वो भी है जो मुताल्लिक़ जैसों के इशारों पर शराबखानों में बैठी लड़कियों के साथ मार पीट करते हैं , और एक युवा वो भी है जो इस के विरोध में पब भरो आन्दोलन चला देता है | एक व्यथित युवा वो भी है जिसकी मंदी के चलते आई आई एम से पास हो कर भी १ करोड़ की नौकरी नहीं लगी (महज़ अस्सी लाख की ही लगी :-), और एक वो भी है जिसने गेंती फावडे के सिवाय कुछ देखा नहीं , कुछ सोचा नहीं | सभी को सामान लताड़ लगाने वाली इस कविता को नमन |
    वैसे युवा शक्ति द्वारा किया कुछ अच्छा कार्य भी कवि की नज़र से हो कर गुजरा हो तो उस पर भी एक कविता की प्रतीक्षा रहेगी ... :-) एक और बात .. आज कल तो लौट रहे हैं लोग अमरीका से :-)

    जवाब देंहटाएं
  13. भाई इसे जनगीत के फार्म में ढालने की कोशिश करो जनगीतों की बहुत कमी है अपने यहाँ

    जवाब देंहटाएं
  14. हमसे आजादी का मतलब
    पूछ समंदर डूब गया था...
    डूब ही जाना था...

    राजीव जी गुलाल फिल्म में सरफरोशी की तमन्ना गीत की पैरोडी है... उसमें भी ये अकुलाहट बड़ी अच्छी तरह दिखी है...

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  15. लेकिन उम्मीद न रखना
    वृद्ध, तिरस्कृत से देश मेरे
    तुम्हारी आवाज हम सुन नहीं पाते
    नमक हराम, अहसान फरोश,
    नपुंसक हैं हम
    तुम चीख चीख कर यह कहोगे
    तो क्या हम जाग जायेंगे?
    तुम डूबता जहाज हो
    हम अमरीका भाग जायेंगे...

    अच्छी कविता।

    जवाब देंहटाएं
  16. राजीव जी,

    खूबसूरत कविता के लिए बधाई.

    चन्देल

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  17. कविता पर टिप्पणी नही है.. भावों पर जरुर है..

    क्या युवा ऐसा है? शायद नहीं.. युवा को परखने के लिये युवा होना होगा.. और ये युवा १०० साल पहले भी ऐसा था.. २०० साल पहले भी... धारा के विपरित तैरने वाला...

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  18. मुक्त भाव की भाव भरी कविता है.. शायद कवि उन युवाओं की बात कर रहा है जो अपनी शक्ति और सामर्थय को उस दिशा में लगा रहा है जो विंध्वंसक हैं. आजादी का गलत अर्थ लगाने वाले युवाओं की और ईशारा ही कवि का मन्तव्य प्रतीत होता है. विदेश में हुये एक हादसे से जिस तरह अपने देश में तोडफ़ोड हो रही है और सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान किया जा रहा है वो शोचनीय है.
    सुन्दर कविता के लिये राजीव जी को बधाई.

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  19. निर्लज्ज युवा कविता पढ़ी, पाया रचित यथार्थ |
    राजीव रंजन आपको, मिले बधाई पार्थ ||

    अपनी ही ये देन हैं, सब हैं पीड़ित आज ||
    जैसा बोया उग रहा, समझे नहीं समाज ||

    व्यंग्य रूपी समर में, हम सब आयें संग ||
    तीखी इस तलवार से, सुधरें युवक उद्दंड ||

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  20. आपकी कविताओं का तेवर हमेशा अचंभित करता है राजीव जी...
    "हम खजूर के गाछ सरीखे/गूंगे की आवाज सरीखे
    बेमकसद बेगैरत बादल/अंधे की आँखों का काजल"
    अपने अनूठे बिम्बों से आघात करते शब्द सारे शब्द आपके...

    जवाब देंहटाएं
  21. wah ji wah pahli martaba aapki kavita padhi hai bahut pasand aayi......

    जवाब देंहटाएं
  22. राजीव जी,आपकी कविताओं में एक तरह का विद्रोह...नाराज़गी या रोष झलकता है जो हम सभी के अन्दर कहीं ना कहीं मौजूद रहता है लेकिन हम अपनी भड़ास को बाहर नहीं निकाल पाते
    इस रोष...इस नाराज़गी को बाहर लाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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